4:32 PM : एम्स निर्माण

3:58 PM : Global exports and trade success

Rapidly growing Indian Pharma industry: Global exports and trade success

(5067 words)

India is growing its presence rapidly in global pharmaceuticals. It is called “the pharmacy of the world” because of its low on price and high on quality medicines.

Union Minister for Chemicals and Fertilizers DV Sadananda Gowda also recently said at LEADS 2020 that India has made quite an impression as one of the largest manufacturers and exporters of generic medicines across the world. He also mentioned how India earned the reputation of a reliable supplier of medicines, especially after it supplied medicines like HCQ and Azithromycin to more than 120 countries for treating COVID-19 emergency cases in the initial phase.

1). Present success status of Indian pharmaceutical industry

The Indian pharmaceutical industry ranks 3rd worldwide for production in terms of volume and 10th largest in terms of value. The total size of the industry (including drugs & medical devices) equals around US$ 43 billion (Rs.3,01,000 crore) with a growth rate currently at 7-8% in drug sector and 15-16% in terms of medical devices.

2). India’s pharmaceuticals exports

India has made a big name in pharmaceuticals exports. The country is home to more than 3,000 pharma companies with a strong network of over 10,500 manufacturing facilities. Total exports (including drugs and medical devices) stand at around US$ 20 billion (Rs.1,47,420 crore). Drugs form around 90% of the total exports.

3). Trade and exports growth rate

Indian pharma exports are destined to more than 200 countries including highly regulated markets of US, West Europe, Japan and Australia. From 2018-19, India’s pharmaceuticals exports were worth $19.3 bn (Rs. 1,33,910 crore) with a recorded growth of 10.72%. Drug formulations & Biologicals was the third largest among the principal commodities exported by India during 2018-19. India exports largely to USA, UK, South Africa and Russia. Another interesting fact is that the cost of manufacturing in India is approximately 33% lower than that of the US.

4). Assistance offered by Union Minister Gowda

Saying that the Indian pharma sector can grow to $ 65 billion industry by 2024, Union Minister Gowda further emphasised that this is a very- very good time to invest, and set up manufacturing base in India in pharma sector. “One can enter India market through Joint Ventures also. The advantage is that you can get access to big markets like domestic Indian market, US, Japan, EU and South East Asia through India as far as pharma sector is concerned. Any body can contact my office if they are interested in Indian pharma sector, we will provide all possible facilitation and hand holding,” he stressed.

5). Global Competitiveness

India also registers as the world’s largest provider of generic drugs. It is also greatly acknowledged as the biggest suppliers of low-cost vaccines in the world. Besides, India is also the only country with the largest number of US-FDA compliant Pharma plants (more than 262 including APIs) outside of USA with exports $ 20 billion worth of pharma products to various countries including high standards complying countries like US and Europe.

3:24 PM : Sunday Samvaad

After having good control during the initial phase of the pandemic situation now has worsen in Kerala.  I would say that other states should learn a lesson from this. All states need to be careful during the coming festival season.

At present there is no intranasal #Covid19 vaccine under clinical trail. however Serum Institute of India has begun manufacturing Codagenix CDX-005 which is an intranasal, live-attenuated vaccine candidate for SARS-CoV-2: Union Min.

2:44 PM : India Fights Corona:

2:12 PM : India Fights Corona

1:23 PM : India-NZ relationship to a higher level

2:12 PM : Swachhata drive

2:12 PM : Swachhata drive

1:00 PM : भ्रामक पोस्ट में न फंसे

भ्रामक पोस्ट में न फंसे, आयोडिन कोरोना से बचाने में कितना है सहायक बता रहे हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ

कोरोना वायरस से जुड़े जहां एक ओर कई शोध सामने आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें भी चल रही हैं। कई लोग इन भ्रामक और वायरल पोस्ट में पड़ कर भ्रमित हो रहे हैं। ऐसे ही कई शोध सामने आये हैं, जिसके बारे में एम्स, नई दिल्ली के डॉ. नीरज निश्चल ने कई महत्वपूर्ण सलाह दी है।

शोध में सामने आया है कि अलग-अलग तापमान में नोट पर वायरस जिंदा रह सकता है?

लैब में होने वाली टेस्टिंग और रियल लाइफ में काफी अंतर होता है। बाहर के वातावरण में सर्दी, गर्मी के अलावा ह्यूमिडिटी का भी अंतर होता है। जहां तक करंसी नोट की बात है, वह पहले ही इतने हाथों में जा चुका होता है कि उस पर कई तरह के केमिकल आ चुके होते हैं। ऐसे में वायरस कितना सर्वाइव करेगा यह किसी को नहीं पता। अर्थात लैब के वातावरण में वायरस किसी चीज पर जितनी देर तक सर्वाइव करता है, जरूरी नहीं है कि बाहर भी उतनी ही देर तक रहे, क्योंकि बाहर मौसम बदलता रहता है। फिर भी सभी को नोट लेते वक्त सावधानी रखनी है।

कोरोना के कई लक्षण पहले भी बीमारियों में पाये जाते रहे हैं, इसे अलग कैसे मान सकते हैं?

कोरोना के जितने भी लक्षण हैं, वो पहले भी कई तरह के अलग-अलग वायरस से होने वाली बीमारियों में रहे हैं। जैसे जुकाम, सर्दी में अक्सर स्वाद और सुगंध नहीं आती है। फेफड़े के इंफेक्शन में सांस लेने में परेशानी होती है। अब चूंकि कई लोगों के पास कोविड-19 से लड़ने की इमन्युनिटी नहीं है, इसलिए वही लक्षण भारी पड़ जाते हैं। कई बार हमें देर से पता चलता है तो तब तक वायरस गंभीर रूप ले चुका होता है। इसीलिए सभी से समय पर जांच कराने और नियमों का पालन करने को कहा जा रहा है।

क्या कोरोना से बचाव में आयोडीन महत्वूर्ण भूमिका निभा रही है?

न्यूट्रिएंट्स कोई भी हों, उपयुक्त मात्रा में स्वास्थ्य के लिये अच्‍छे ही होते हैं। सामान्य मात्रा में नमक का उपयोग अच्छा होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसकी मात्रा बढ़ा दें। क्योंकि ऐसा कोई शोध नहीं आया है, जिसमें आयोडीन की कोई विशेष भूमिका पायी गई हो। स्वास्थ्य मंत्रालय और आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर कोरोना से बचने और खाने-पीने के साथ-साथ कोरोना से जुड़े तमाम शोध उपलब्‍ध हैं। इसलिये भ्रामक खबरों में न फंसे और न ही किसी भी प्रकार का ट्रायल अपने ऊपर करें, उससे नुकसान हो सकता है।

12:54 PM : COVID-19:

12:01 PM : अर्थराइटिस क्या है? कारण, लक्षण और इलाज

अर्थराइटिस क्या है? कारण, लक्षण और इलाज

आज के समय में जोड़ों की समस्या आम है और कई लोगों को परेशानी करती है। लेकिन जब जोड़ों में समस्या की वजह रोज की क्रियाओं प्रभावित होने लगे तो बात चिंता की है, क्योंकि इसका कारण अर्थराइटिस यानी गठिया हो सकती है। रूमेटाइड और मसक्लोस्केलेटिस डिजिस से प्रभावित होने वाले व्यक्ति को दैनिक क्रियायें करने में बाधा आती है। इसमें कई बीमारियां शामिल हैं।

अर्थराइटिस के लक्षण

घुटने में टेड़ापन, चलने में परेशानी, जोड़ों में तेज दर्द होना, उठने बैठने में परेशानी होना, चलने के तरीके में बदलाव या सीढ़ियां चलने व उतरने में परेशानी होना। ये सभी अर्थराइटिस रोग के लक्षण हो सकते हैं। कई बार असहनिय दर्द और उसकी वजह से बुखार भी आ आता है।

वहीं रूमेटाइड अर्थराइटिस में जोड़ों की परेशानी के अलावा मुंह और आंखों का सूखापन और गुर्दे पर भी प्रभाव हो सकता है। यहां तक की महिलाओं में गर्भपात की जटिलता भी उत्पन्न हो सकती है। एम्स में रिह्यूमेटोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ उमा कुमार बताती हैं कि इस बार अर्थराइटिस पर थीम रखी गयी है- गठिया से बचना या गठिया से विकलांगता से बचना पूरी तरह आप निर्भर है।

अर्थराइटिस से बचाव

> गठिया से बचने के जरूरी है कि एक स्वस्थ जीवनशैली अपनायें

> संतुलित आहार लें, वजन नियंत्रित रखें और नियमित व्यायाम करें

> गलत पोश्चर में न बैठें और न खड़े हों

> अगर जोड़ों में दर्द होता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें

> तनाव ने लें और नींद पूरी लें

>धुम्रपान न करें

शुरूआती दौर में रोग का पता चलने पर इलाज बेहतर हो सकता है और रोगी को सही प्रबंधन मिल सकता है। लेकिन जरूरी है अर्थराइटिस की जल्द पहचान हो और सही समय पर इलाज शुरू किया जा सके।

17 October 2020

1:00 PM : Grand Challenges Annual Meeting 2020

12:32 PM : Weather update

11:45 AM : Over 69 lakh tonnes #paddy procured so far

11:40 AM : Sri Durga Malleswara Swamy Devastanam

11:23 AM : India has scaled an unprecedented peak

11:09 AM : कौन से सेनिटाइजर (sanitizer) का प्रयोग करना ज्यादा अच्छा है?

11:00 AM : COVID-19 Testing Update

10:31 AM : मध्य कश्मीर के बडगाम में मुठभेड़

9:50 AM : मुक्त बाजार संचालन

16 October 2020

11:00 AM : FAO की 75वीं वर्षगांठ पर 75 रुपये का स्मृति सिक्का जारी कर रहे प्रधानमंत्री मोदी

10:28 AM : यूपी का चम्पारण

यूपी का चम्पारण : किसानों के संघर्ष का गुमन इतिहास

अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले तमाम बड़े चेहरों को हम जानते हैं, क्योंकि हमने उनका इतिहास स्कूलों में पढ़ा है। आज़ादी के आंदोलन में लाखों लोग ऐसे भी थे, जो अपना सब कुछ देश को न्योछावर कर आज़ादी के आंदोलन की आग में कूदे थे। इतिहास के पन्नों में कहीं एक कहानी उत्तर प्रदेश के चम्‍पारण की भी है। 100 वर्ष पुराने इतिहास के पन्नों को पलटने पर आप अवध के किसानों का संघर्ष भी पाएंगे। वो संघर्ष जिसमें जय सीताराम, राम-राम को मूलमंत्र बनाया गया था।

हम सभी जानते हैं कि राम करोड़ों लोगों के आराध्य हैं, लेकिन वह असंख्य लोगों के संघर्ष के प्रेरणा स्रोत भी हैं। यूपी का चंपारण कहा जाने वाला अवध के किसान आंदोलन में भी किसानों के संघर्ष को राम नाम के सहारे ही धार मिली। अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ़ भारत के इस ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण आंदोलन के नींव में राम ही रहे और राम राम और जय सीताराम किसानों के संघर्ष का मूलमंत्र बन गया था।

अवध किसान सभा ने शुरू किया था आंदोलन

किसानों के इस संघर्ष को एक रूप देने वाली अवध किसान सभा की शताब्दी गुमनामी से बीत गई। सभा के गठन को अब 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं जिसकी विधिवत शुरुआत 17 अक्टूबर 1920 को प्रतापगढ़ के रूर गांव में बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में अवध किसान सभा के गठन के बाद हुई। हालांकि इसके पहले ही उत्तर प्रदेश किसान सभा के माध्यम में 1917 में किसानों की आवाज बुलंद होने लगी थी लेकिन 1920 के बाद अवध किसान सभा के माध्यम से ही इस ऐतिहासिक आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसके केन्द्र में राम रहे।

किसान सभा का अवध के गांव गांव में गठन होना शुरू हो गया था, जहां रामचरितमानस के पाठ के नाम पर किसान एकत्रित होते थे और अंग्रेजों जमींदारों के खिलाफ़ रणनीति बनाते थे। जय सीताराम और राम राम की आवाज पर कुछ समय में ही हजारों किसान एक जगह पहुंच जाते थे।

गांधीवादी विचारक ओमप्रकाश शुक्ल कहते हैं, “राम हमेशा जन जन में थे जिसके सहारे इस आंदोलन को विस्तार और धार देने में बहुत मदद मिली।”

किसानों के लिये मूलमंत्र था ‘जय सीताराम व राम राम’

अवध किसान सभा के बैनर तले किसान लागातर संगठित हो रहे थे, जिसके नींव में बाबा रामचंद्र की नेतृत्व शक्ति व भगवान राम की जन-जन में व्यापकता थी। अवध में किसानों के आंदोलन में किस तरह राम केंद्र में थे, इस पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना अनुभव बयान करते हुए कहा कि ‘जय जय सीताराम के नारों के सुनने पर एक गांव के लोग दूसरे से जुड़ते हुए सभास्थल की ओर चल पड़ते थे, फ़टे चीथड़े पहने इन किसानों की छवि मेरे दिमाग में आजीवन छाई रही’।

इसके नेतृत्वकर्ता बाबा रामचंद्र गांव गांव जाकर रामचरित मानस के माध्यम से किसानों को जागरूक कर रहे थे। बाबा रामचंद्र मूलतः मराठी परिवार से थे और उनका नाम श्रीधर बलवंत था। वह 1909 में ही अयोध्या आ गए थे, उनका पूरा रुझान धर्म जागरण के प्रति था। वह रामचरित मानस का पाठ और प्रवचन करते थे, हालांकि इसके पहले वह फिजी में गिरमिटिया मजदूरों के एक आंदोलन में भी वह सक्रिय रहे थे।किसान नेता के पहले वह अवध के एक बड़े क्षेत्र में एक धर्मगुरु के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे।किसानों की पीड़ा उन्हें परेशान करती थी और अंग्रेजों और जमींदारों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाना शुरू कर दिया। इसके लिए उन्होंने राम नाम का सहारा लिया और मानस पाठ के सहारे सबको एकत्रित करने लगे।

प्रतापगढ़ से शुरू हुआ था आंदोलन

बाबा रामचंद्र ने कई दोहे रचे थे जिनका वह मानस पाठ के दौरान उल्लेख करते रहते थे जिसके माध्यम से वह किसानों को जागरूक करते थे। रामचरित मानस का यह प्रायोगिक रूप अपनेआप में उल्लेखनीय था। राम नाम और जय सीताराम का असर यह था कि एक आदमी जब गांव में जाकर यह जयकारा लगाता था तो सैकड़ों की संख्या में किसान इकठ्ठे हो जाते थे। इस सम्बंध में उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित मदनमोहन मालवीय सहित कई बड़े कांग्रेस नेताओं से भी संपर्क किया।

17 अक्टूबर 1920 को प्रतापगढ़ के रूर गांव में अवध किसान सभा का गठन कर किसानों के संघर्ष की शुरूआत की। जल्दी ही इसका विस्तार रायबरेली, सुल्तानपुर,अमेठी बाराबंकी सहित अवध के अन्य जिलों में हो गया। अवध किसान सभा की गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र रायबरेली बना और नवम्बर 1920 में ही कलकलियापुर में पहली किसान सभा का गठन हुआ। बाद में कई अन्य जिलों में तेजी से इसका प्रसार होता गया।

अंग्रेजों के खि‍लाफ किसानों द्वारा उठाई गई पहली सामूहिक आवाज

6 जून को बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में एक काफिला पैदल ही महात्मा गांधी से मिलने प्रयागराज पहुंचा, लेकिन गांधी जी वहां से जा चुके थे। किसानों का जत्था बलुआघाट पर जमा रहा,बाद में पंडित नेहरू, पुरुषोत्तम दास टंडन और गौरी शंकर मिश्र से उनकी मुलाकात हुई। 20 अगस्त 1920 को पट्टी क्षेत्र के लखरावां बाग में सभा कर रहे बाबा रामचंद्र व उनके सहयोगी सहदेव सिंह व झिंगुरी सिंह सहित 32 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। जिसके बाद हजारों की संख्या में किसान आंदोलित हो उठे।

अंत में बाध्य होकर अंग्रेजी प्रशासन को सभी को रिहा करना पड़ा। यह किसानों द्वारा उठाई गई पहली सामूहिक आवाज थी जिसने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद बाबा रामचंद्र को मानस प्रवचनकर्ता के अलावा एक किसान नेता के रूप में भी स्थापित कर दिया। उनके सहयोगियों में सहदेव सिंह, झिंगुरी सिंह और दृगपाल सिंह प्रमुख थे जिन्होंने इस आंदोलन को तेज करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

अयोध्या की धरती से हुआ आगाज़, साधु संत भी जुड़े

राम के सहारे शुरू हुए इस आंदोलन का पहला बड़ा पड़ाव अयोध्या में हुआ। 20-21 दिसम्बर 1920 को सरयू नदी के किनारे क़रीब एक लाख से ज्यादा किसान एकत्र हुए। किसानों के इस संघर्ष में अयोध्या के साधु संतों को भी पूरा साथ मिला। मठों और मंदिरों के दरवाजे किसानों को लिए खोल दिये गए। बाबा रामचंद्र ने अयोध्या में एकत्रित किसानों को रामनाम का सकंल्प दिलाया और सभी को एकजुट होने के लिए कहा। यहीं से यह आंदोलन मुख्यधारा से जुड़ते हुए आजादी के संघर्ष का भी हमराही बना और किसानों ने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का संकल्प लिया। अयोध्या में पंडित मोतीलाल नेहरु और जवाहरलाल नेहरू को भी आना था लेकिन वह नहीं आ पाए।

बाबा रामचंद्र ने किसानों को एकजुट रहने व गुलामी की मानसिकता छोड़ने के लिए मंच से ही एक संदेश दिया। मंच पर उन्होंने खुद को जंजीरों में जकड़े गुलाम की तरह पेश किया और अपनी जंजीरों को तभी खोली जब तक किसानों ने एकजुटता का संकल्प नहीं ले लिया। उन्होंने इसके सहारे किसानों को एकजुट रहने व गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए प्रेरित किया। किसानों ने सरयू के जल को हाथ में लेकर संकल्प लिया और ब्रिटिश सरकार व जमींदारों के खिलाफ़ अपने आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई। पूरी सभा जय सीताराम व जय जय राम के नारों से गूंज उठा। अयोध्या में जिस तरह से साधु संत इस आंदोलन से जुड़े उसका असर यह हुआ कि बाद में अन्य स्थानों में हुए किसानों के संघर्ष में साधु संत ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

जब सरयू का पानी हुआ था लाल

अवध किसान सभा के आंदोलन जगह जगह हो रहे थे,सरकार इससे परेशान थी। इस संघर्ष का सबसे प्रमुख घटना 7 जनवरी 1921 को हुई जब रायबरेली के मुंशीगंज में सैकड़ों किसानों को अपना बलिदान देना पड़ा और हजारों किसान घायल हुए। ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई इस वीभत्स घटना को गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने अखबार ‘प्रताप’ में दूसरा जालियांवाला बाग की संज्ञा दी थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इंडिपेंडेंट में इसपर विस्तार से लिखा है। कहा जाता है कि रातोंरात शवों को लेकर डलमऊ में गंगा में बहा दिया गया था और सई का पानी किसानों के खून से लाल हो उठा था।

दरअसल रायबरेली में किसान नेताओं की गिरफ्तारी से आक्रोशित किसान लाखों की संख्या में एकत्रित होकर रायबरेली जा रहे थे, जहां पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी आना था,। लेकिन मुंशीगंज सई नदी पर बने पुल पर दोनों तरफ से किसानों को ब्रिटिश पुलिस ने घेर लिया और गोलियों की बौछार कर दी।

भारतीय इतिहास में ब्रिटिश अत्याचार की सर्वाधिक प्रमुख घटनाओं में से यह एक थी। इस घटना के बाद पूरे देश में किसान आंदोलित हो उठे और कई मामलों में सरकार को पीछे हटना पड़ा। माहत्मा गांधी भी इससे बहुत व्यथित थे,लेकिन किसानों के इस संघर्ष ने उनका ध्यान अपनी ओर खींचा और बाद में कई प्रमुख आंदोलनों की जिम्मेदारी रायबरेली को मिली।

किसान आंदोलनों पर शोध करनेवाले और वरिष्ठ पत्रकार फ़िरोज नकवी कहते हैं कि मुंशीगंज गोलीकांड ब्रिटिश अत्याचार की इंतेहा थी,बावजूद इसके किसानों का जज्बा कम नहीं हुआ और आगे चलकर अवध के जिलों में आजादी की लड़ाई में मुख्य आधार बना।

(हिन्दुस्थान समाचार)

10:11 AM : Centre will borrow up to 1.10 lakh crore

Finance Ministry says Centre will borrow up to 1.10 lakh crore rupees on behalf of states to bridge the shortfall in GST collections.

9:57 AM : Potential role of Ayurveda in management of COVIDー19

9:44 AM : स्ट्रीट लाइब्रेरी

अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर की अनोखी स्ट्रीट लाइब्रेरी

कठिनाइयां और मुश्किलें हमेशा साथ-साथ रहती है, लेकिन कई बार कोई उम्मीद की किरण बन कर चला आता है, अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने को। कुछ ऐसा ही इन दिनों अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में देखने को मिला। जहां एक छोटे से इलाके निरजुली में नुरांग मीना स्ट्रीट लाइब्रेरी चला रही हैं।

नुरांग मीना को लगता है कि अरुणाचल में कोविड की चुनौतियों के बीच दूसरी भी ऐसी कई चुनौतियां हैं, जिसपर सभी को ध्यान देना होगा। स्ट्रीट लाइब्रेरी के जरिये मीना चाहती हैं कोविड के बाद भी बच्चों और किशोरों में न सिर्फ पढ़ने की आदत बनी रहे, बल्कि पढ़ाई में के लिये चाहत भी पैदा हो।

किताबों को जिंदगी का ह‍िस्सा बनाएं

नुरांग मीना बताती हैं कि यहां काफी ढूंढने पर कोई किताब मिलती है, सरकारी लाइब्रेरी काफी कम है। अगर किसी को कुछ पढ़ना है तो काफी मुश्किल होती थी। इसलिये जब स्ट्रीट लाइब्रेरी का आइडिया पता चला तो तुरंत इसे कॉपी कर लिया।

स्ट्रीट लाइब्रेरी का मीना का यह प्रयास आते-जाते बच्चों, छात्रों और सबसे जुड़ने की कोशिश है। ताकि वे यहां थोड़ा रूके, सोचे और हो सकता है एक दिन पढ़ने और जानने के तरीके को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लें।

हर साल हम देखते हैं स्कूल स्तर पर बच्चों का प्रोग्रेस कम होता जा रहा है। ऐसे में जो लोग किताबें नहीं खरीद सकते इतनी महंगी वो इसका प्रयोग कर सकते हैं। स्थानीय नागरिकों का भी कहना है कि उनके बच्चों को पहले स्कूल के बाद किताब और पढ़ाई से कोई मतलब नहीं होता था, लेकिन अब लाइब्रेरी से किताब लेकर पढ़ते हैं तो काफी अच्छा लगता है और विश्वास है कि वो आगे बढ़ेगे। निरजुली में स्ट्रीट लाइब्रेरी जो सिर्फ किताब घर ही नहीं है बल्कि ऐसा नुक्कड़ हैं जिसमें नई उम्मीदों का सूरज उग रहा है।

9:31 AM : Asan Conservation Reserve

9:30 AM : COVID-19 Testing Update:

9:06 AM : World Food Day

8:32 AM : 16 अक्टूबर - विश्‍व खाद्य दिवस पर विशेष

16 अक्टूबर – विश्‍व खाद्य दिवस पर विशेष

कोविड-19 महामारी फैलने पर जब दुनिया के तमाम देशों में जब लॉकडाउन लगाया गया, तो सबसे बड़ी चिंता लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की जताई गई। यहां तक संयुक्त राष्‍ट्र ने भी सभी सदस्य देशों को एक पत्र जारी करके कहा कि सरकारें अपने देश के लोगों को भूखे मत रहने दें। ऐसे में आबादी के लिहाज़ से दूसरे सबसे बड़े देश भारत पर सबसे बड़ा संकट था, लेकिन भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की नई योजना के साथ 130 करोड़ की आबादी वाले देश में 81 करोड़ लोगों के लिए भोजन का इंतजाम किया।

विश्‍व खाद्य दिवस, जिसे हर वर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है, पर भारत सरकार की इस उपलब्धि के बारे में जानना बेहद जरूरी है। क्योंकि भारत की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य वितरण योजना है। इस योजना पर बात करने से पहले हम एक नज़र डालते हैं इतिहास पर।

दि फूड एंड एग्रीकल्‍चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) संयुक्त राष्‍ट्र की इकाई है जो भुखमरी से लड़ने के लिए विश्‍व स्तर पर काम करती है। हर व्‍यक्ति को अच्‍छी गुणवत्ता का भोजन मिले, यह इस संगठन का मकसद है। यह संगठन 130 देशों में सक्रिय है। संगठन का मानना है कि दुनिया का हर व्‍यक्ति भुखमरी को खत्म करने में योगदान दे सकता है। एफएओ का मानना है कि दुनिया में पर्याप्त मात्रा में खाद्य उत्पादन होता है और हर किसी को पर्याप्‍त भोजन मिल सकता है। चिंताजनक बात यह है कि दो दशक के अथक प्रयासों के बवजूद आज भी 870 मिलियन लोग गंभीर रूप से भुखमरी का शिकार हैं। बच्चों की बात करें तो 171 मिलियन पांच वर्ष की आयु से कम के बच्‍चे हैं, जो कुपोषित हैं। वहीं 104 मिलियन बच्‍चों का वजन औसत से कम है। इनमें 55 मिलियन बच्‍चे गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार हैं।

भारत में खाद्य मंत्रालय का इतिहास

द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान भारत को खाद्य की भारी कमी का सामना करना पड़ा था और अपनी आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए 01 दिसम्‍बर, 1942 को गवर्नर जनरल्‍स काउंसिल के वाणिज्‍य सदस्‍य के अधीन एक खाद्य विभाग की स्‍थापना की गई थी। गृह विभाग ने एक नए खाद्य विभाग का गठन किया और बेंजामिन जॉर्ज होल्‍ड्सवर्थ, सीआईई, आईसीएस पहले सेक्रेटरी फूड बने।

बेंजमिन ने पदभार ग्रहण करते हुए कहा, “मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि भारत सरकार के खाद्य विभाग ने कार्य शुरू कर दिया है और इसने चीनी और नमक (लेकिन चाय अथवा कॉफी नहीं) सहित खाद्य पदार्थों के मूल्‍य और संचलन को नियंत्रित करने से संबंधित सभी मुद्दे अपने हाथ में ले लिए हैं। खाद्य पदार्थों से संबंधित निर्यात व्‍यापार नियंत्रण संबंधी प्रशासन इस विभाग को हस्‍तांतरित करने के संबंध में अधिसूचना जारी की जा रही है। सेना के लिए खाद्य पदार्थों की खरीद, जो इस विभाग का एक कार्य होगा, एतद्पश्‍चात् घोषित की जाने वाली तारीख तक आपूर्ति विभाग द्वारा जाती रहेगी।”

विभाग के कार्य में वृद्धि होने के कारण अगस्‍त, 1943 में खाद्य सदस्‍य का एक अलग पोर्टफोलियो बनाया गया। वर्ष 1946 में, जब भारत की अंतरिम सरकार बनी। तब डॉ. राजेन्‍द्र प्रसाद देश के पहले खाद्य एवं कृषि विभाग के मंत्री बने।

आज़ादी के बाद बढ़ती गई खाद्य मंत्रालय की जिम्मेदारी

भारत के आज़ाद होने के बाद खाद्य विभाग का पुनर्गठन किया गया। 29 अगस्‍त, 1947 को खाद्य मंत्रालय ने साकार रूप लिया। उपलब्‍ध रिकार्ड के अनुसार वर्ष 1947 में शर्करा और वनस्‍पति निदेशालय खाद्य मंत्रालय का एक अंग था। अधिक प्रशासनिक कार्य कुशलता और मितव्‍ययिता को ध्‍यान में रखकर 01 फरवरी, 1951 को कृषि मंत्रालय को खाद्य मंत्रालय के साथ मिला दिया गया, जिससे खाद्य और कृषि मंत्रालय का गठन हुआ। समय के साथ-साथ कार्य की मात्रा में उल्‍लेखनीय वृद्धि होने के कारण दो अलग मंत्रालयों अर्थात् खाद्य मंत्रालय और कृषि मंत्रालय का गठन अक्टूबर, 1956 में किया गया, लेकिन 17 अप्रैल, 1957 को फिर से इनका विलय करके खाद्य और कृषि मंत्रालय का नाम दिया गया। 30 दिसम्‍बर, 1958 को केंद्रीय और राज्‍य भंडारण निगमों से संबंधित कार्य खाद्य और कृषि मंत्रालय के अंतर्गत खाद्य विभाग को हस्‍तांतरित किया गया। और इसी तरह मंत्रालय का कारवां आगे बढ़ता गया ओर नई-नई जिम्मेदारियां बढ़ती गईं।

कोरोना काल में सबसे बड़ी खाद्यान्न वितरण योजना

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत सरकार ने मार्च 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का ऐलान किया। इस योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) और अंत्योदय अन्न योजना (AAY) में शामिल लगभग 81 करोड़ लोगों का पेट भरने का बीड़ा उठाया गया। 81 करोड़ यानी अमेरिका की जनसंख्‍या का ढाई गुना, यूरोपियन यूनियन की जनसंख्‍या का दुगना और यूके की जनसंख्‍या का 12 गुना। इन सभी लाभार्थियों को 5 किलो चावल/गेहूं मुफ्त प्रदान किया जा रहा है। राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अब तक कुल 33.40 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न उठाया जा चुका है।

इस योजना के तहत भारतीय खाद्य निगम ने खाद्यान्नों की खरीद में नए कीर्तिमान स्थापित किए। हाल ही में समाप्त फसल सीजन में 389.76 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 504.91 लाख मीट्रिक टन चावल की खरीद की गई। मई 2020 तक 74 करोड़ लोग इस योजना से लाभान्वित हुए। अप्रैल से जून, 2020 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के सफल कार्यान्वयन के बाद भारत सरकार ने इस योजना को जुलाई से नवंबर 2020 तक 5 महीने के लिए और बढ़ा दिया।

जुलाई से नवंबर, 2020 तक PMGKAY-II के लिए कुल आवंटन 200.19 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न (91.33 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 109.96 लाख मीट्रिक टन चावल) वितरित किया जाएगा। इस योजना के लाभार्थियों के साथ-साथ राज्य सरकारों से भी बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली है। PMGKAY-II के लिए आवंटित 200.19 लाख मीट्रिक टन अतिरिक्त खाद्यान्न सहित भारत सरकार द्वारा 5 महीनों के दौरान समाज के कमजोर वर्गों को वितरित किए जाने वाले खाद्यान्न की कुल मात्रा लगभग 455 लाख मीट्रिक टन होगी।

NFSA और AAY के तहत प्रत्येक लाभार्थी को सब्सिडी वाले कीमतों पर अपने नियमित रूप से मिलने वाले खाद्य अनाज के कोटा के अलावा 5 किलोग्राम गेहूं या चावल बिल्कुल मुफ्त दिया जा रहा है। खास बात यह है कि भारतीय खाद्य निगम ने इस काम के लिए व्यापक और विस्तृत लॉजिस्टिक प्लानिंग की और सुगमता के साथ क्रियान्‍व‍ित किया और बीते 5 महीनों में आवंटन के अनुसार खाद्यान्न स्टॉक देश के हर हिस्से तक पहुंचाया। इस योजना के क्रियान्‍वयन में शुरुआत में 1.7 लाख करोड़ रुपए का बजट रखा गया, जिसमें बाद में 90 हजार करोड़ रुपए का बजट और बढ़ाया गया।

विशेष आयोजन के साथ एमएओ की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा भारत

दि फूड एंड एग्रीकल्‍चर ऑर्गनाइजेशन की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्‍य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 रुपए के स्मृति सिक्के का अनावरण करेंगे। यह स्‍मृति सिक्का एफएओ के साथ मजबूत संबंधों का प्रमाण है। इस मौके पर भारत के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गईं फसलों की 17 जैविक प्रजातियों को राष्‍ट्र को समर्पित करेंगे। इस मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री, वित्त मंत्री, महिला एवं बाल विकास कल्‍याण मंत्री के साथ-साथ आंगनवाड़ी कार्यकत्रियां, कृषि विज्ञान केंद्रों, जैविक केंद्रों व हॉर्टी कल्‍चर में कार्यरत लोग शिरकत करेंगे।

15 October 2020

5:06 PM : Inter-ministerial meeting

3:40 PM : 9 Crore tests till date

3:03 PM : The Zojila Tunnel

2:55 PM : तेलंगाना बारिश

बारिश का कहर, राज्य में अब तक 32 की मौत,11 लापता

बंगाल की खाड़ी में बने हवा के कम दबाव से हैदराबाद और आसपास के क्षेत्रों में आसमान से कहर बरपा। पांच दिन से तेलुगु भाषी राज्यों में भारी बारिश से राज्य में अब तक 32 लोगों की अलग-अलग हादसों में मौत हो चुकी है। अभी 11 लोग लापता हैं। बचाव राहत कार्य में एनडीआरएफ के 40 दल और स्थानीय पुलिस लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार की शाम तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव से फोन पर भारी बारिश की जानकारी ली और हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया है कि अब तक शहर हैदराबाद में बारिश और जलभराव जनित हादसोें में 25 लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा महबूबनगर जिले में सात लोगों की मौत हुई है। अभी भी हैदराबाद शहर के विभिन्न पुलिस थाना क्षेत्रों में 11 लोग लापता होने की खबर है। कल देर रात चंद्रायणगुट्टा के मोहम्मद नगर में दो मकानों पर दीवार गिरने से सात लोगों की मौत हुई थी। पड़ोसी इब्राहिमपटनम में मकान गिरने से एक महिला और उसकी पुत्री की भी मौत हो गई। नगर के सीमांत क्षेत्र शमशाबाद थाना क्षेत्र में कल रात गगन पहाड़ के एक पुनर्वास केंद्र में बाढ़ का पानी घुसने से घबराकर आठ लोग केंद्र से बाहर निकल आए और पानी के तेज बहाव में बह गए।एनडीआरएफ के जवानों ने पांच लोगों को बचा लिया, परंतु पानी में डूबने से तीन लोगों की मौत हो गई। मृतकों के नाम करीमा बेगम (21) मोहम्मद आमिर( 20) और शेख साहिल (14) बताए गए।

अन्य घटना में बंजार हिल्स थाना के एक अपार्टमेंट में बारिश का पानी भरने के के बाद डॉक्टर सतीश रेड्डी की करंट की चपेट में आने से मौत हो गई।

अन्य एक घटना में सरूर नगर थाना परिधि के अंतर्गत साहित्य अपार्टमेंट्स के शहर में बारिश से भरे पानी में डूबने से तीन वर्षीय बालक की मौत हो गई। इसी क्रम में एक युवक की करंट लगने से मौत हो गइ्र। यह मामला एसआर नगर पुलिस थाना क्षेत्र में हुई।

अन्य घटना में एनडीआरएफ के दल ने घर में घुस आए बारिश के पानी में डूबने से मरे वृद्ध दंपति के शवों को बाहर निकाला। मृतकों की पहचान खानाजीजी गुड़ा निवासी बालरेडी (72) और उनकी पत्नी विजया रेडी (70) के रूप में हुई। दंपति के दोनों लड़के अमेरिका में कार्यरत हैं। दंपति अकेले घर में रह रहे थे।

मेला देवर पल्ली थाना क्षेत्र में घर में बारिश का पानी भरने से एक परिवार के आठ लोग अपना घर खाली कर रिश्तेदार के घर पैदल जा रहे थे। सभी लोग सड़क किनारे एक चबूतरे के सहारे पैदल जा रहे थे, तभी अचानक बारिश के कारण चबूतरा टूट गया और नौ लोग पानी में बह गए। स्थानीय लोगों ने इनमें एक को बचा लिया। पानी में बहने वालों के नाम दराफ शाह, तबस्सुम, अब्दुल खुद्दुस कुरैशी, अब्दुल वासे कुररैशी, अब्दुल वाजिद कुरैशी, अमीना, वाहबी कुरैशी और हमीरा बताई गई। इनमें दराफ शाह और तबस्सुम के शव बरामद हुए, जबकि अन्य छह लोगों की तलाश की जा रही है। जानकारी के अनुसार हैदराबाद के कई पुलिसकर्मी भी लापता हैं, जो अपनी ड्यूटी करने के लिए घर से निकले थे।

(हिन्दुस्थान समाचार)

2:01 PM : COVID-19 UPDATES

1:59 PM : COVID-19 UPDATES

1:23 PM : State-wise details of total confirmed COVID-19 cases

1:22 PM : India's COVID-19 recovery rate

10:22 AM : India's COVID-19 update

8:24 AM : Nation pays homage to Bharat Ratna Dr. APJ Abdul Kalam

8:00 AM : डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम की सादगी और आदर्श

डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम की सादगी और आदर्श

देश के पूर्व राष्ट्रपति, देश के महान वैज्ञानिक व प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) सच्चे अर्थों में ऐसे महानायक थे, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बीतने के बाद भी पूरा जीवन देश और मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया। छात्रों और युवा पीढ़ी को दिए गए उनके प्रेरक संदेश तथा उनके स्वयं के जीवन की कहानी देश की आनेवाली कई पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करने का कार्य करती रहेगी। न केवल भारत के लोग बल्कि पूरी दुनिया मिसाइलमैन डॉ. कलाम की सादगी, धर्मनिरपेक्षता, आदर्शों, शांत व्यक्तित्व और छात्रों व युवाओं के प्रति उनके लगाव की कायल थी।

डॉ. कलाम देश को वर्ष 2020 तक आर्थिक शक्ति बनते देखना चाहते थे। डॉ. कलाम का मानना था कि केवल शिक्षा के द्वारा ही हम अपने जीवन से निर्धनता, निरक्षरता और कुपोषण जैसी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। उनके ऐसे ही महान विचारों ने देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने और देश के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया। उनका ज्ञान और व्यक्तित्व इतना विराट था कि उन्हें दुनिया भर के 40 विश्वविद्यालयों ने डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की।

विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है उनका जन्‍मदिवस

तमिलनाडु के छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 अक्तूबर 1931 को जन्मे डॉ. कलाम छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए अक्सर कहा करते थे कि छात्रों के जीवन का एक तय उद्देश्य होना चाहिए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि वे हरसंभव स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करें। छात्रों की तरक्की के लिए उनके द्वारा जीवन पर्यन्त किए गए महान कार्यों को देखते हुए ही सन् 2010 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा उनका 79वां जन्म दिवस ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया और तभी से डॉ. कलाम के जन्मदिवस 15 अक्तूबर को प्रतिवर्ष ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।

समय-समय पर युवाओं को दिए गए उनके प्रेरक संदेशों की बात करें तो वे कहा करते थे कि अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हो तो पहले सूरज की तरह जलना सीखो। वे कहते थे कि अगर आप फेल होते हैं तो निराश मत होइए क्योंकि फेल होने का अर्थ है ‘फर्स्ट अटैंप्ट इन लर्निंग’ और अगर आपमें सफल होने का मजबूत संकल्प है तो असफलता आप पर हावी नहीं हो सकती। इसलिए सफलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एकमात्र रास्ता है।

देश के सबसे तेज दिमाग स्कूलों की आखिरी बेंचों पर मिलते हैं- एपीजे

डॉ. कलाम कहते थे कि आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते लेकिन अपनी आदतें बदल सकते हैं और निश्चित रूप से आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देंगी। वे हमेशा कहा करते थे कि महान सपने देखने वाले महान लोगों के सपने हमेशा पूरे होते हैं। उनका कहना था कि इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए कठिनाइयां बहुत जरूरी हैं। सपने देखना जरूरी है लेकिन केवल सपने देखकर ही उसे हासिल नहीं किया जा सकता बल्कि सबसे जरूरी है कि जिंदगी में स्वयं के लिए कोई लक्ष्य तय करें। कलाम साहब कहते थे कि इस देश के सबसे तेज दिमाग स्कूलों की आखिरी बेंचों पर मिलते हैं। हम सबके पास एक जैसी प्रतिभा नहीं है लेकिन अपनी प्रतिभाओं को विकसित करने के अवसर सभी के पास समान हैं। सादगी की प्रतिमूर्ति डॉ. कलाम के विराट व्यक्तित्व को परिभाषित करते कई किस्से सुनने को मिलते हैं।

डॉ. कलाम राष्ट्रपति जैसे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन रहते हुए भी आम लोगों से मिलते रहे। एकबार कुछ युवाओं ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की और इसके लिए उन्होंने उनके कार्यालय को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी मिलने के बाद डॉ. कलाम ने उन युवाओं को अपने पर्सनल चैंबर में आमंत्रित किया और वहां न केवल उनसे मुलाकात की बल्कि उनके विचार, उनके आइडिया सुनते हुए काफी समय उनके साथ गुजारा।

विशेष व्‍यवस्‍था से किया इंकार

जिस समय डॉ. कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, वे एक बार आईआईटी के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पहुंचे। उनके पद की गरिमा का सम्मान करते हुए आयोजकों द्वारा उनके लिए मंच के बीच में बड़ी कुर्सी लगवाई गई। डॉ. कलाम जब वहां पहुंचे और उन्होंने केवल अपने लिए इस प्रकार की विशेष कुर्सी की व्यवस्था देखी तो उन्होंने उस कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दिया, जिसके बाद आयोजकों ने उनके लिए मंच पर लगी दूसरी कुर्सियों जैसी ही कुर्सी की व्यवस्था करा
उनके मन में दूसरे जीवों के प्रति भी किस कदर करूणा और दयाभाव विद्यमान था, इसका अंदाजा इस घटनाक्रम से सहज ही लग जाता है। जब 1982 में वे डीआरडीओ के चेयरमैन बने तो उनकी सुरक्षा के लिए डीआरडीओ की सेफ्टी वाल्स पर कांच के टुकड़े लगाने का प्रस्ताव लाया गया लेकिन कलाम साहब ने यह कहते हुए उसके लिए साफ इनकार कर दिया था कि दीवारों पर कांच के टुकड़े लगाने से पक्षी नहीं बैठ पाएंगे और ऐसा करने की प्रक्रिया में पक्षी घायल भी हो सकते हैं। इस कारण उस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

बचपन के दोस्तों को नहीं भूलते थे कलाम साहब

राष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी कलाम अपने बचपन के दोस्तों को नहीं भूलते थे। 2002 में राष्ट्रपति बनने के बाद एकबार वे तिरुअनंतपुरम के राजभवन में मेहमान थे, तब उन्होंने अपने स्टाफ को वहां के एक मोची और ढाबे वाले को खाने पर बुलाने का निर्देश दिया। सभी उनके इस निर्देश को सुनकर हैरान थे। बाद में पता चला कि ये दोनों कलाम साहब के बचपन के दोस्त थे। दरअसल, कलाम साहब ने अपने जीवन का बहुत लंबा समय केरल में बिताया था और उसी दौरान उनके घर के पास रहने वाले उस मोची तथा ढाबे वाले से उनकी दोस्ती हो गई थी। राष्ट्रपति बनने के बाद जब वे तिरुअनंतपुरम पहुंचे, तब भी वे अपने इन दोस्तों को नहीं भूले और उन्हें राजभवन बुलाकर उन्हीं के साथ खाना खाकर उन्हें इतना मान-सम्मान दिया।

डॉ. कलाम के जीवन के अंतिम पलों के बारे में उनके विशेष कार्याधिकारी रहे सृजनपाल सिंह ने लिखा है कि शिलांग में जब वह डॉ. कलाम के सूट में माइक लगा रहे थे तो उन्होंने पूछा था, ‘फनी गाय हाउ आर यू’, जिसपर सृजनपाल ने जवाब दिया ‘सर ऑल इज वेल’। उसके बाद डॉ. कलाम छात्रों की ओर मुड़े और बोले ‘आज हम कुछ नया सीखेंगे’- इतना कहते ही वे पीछे की ओर गिर पड़े। पूरे सभागार में सन्नाटा पसर गया और इस प्रकार इस महान विभूति ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

(ह‍िन्‍दुस्थान समाचार)

14 October 2020

11:02 AM : COVID-19

10:11 AM : COVID-19

9:34 AM : COVID-19

9:13 AM : COVID-19

8:41 AM : इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए पूंजीगत व्यय को प्रोत्साहन दे रही मोदी सरकार

7:34 AM : वाराणसी में विकसित हुई तरबूज की नई प्रजाति

वाराणसी में विकसित हुई तरबूज की नई प्रजाति

केंद्र सरकार जहां किसानों के हित में बिल ला रही है, वहीं सरकारी संस्थान किसानों की खेती को उन्नत बनाने के लिये नये-नये प्रयोग कर रहे हैं,जिससे फसल का उत्पादन बढ़ सके और किसानों की आय दोगुनी हो सके।

इस बीच वाराणसी स्थित सब्जी अनुसंधान ने ऐसे तरबूजों की प्रजाति विकसित की है जो हमारे लिये स्वास्थ्यवर्धक है और किसान इसे पैदा कर अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं। सब्जी अनुसंधान के निदेशक डॉ जगदीश सिंह ने बताया कि अक्सर उपभोक्ता और किसानों ने देखा होगा कि मॉल आदि में अलग-अलग रंग और किस्म के तरबूज मिलते थे। ये सभी बाहर से मंगाये जाते रहे हैं। लेकिन पहली बार सब्जी अनुसंधान संस्थान ने तीन रंगों के तरबूज की प्रजाति विकसित करने का कार्य किया है।

इसमें एक नारंगी रंग जिसमें केरोटिन की मात्रा ज्यादा पायी जाती है, जिसे आम भाषा में विटामिन ए कहते हैं, जो आंख की रोशनी के लिये काफी फायदा होता है। दूसरा लाल रंग या गुलाबी है जिसमें लाइकोपीन की मात्रा बहुत ज्यादा पायी जाती है। ये एक तरह का स्ट्रॉंग एंटीबॉडी की तरह काम करता है। जिस तरह से इन दिनों इम्यून बढ़ाने में मदद करता है। तीसरा पीले रंग का तरबूज है, इस प्रजाति में ल्यूटिन नाम का तत्व ज्यादा पाया पाया जाता है, जो आंख की रेटिना को मजबूत करने में सहायक करता है।

वहीं इस बारे में तरबूत की प्रजाति को विकसित करने वाले वैज्ञानिक केशव गौतम बताते हैं कि पिछले 6 साल से इस शोध में लगे थे, जिसमें अब सफलता मिली है। इस पीले तरबूज में भी कैरोटीनेट से भरपूर होता है।

7:21 AM : General council election

Ladakh: Today is the last day for ongoing polling facility for senior citizens, differently abled voters for ensuing general council election of #LAHDC. Leh election authority conducts polling at residence of senior citizens, differently able persons for two days.

7:00 AM : Subsidised rate of 50 per cent in freight for transportation

13 October 2020

4:00 PM : कोविड-19 की मौजूदा स्थिति पर स्वास्थ्‍य मंत्रालय की प्रेसवार्ता

3:53 PM : 13 MoUs with premier academic institutions

3:22 PM : White Knight Corps

On assuming command of the White Knight Corps, Lt Gen M V Suchindra Kumar expressed that it was an honour to command such an elite formation with a rich history of J&K.

He exhorted all ranks to continue working with utmost zeal and enthusiasm.

3:21 PM : 21st meeting of Group of Ministers

2:29 PM :Flattening of curve started

1:19 PM : आत्मकथा 'देह वेचावा कारणी' का विमोचन

पीएम मोदी ने बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा ‘देह वेचावा कारणी’ का किया विमोचन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए डॉक्टर बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा का विमोचन किया। विखे पाटील की आत्मकथा का नाम ‘देह वेचावा कारणी’ है। इस दौरान प्रधानमंत्री द्वारा ‘प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी’ का नाम बदलकर ‘लोकनेते डॉ. बालासाहेब विखे पाटिल प्रवर रूरल एजुकेशन सोसाइटी’ रखे जाने की भी घोषणा की गई।

कार्यक्रम के दौरान महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने संबोधन के दौरान कहा “विखे पाटील की आत्मकथा आम आदमी को नई आशा देती है। विखे पाटिल की आत्मकथा में सफल जीवन के सूत्र है।” फडणवीस ने यह भी कहा कि “विखे पाटील की आत्मकथा वंचित वर्गों को नई राह दिखाने वाली है। किताब में जल प्रबंधन के सफल प्रयोगों का वर्णन है। विखे पाटील समतामूलक समाज की वकालत करते थे।”

ततपश्चात कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लोगों को संबोधित किया। आइए जानते हैं उन्होंने अपने संबोधन के दौरान किन महत्वपूर्ण बातों का उठाया…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के अंश, उन्होंने कहा :

मैं राधाकृष्णा विखे पाटिल जी, उनके परिवार और अहमदनगर के सभी साथियों का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे इस पुण्य अवसर से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया।

गांव, गरीब, किसान का जीवन आसान बनाना, उनके दुख, उनकी तकलीफ कम करना, विखे पाटिल जी के जीवन का मूलमंत्र रहा है।

डॉक्टर बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा का विमोचन आज भले हुआ हो लेकिन उनके जीवन की कथाएं आपको महाराष्ट्र के हर क्षेत्र में मिलेंगी।

उन्होंने सत्ता और राजनीति के जरिए हमेशा समाज की भलाई का प्रयास किया। उन्होंने हमेशा इसी बात पर बल दिया कि राजनीति को समाज के सार्थक बदलाव का माध्यम कैसे बनाया जाए, गांव और गरीब की समस्याओं का समाधान कैसे हो।

गांव गरीब के विकास के लिए, शिक्षा के लिए, उनका योगदान हो, महाराष्ट्र में cooperative की सफलता का उनका प्रयास हो, ये आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देगा। इसलिए, बालासाहेब वीखे पाटिल के जीवन पर ये किताब हम सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

डॉक्टर बालासाहेब विखे पाटिल ने गांव, गरीब और किसानों के दुख को, दर्द को नजदीक से देखा, समझा। इसलिए वो किसानों को एक साथ लाए, उन्हें सहकार से जोड़ा। ये उन्हीं का प्रयास है कि जो इलाका कभी अभाव में जीने को मजबूर था, आज उसकी तस्वीर बदल गई है।

एक प्रकार से उनके लिए सहकारिता सबके साथ से सबके कल्याण का मार्ग थी। सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, अटल जी की सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने देश के अनेक क्षेत्रों में सहकारिता को बढ़ावा दिया, उसके लिए प्रयास किया।

जब देश में ग्रामीण शिक्षा की उतनी चर्चा भी नहीं होती थी, तब प्रूरल एजुकेशन सोसायटी के माध्यम से उन्होंने गांवों के युवाओं को प्रोत्साहित करने का काम किया।

इस सोसायटी के माध्यम से गांव के युवाओं के शिक्षा और कौशल विकास को लेकर, गांव में चेतना जगाने के लिए उन्होंने जो काम किया वो हम भली-भांति जानते हैं। ऐसे में आज से प्रवरा रूरल एजुकेशन सोसायटी के साथ भी बालासाहेब का नाम जुड़ना उतना ही उचित है।

बालासाहेब विखे पाटिल जी के मन में ये प्रश्न ऐसे ही नहीं आया। ज़मीन पर दशकों तक उन्होंने जो अनुभव किया, उसके आधार पर उन्होंने ये बात कही। बालासाहेब विखे पाटिल के इस सवाल का उत्तर आज के ऐतिहासिक कृषि सुधारों में है।

आज खेती को, किसान को अन्नदाता की भूमिका से आगे बढ़ाते हुए, उसको उद्यमी बनाने, Entrepreneurship की तरफ ले जाने के लिए अवसर तैयार किए जा रहे हैं।

चाहे वो MSP को लागू करने, उसे बढ़ाने का फैसला हो, यूरिया की नीम कोटिंग हो, बेहतर फसल बीमा हो सरकार ने किसानों की हर छोटी-छोटी दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया है।

डॉक्टर बाला साहेब विखे पाटिल महाराष्ट्र के गांवों की एक और समस्या के समाधान को लेकर हमेशा प्रयासरत रहे। ये समस्या है पीने और सिंचाई के पानी की दिक्कत।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत महाराष्ट्र में बरसों से लटकी 26 परियोजनाओं को पूरा करने के लिए तेजी से काम किया गया। इनमें से 9 योजनाएं अब तक पूरी हो चुकी हैं। इनके पूरा होने से करीब-करीब 5 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा मिली है।

गांवों की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में माइक्रो फाइनेंस का विशेष रोल है। मुद्रा जैसी योजना से गांव में स्वरोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। यही नहीं बीते सालों में देश में सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी करीब 7 करोड़ बहनों को 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण दिया गया है। किसानों, पशुपालकों और मछुआरों, तीनों को बैंकों से आसान ऋण मिल पाए, इसके लिए सभी को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा दी गई है।

11:00 AM : डॉ. बालासाहेब विखे पाटिल की आत्मकथा का विमोचन कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

10:49 AM : WHO on Aarogya Setu

10:32 AM : बता रहे हैं डॉक्टर्स, कोविड से ठीक होने के बाद मरीज के कमरे को कैसे साफ करें?

10:22 AM : Kharif Marketing Season

Centre has said that paddy procurement for Kharif Marketing Season 2020-21 is going on smoothly in the procuring states.

Consumer Affairs, Food and Public Distribution Ministry said that so far about 42.55 Lakh Metric Tonnes of paddy has been procured from over 3.57 lakh farmers with MSP value of over Rs. 8,032 crore.

10:13 AM : India's COVID19 recovery rate

9:46 AM : COVID-19 Updates

9:35 AM : COVID-19 Testing Update

8:20 AM : India is showing a trend of declining average daily cases

8:02 AM : धान की खरीद

8:00 AM : भारत-आर्मीनिया

भारत-आर्मीनिया : 3 वर्ष में तीन गुना बढ़ा व्यापार

अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच युद्धविराम होने के तुरंत बाद फिर से जंग छिड़ गई है। जाहिर है इससे दोनों देशों के लोगों की जान पर खतरा मंडरा रहा है। यही नहीं, नागोर्नो-काराबाख़ नाम के जिस इलाके को लेकर जंग चल रही है, वहां से कई मध्‍य एशियाई देशों की पेट्रोल की पाइपलाइनें जाती हैं। जाहिर है इस जंग के चलते बाकी देशों के साथ व्यापार पर प्रभाव जरूर पड़ेगा। भारत भी उन देशों में से एक है। अगर आर्मीनिया के भारत के साथ व्‍यापारिक रिश्‍तों पर नज़र डालें तो बीते तीन वर्षों में भारत का निर्यात तीन गुना बढ़ा है।

सीधे अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो 2017 में भारत ने आर्मीनिया को कुल 19.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर के उत्पाद एक्‍सपोर्ट किये। वहीं 2018 में यह बढ़कर 51.4 मिलियन डॉलर और 2019 में 61.3 मिलियन डॉलर का हो गया। वहीं आर्मीनिया से आयात की बात करें तो 2017, 2018 और 2019 में क्रमश: 2.8 मिलियन डॉलर, 0.56 मिलियन डॉलर और 3.49 मिलियन डॉलर रहा।

क्या-क्या वस्‍तुएं आर्मीनिया को निर्यात करता है भारत?

विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत से आर्मीनिया निर्यात की जाने वाली वस्‍तुओं में मीट, कृषि उत्पाद, विद्युत उपकरण, कटे एवं पॉलिश किए हुए हीरे, ऑप्‍ट‍िकल उपकरण, प्लास्टिक की वस्‍तुएं, कपड़े, कॉसमेटिक, फार्मास्‍युटिकल, रासायनिक उत्‍पाद एवं कारें प्रमुख रूप से शामिल हैं। वहीं आर्मीनिर्या से भारत को नॉन-फेरस धातु और रॉ रबर निर्यत किया जाता है।

आर्मीनिया में भारत द्वारा विकसित परियोजनाओं की बात करें तो कल्‍पतरु पावर ट्रांसमिशन लिमिटेड, गांधीनगर, गुजरात ने आर्मीनिया में एक ऊर्जा संयंत्र को डिजाइन करने के साथ-साथ हाई वोल्‍टेज ट्रांसमिशन टावर एवं उनके उपकरणों की सप्‍लाई व इंस्‍टॉलेशन का काम किया है।

दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए भारतीय दूतावास ने 2017 में येरेवान में एक प्रस्‍ताव रखा था, जिसमें मुख्‍य रूप से गुजरात में पर्यटन के अवसरों पर बात की गई थी। उसी तरह आंध्र प्रदेश पर भी एक प्रस्‍ताव रखा गया। बीच-बीच में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच व्‍यापारिक मुद्दों पर निरंतर बातचीत का सिलसिला जारी है।

12 October 2020

6:37 PM : भारतमाला परियोजना

6:22 PM : कौशल विकास योजना 3.0

 साल 2022 तक 40 करोड़ लोगों को कुशल बनाने का लक्ष्य

(876 words)

नेशनल स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम यानी कौशल विकास योजना ने अब देश के अंदर ही नहीं बल्कि विदेशों में विभि‍न्न प्रकार के उद्योगों के लिए जरूरी स्किल्स पर भी फोकस करना शुरू कर दिया है। इसके लिए आने वाले ढाई से तीन वर्षों यानी 2022 तक 40 करोड़ लोगों में विभिन्न प्रकार के स्किल विकसित करने का लक्ष्‍य रखा गया है।

दरअसल रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार कौशल विकास योजना के तीसरे चरण को लागू की तैयारी कर रही है। नवंबर के पहले सप्ताह में इसको लागू कर दिया जाएगा। केन्द्र सरकार इससे पहले इसको दो चरणों में लागू करके परिणाम दे चुकी है, इससे छोटे-बड़े स्तर पर लोगों को रोजगार मिल चुका है। सरकार ने अगामी पांच महीने में आठ लाख युवाओं को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से संबंधित विभाग के अधिकारियों को जल्दी योजना को लागू कर युवाओं को सभी क्षेत्रों में कोर्स करवा रोजगार देने के आदेश दिए गए हैं।

स्वतंत्र टिप्पणीकार योगेश कुमार सोनी के अनुसार समय अभाव के चलते कौशल परिषद् को भी एक्टिव कर दिया जिससे प्रोग्राम की प्रारंभिकता से तेजी से कार्य शुरू हो जाए। अगले सप्ताह में ही सभी दिशा-निर्देश तैयार हो जाएंगे। कौशल विकास के तीसरे चरण को इस वर्ष जुलाई महीने में ही शुरू करना था लेकिन कोरोना की वजह से स्थगित हो गया। कोरोना की वजह से अन्य तमाम योजनाओं में भी देरी हो रही हैं लेकिन इस योजना से प्रशिक्षण के बाद तुरंत लाखों लोगों को रोजगार मिलता है तो सरकार ने इसको प्राथमिकता दी है। देश अनलॉक हो रहा है, जिस वजह से प्रवासी कामगारों का अपने स्थानों पर लगातार लौटने का सिलसिला लगातार जारी है। इस वजह से कौशल विभाग गंभीरता के साथ कामगारों के लिए संचालन प्रक्रिया पर काम करने लग गया था।

कारगर साबित हो रहा ‘असीम’ पोर्टल

बीते दिनों मंत्रालय ने ‘असीम’ नामक पोर्टल को लांच किया जिससे बड़े स्तर पर फायदा मिला। संवाद में पारदर्शिता के साथ इस पोर्टल पर उद्योगों और प्रशिक्षित मजदूरों को काम मिला। सरकार हर व्यवसाय को खोलने में लगी है जिससे बड़ी संख्या में कामगारों को काम मिल रहा है। कौशल विकास के तीसरे चरण में जिला स्तर पर भी काम होगा। जिला कौशल परिषद् को स्थानीय स्तर पर संचालित करते हुए रोजगार के मुताबिक प्रशिक्षण का कार्यक्रम तैयार होगा, जिससे प्रशिक्षित युवाओं को अपने क्षेत्र में ही रोजगार मिल सके। इस योजना का दूसरा चरण लगभग साढ़े चार साल चला, जिसमें पूरे देशभर से करीब एक करोड़ युवाओं को रोजगार मिला था, इसमें महिलाओं की संख्या भी बराबर थी।

प्रशिक्षण के बाद तमाम लोगों के जीवन में बदलाव आए, इन परिवारों के जीवन की खुशियां आई। यह किसी भी सरकार का फर्ज होता है कि गरीब व मध्यम तबके के लिए इस तरह की नीतियों पर काम करती रहे जिससे इन वर्ग के लोगों के जीवन निर्वाह पर किसी प्रकार का कोई संकट न आए। मोदी सरकार की यह अहम योजनाओं में एक है, जिससे प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल रहा है। कौशल विकास योजना की वजह से समाज में कम पढ़े-लिखे लोगों को काम के साथ सम्मान मिला है। पूरी दुनिया में कम शिक्षित लोगों को कहीं भी बेहतर नौकरी नहीं मिलती। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं उनका पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता या वह गरीबी या जिम्मेदारी की वजह से नहीं पढ़ पाते हैं। आज के दौर में तो अशिक्षित होना अभिशाप समझा जाने लगा।

स्वतंत्र टिप्पणीकार योगेश कुमार सोनी लिखते हैं कि यह बात स्वभाविक भी है कि जबतक आप पढ़े-लिखे नहीं हो तो किसी भी कोर्स में दाखिला नहीं मिलता। लेकिन यदि आपने कभी गौर किया हो तो कुछ किताबी शिक्षा में होशियार नहीं होते लेकिन उनका दिमाग अन्य क्षेत्रों में बहुत तेज होता है। ऐसे बच्चे भी आगे चलकर जिंदगी में इसलिए विफल हो जाते थे चूंकि उनके पास अपनी मंजिल पाने का माध्यम नहीं होता था। अब कौशल विकास योजना ने हमारे देश में इस चलन को तोड़ दिया है। गरीबी या लाचारी इस बात का बहाना नहीं बन सकती कि आप अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच सकते। इस योजना से आज युवा बेहतर तनख्वाह पा रहे हैं। अशिक्षित व कम शिक्षित लोगों को बेहद कम पैसा मिलता था लेकिन अब इस योजना के आधार पर ऐसे युवा शिक्षित लोगों की तरह सैलरी ले रहे हैं।

5:44 PM : Vice President, M Venkaiah Naidu tested negative

As per today’s RT-PCR test conducted by a medical team from AIIMS, both the Vice President and his wife, Usha Naidu have tested negative for COVID-19.

5:02 PM : GST Council meeting

4:41 PM : 14 investors sign MoUs with Tamil Nadu government

4:23 PM : Arunachal Pradesh to feature on country’s aviation map

4:13 PM : कौशल विकास योजना

चालीस करोड़ लोगों को कुशल बनाने का लक्ष्य

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना मंत्रालय के अलावा सरकार ने स्किल इंडिया में आने वाले नेशनल स्कि‍ल डेवलपमेंट मिशन, स्किल लोन स्कीम, नेशनल पॉलिसी फॉर स्किल डवलपमेंट और आंत्रप्रेन्योरशिप के तहत साल 2022 तक कुल चालीस करोड़ लोगों को कुशल बनाने का लक्ष्य रखा है। कोरोना की वजह से इस बड़े लक्ष्य को पूरा करने में एक-दो वर्ष अतिरिक्त लग सकते हैं। चूंकि बीते दिनों दुनिया के हर देश की अर्थव्यवस्था की हालत बिगड़ गई। हमारे देश की जीडीपी को भी झटका लगा जिसपर विपक्ष व कुछ लोगों ने ऐसे तंज कसा था कि मानो यह सिर्फ भारत में ही हुआ हो।

बहरहाल, कौशल विकास योजना के तीसरे चरण का देश के युवाओं को बेसब्री से इंतजार है। सरकार अपनी ओर से इसको जल्द अंजाम देने का भरसक प्रयास कर रही है। इस योजना के जरिये देश के लाखों युवाओं को एकबार फिर अपना भविष्य बनाने का मौका मिलेगा।

(ह‍िन्दुस्थान समाचार)

3:33 PM : LTC के बदले में नकद भुगतान

सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए LTC के बदले में नकद भुगतान और 10,000 ₹ का फेस्टिवल एडवांस सरकार का उचित समय पर लिया गया एक महत्त्वपूर्ण फैसला। यह कदम देश में न केवल मांग को बढ़ाएगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को और बेहतर बनाने में भी उपयोगी सिद्ध होगा।

12:55 PM : 44 पुलों का वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक साथ उद्घाटन

चीन-पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर जारी है तनाव : रक्षामंत्री

पड़ोसी देश पाकिस्तान जहां 2020 के पहले छह महीने में जहां ढाई हजार बार युद्ध विराम का उल्लंघन कर चुका है। इसके साथ-साथ लद्दाख में चीन के साथ जारी गतिरोध के बीच रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि सीमाओं पर तनाव लगातार बना हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारी उत्तरी और पूर्वी सीमा पर पहले पाकिस्तान और अब चीन द्वारा एक मिशन के तहत विवा द पैदा किया जा रहा है।

रक्षामंत्री सोमवार को सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा बनाए गए 44 पुलों का वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से एक साथ उद्घाटन और अरुणाचल प्रदेश में नेचिपु सुरंग के शिलान्यास के अवसर पर संबोधित कर रहे थे । इस मौके पर उन्होंने कहा कि इन देशों के साथ हमारी लगभग सात हजार किमी की सीमा मिलती है, जहां आए दिन तनाव बना रहता है। इतनी समस्याओं के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भरोसेमंद और दूरदर्शी नेतृत्व में यह देश न केवल इन संकटों का दृढ़ता से सामना कर रहा है बल्कि सभी क्षेत्रों में बड़े और ऐतिहासिक बदलाव भी किए जा रहे हैं। बीआरओ ने इस साल योजनाबद्ध तरीके से 102 पुलों में से 54 को पूरा कर लिया है।

अनेक समस्याओं का समान रूप से सामना कर रहा है देश

रक्षामंत्री ने कहा, “एक साथ इतनी संख्या में पुलों का उद्घाटन और सुरंग का शिलान्यास करना अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड है। सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित ये पुल कनेक्टिविटी और विकास के एक नए युग की शुरूआत करेंगे, ऐसी मेरी उम्मीद है। उन्होंने कहा कि आज हमारा देश हर क्षेत्र में कोवि ड-19 के कारण उपजी अनेक समस्याओं का समान रूप से सामना कर रहा है। वह चाहे कृषि हो या अर्थव्यवस्था, उद्योग हो या सुरक्षा व्यव स्था , सभी इस कारण गहरे प्रभावित हुए हैं।”

राजनाथ सिंह ने कहा कि हाल ही में राष्ट्र को समर्पित अटल टनल इसका जीता-जागता उदाहरण है। यह न केवल भारत, बल्कि विश्व के इतिहास में यह निर्माण अद्भुत और उत्कृष्ट है। यह टनल हमारी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के साथ ही हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के जनजीवन में बदलाव का नया अध्याय है। आज राष्ट्र को समर्पित किए गए पुलों से हमारे पश्चिमी, उत्तरी और उत्तर-पूर्व के दूर-दराज के क्षेत्रों में सैन्य और नागरिक परिवहन में बड़ी सुविधा होगी।

सीमा से लगे क्षेत्रों में पुलों का बहुत महत्व

उन्होंने आगे कहा कि हमारे सशस्त्र बलों के जवान बड़ी संख्या में ऐसे क्षेत्रों में तैनात होते हैं जहां पूरे वर्ष परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है। इन पुलों में कई छोटे तो कई बड़े पुल हैं, पर उनकी महत्ता का अंदाजा उनके आकार से नहीं लगाया जा सकता। शिक्षा हो या स्वास्थ्य, व्यापार हो या खाद्य आपूर्ति, सेना की मौलिक आवश्यकता हो या अन्य विकास के काम, उन्हें पूरा करने में ऐसे पुलों और सड़कों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों, सुरंगों और पुलों का लगातार निर्माण आप लोगों की कनेक्टिविटी और सरकार के दूरदराज के क्षेत्रों में पहुंचने के प्रयास को दर्शाता है। ये सड़कें न केवल सामरिक जरूरतों के लिए होती हैं, बल्कि राष्ट्र के विकास में सभी की समान भागीदारी सुनिश्चित करती हैं। लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी बीआरओ ने उत्तर पूर्वी राज्यों, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में निरंतर कार्य किया है। दूरदराज के स्थानों पर बर्फ निकासी में देरी न हो, यह सुनिश्चित करते हुए बीआर ने अपना काम सदैव जारी रखा। पिछले दो वर्षों के दौरान 2200 किलोमीटर से अधिक सड़कों की कटिंग की गई है। साथ ही लगभग 4200 किलोमीटर लंबी सड़कों की सरफेसिंग की गई है।

उन्होंने कहा कि आज से 5-6 साल पहले तक संगठन का वार्षिक बजट तीन से चार हज़ार करोड़ रुपये हुआ करता था जो इस समय 11 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है। यानी लगभग तीन गुना बढ़ गया है और कोविड-19 महामारी के बावजूद बीआरओ के बजट में कोई कमी नहीं की गई है। हमारा हमेशा प्रयास रहा है कि हम देश के विकास में जी-जान से लगे कर्मियों और संगठनों को अधिक से अधिक सुविधा और आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराएं।

(हिन्दुस्थान समाचार)

 

8:15 AM : 'भारत में मित्रों' का धन्यवाद

8:00 AM : 8 of India’s serene beaches get the prestigious Blue Flag Certification

7:55 AM : Indian exports to Armenia

The Indian exports to Armenia increased three-fold in last three years

India’s trade with Armenia is steadily increasing which stood at USD 64.79 million in 2019 and the total exports to the latter have increased three folds for the period 2017-2019.

The Indian export to Armenia was USD 19.8 million in 2017, USD 51.4 million in 2018 and USD 61.3 million in 2019. While the Indian imports from Armenia was USD 2.8 million, USD 0.56 million and USD 3.49 million in 2017, 2018 and 2019 respectively.

Significantly, Indian exports to Armenia consist of bovine meat, agricultural products, electrical equipment, cut and polished diamonds, optical equipment, plastics, pharmaceuticals, cosmetics, garments, chemical goods and cars, while Armenia’s exports include non-ferrous metals and raw rubber.

In recent past the Indian companies like “Kalpataru Power Transmission Limited,” Gandhinagar (Gujarat) had completed a power project in Armenia for designing, supplying and installation of high voltage transmission towers in the country.

Many bilateral events are organized to promote the trade between the two countries. The Indian Embassy organized a presentation in Yerevan on 23 August, 2017 on investment and tourism opportunities in Gujarat.

A similar presentation on Andhra Pradesh was organized on 17 November, 2017.

The industrial visits also plays a significant role in promoting bilateral trade. A delegation from Pharmaexcil visited Armenia in November 2019 and held meeting with Mr. Arsen Torosyan, Minister of Health of Armenia, Mr. Varos Simonyan, Deputy Minister of Economy, and representatives of different government bodies of Armenia.

Similarly in 2017, a 12-member business delegation sponsored by MEA and led by CII visited Armenia from 28-29 September, 2017. Development Foundation of Armenia organized a business forum with the delegation on 28 September, 2017.

Moreover, CII had signed a MOU with Development Foundation of Armenia and another MOU with Chamber of Commerce and Industry of Armenia.

Besides, six delegates from the Ministry of Health of Armenia participated in the Advantage Healthcare Summit organized by Ministry of Commerce, FICCI and Services Export Promotion Council (SEPC) from 12-14 October, 2017 in Bangalore.

7:41 AM : फेलूदा जांच की शुरुआत की संभावना

अगले कुछ सप्ताह में फेलूदा जांच की शुरुआत की संभावना : डॉ. हर्ष वर्धन

केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने संडे संवाद के पांचवें एपिसोड में सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के साथ विचार-विमर्श किया और उनके द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दिया।

डॉ. हर्ष वर्धन ने निकट भविष्य में फेलूदा जांच की शुरुआत किए जाने की अच्छी खबर साझा की। इंस्टिट्यूट ऑफ जिनोमिक्स एंड इंटेग्रेटिव बायोलॉजी (आईजीआईबी) में 2000 से अधिक मरीजों पर किए गए इस जांच के परीक्षण और निजी प्रयोगशालाओं में जांच से 96 प्रतिशत संवेदनशीलता और 98 प्रतिशत विशिष्टता का पता चलता है। आईसीएमआर की वर्तमान की आरटी-पीसीआर किट की कम से कम 95 प्रतिशत संवेदनशीलता और कम से कम 99 प्रतिशत विशिष्टता के स्वीकृत मानदंड की तुलना में फेलूदा जांच सही प्रतीत होती है। उन्होंने कहा कि एसआरएस-सीओवी2 के फेलूदा पेपर स्ट्रिप टेस्ट को सीएसआईआर-आईजीआईबी ने विकसित किया है और इसे व्यावसायिक शुरुआत के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने अनुमति दी है।

कोरोना के बारे में अफवाहों तथा गलत-फहमियों को निराधार बताते हुए स्वास्थ्य मंत्री ने कोविड के खिलाफ जंग में आयुर्वेद की भूमिका की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आईसीएमआर की दोबारा संक्रमण के मामलों, वैक्सीन के चयन के लिए मानदंड और कोविड के वैक्सीन पर आईसीएमआर काम कर रहा है। चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र के निवासियों के समक्ष आई कठिनाइयों के बारे में जानकर उन्होंने पब्लिक प्लेटफॉर्म पर अपने संपर्क का विवरण दिया और भरोसा दिलाया कि क्षेत्र के निवासियों के समक्ष आने वाले सभी मुद्दों का प्राथमिकता के आधार पर हल किया जाएगा।

वैक्सीन दो खुराक और तीन खुराक की हैं

उन्होंने बताया कि कोविड-19 वैक्सीन वर्तमान में परीक्षण के दौर में हैं और यह वैक्सीन दो खुराक और तीन खुराक के हैं। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के वैक्सीन के लिए दो खुराक जरूरी होंगी, जबकि केडिला हेल्थ केयर वैक्सीन के लिए तीन खुराक जरूरी होंगी। प्री-नैदानिक विभिन्न चरणों के वैक्सीन में अभी खुराक के बारे में परीक्षण किया जा रहा है। कोविड वैक्सीन के रूप में अन्य नये कैंडिडेट शामिल किए जाने की आवश्यकता पर उन्होंने कहा कि भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए कोई भी एक वैक्सीन या वैक्सीन विनिर्माता पूरे देश में वैक्सीन की आवश्यकता पूरी नहीं कर पाएगा। इसलिए हम भारत की जनसंख्या की उपलब्धता के अनुरूप देश में कोविड-19 के कई वैक्सीन का प्रयोग करने की व्यावहार्यता पर विचार करने के लिए तैयार हैं।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि ई-संजीवनी के विभिन्न राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभागों में 12,000 से अधिक प्रैक्टिशनर हैं और उनकी सेवाएं देश के 26 राज्यों के 510 जिलों के लोग प्राप्त कर रहे हैं। इस प्लेटफॉर्म पर एक लाख परामर्श लेने के लिए तीन महीने का समय लगा, जबकि अगले एक लाख परामर्श पर केवल तीन सप्ताह में लिए गए। यह एक बड़ी सफलता है। संडे संवाद के दौरान डॉ. हर्ष वर्धन ने बताया कि पहले चरण में कोरोना पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को 3,000 करोड़ रुपये जारी किए थे।

उन्होंने कहा कि गुडुची, अश्वगंधा, गुडुची और पिपली के मिश्रण और आयुष-64 से संबंधित काफी अध्ययन हैं, जो यह साबित करते हैं कि इनमें प्रतिरोधक क्षमता, एंटी-वायरल, एंटीपायरेटिक और एंटीइन्फ्लेमेट्री गुण हैं। सिलिको अध्ययन में इन दवाओं के कोविड-19 के वायरस के साथ अच्छी निकटता दिखाई दी है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रोफिलेक्सीस, कोविड-19 के सेकेंडरी रोकथाम और प्रबंधन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए सरकार द्वारा गठित बहु-विषयी कार्यबल की सिफारिश पर वैज्ञानिक अध्ययन शुरू किए गए हैं।

च्यवनप्राश के फायदों के बारे में डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि नैदानिक अध्ययन से उपलब्ध सूचना से पता चलता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से एक निश्चित समयावधि में च्यवनप्राश लेते हैं, उनके समग्र स्वास्थ्य स्तर और प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। हालांकि चीनी एक आवश्यक तत्व है, लोग चाहें तो बाजार में उपलब्ध शुगर-फ्री च्यवनप्राश ले सकते हैं।

(हिन्दुस्थान समाचार)

11 October 2020

2:10 PM : संडे सवांद

1:32 PM : SVAMITVA scheme

12:23 PM : India and Armenia have historic relations

India and Armenia have historic relations dating back to thousands of years

(362 words)

India and Armenia enjoy very historic relations which dates back to thousands of years which includes Indian settlements in Armenia as early as 149 BC.

According to literary evidence, there were Indian settlements in Armenia established by two Indian Princes (Krishna and Ganesh escaping from Kannauj) who along with their families and large retinue had arrived in Armenia as early as 149 BC and were allotted land in Taron region (now in Turkey) by the then rulers of Armenia.

Historians have suggested that when Assyrian warrior queen Semiramis invaded India in 2000 BC, some Armenians accompanied her as they probably did Alexander the Great in 326 BC.

Thomas Cana is said to be the first Armenian to have landed on the Malabar Coast in 780 AD. The first guidebook to Indian cities in Armenian was written in the 12th century. By middle ages, the Armenian towns of Artashat, Metsbin and Dvin had become important centers for barter with India which exported precious stones, herbs and stones to Armenia and imported hides and dyes. A few Armenian traders had come to Agra during the Mughal Empire.

Emperor Akbar, who is believed to have an Armenian wife Mariam Zamani Begum, was highly appreciative of the commercial talents and integrity of the Armenians, granted them numerous privileges and considerable religious freedom as also an opportunity to serve in his empire in various capacities.

In the 16th century, Armenian communities emerged in Kolkata, Chennai, Mumbai and Agra, where the first Armenian Church was consecrated in 1562. Indian classical singer Gauhar Jaan, the first to be recorded on gramophone in 1902 was of Armenian origin.

The Armenian language journal “Azdarar” published in Madras (Chennai) in 1794 was the first ever Armenian journal published anywhere in the world.

The vestigial Armenian community in India is now mainly settled in Kolkata. The Holy Church of Nazareth, erected in 1707, repaired and embellished in 1734 is the biggest and the oldest Armenian Church in Kolkata.

During the Soviet era, President Dr. S. Radhakrishnan (September 1964) and Prime Minister Indira Gandhi (June 1976) visited the Armenian Soviet Socialist Republic.

12:11 PM : International Day of Girl Child

11:00 AM : स्वामित्व योजना का शुभारम्‍भ

10:44 AM : अगर यूनीफॉर्म पहन कर काम पर जाते हैं, तो क्या रोज़ धोना जरूरी है?

10:37 AM : Big Opportunity

10:05 AM : Dussehra celebrations

9:59 AM : COVID-19 Testing Update

9:48 AM : रूसी राइफल्स भारत में ही होंगी अपग्रेड

800 मीटर तक की मारक क्षमता वाली रूसी राइफल्स भारत में ही होंगी अपग्रेड

(702 words)

भारतीय सशस्त्र बलों में डीएसआर के नाम से पहचानी जाने वाली रूसी ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल्स को अब जल्द ही ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत स्वदेशी तरीके से अपग्रेड किया जायेगा। बेंगलुरु की निजी कंपनी एसएसएस डिफेंस तीन दशक पुरानी राइफल्स को सेमी ऑटोमेटिक राइफल जैसा बनाएगी, जिससे लम्बी दूरी तक आसानी से एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाया जा सकेगा। अपग्रेड होने के बाद इन रायफल्स से नाइट फायरिंग भी हो सकेगी और इसके अलावा अन्य नई विशेषताएं होंगी।

दरअसल 1950 के दशक के अंत में एक सोवियत हथियार डिजाइनर येवगेनी ने ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल को डिजाइन किया था। यह एक गैस संचालित शॉर्ट स्ट्रोक पिस्टन राइफल है। 1963 में पूर्व सोवियत सशस्त्र बलों ने इस्तेमाल करने से पहले व्यापक परीक्षण किया था। 1970 के दशक के अंत तक इनका इस्तेमाल महाद्वीपों के कई देशों में युद्ध में भी किया गया था। इसके बाद भारतीय सेना ने भी रूसी कंपनी कलाश्निकोव से इन राइफल्स की बड़े पैमाने पर खरीद की थी। पुराने जमाने की यह रूसी राइफल्स अब नई तकनीक के जमाने में कमजोर पड़ने लगी हैं, इसलिए इन्हें अपग्रेड किये जाने का प्रस्ताव सेना की तरफ से रक्षा मंत्रालय के सामने रखा गया।

800 मीटर तक की मारक क्षमता

डीएसआर के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में से एक भारतीय सेना के अधिकारी भी मानते हैं कि लगभग 800 मीटर तक की मारक क्षमता वाली इन राइफल्स के लिए समय के साथ मिशन के मापदंड और संचालन की प्रकृति बदल गई है। इसके बावजूद तीन दशक पुराने इन हथियारों का अब तक उन्नयन नहीं किया जा सका है। इन राइफल्स को रात के अंधेरे में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि वास्तव में इन डीएसआर में नाइट विजन माउंट जैसा कोई सिस्टम ही नहीं है। दिन में भी ज्यादा दूरी तक इस्तेमाल किये जाने की इनकी क्षमता नहीं है। तकनीक के मामले में पुरानी पड़ चुकी इन राइफल्स में लकड़ी के बटस्टॉक्स लगे हैं जिससे सटीकता के साथ निशाना लगाने में भी दिक्कत होती है।

सूत्रों के अनुसार एक डीएसआर की बैरल आसानी से 7,000 राउंड तक फायर कर सकती है जबकि अधिकांश से अब तक 3,000 से अधिक फायर नहीं किये गए हैं। यानी इन राइफल से फायर करने के क्षमता अभी खत्म नहीं हुई है लेकिन इसके बावजूद मौजूदा समय में यह एक स्नाइपर हथियार नहीं हो सकता है। सेना को कम से कम 1.2 किमी और उससे अधिक के प्रभावी रेंज वाले घातक स्नाइपर हथियार चाहिए जिसको देखते हुए इनके बदले जाने या इनका अपग्रेड किया जाना बेहद जरूरी है। भारतीय सेना को इस समय लम्बी दूरी तक मार करने वाली आधुनिक स्नाइपर राइफल की जरूरत है। सीमा पर तैनात उच्च प्रशिक्षित स्नाइपर्स के हाथों में सिर्फ 500 से 800 मीटर तक मध्यम दूरी वाली राइफल्स देना उनके लिए एक अखरोट को फोड़ने के बराबर है।

पैदल सेना की मांग पूरी की जा सकती है

रूसी ड्रैगुनोव स्नाइपर राइफल (डीएसआर) को अपग्रेड करके पैदल सेना की मांग पूरी की जा सकती है, इसीलिए इनके उन्नयन कार्यक्रम का उल्लेख रक्षा मंत्रालय द्वारा अगस्त में रखी गई नकारात्मक आयात सूची में 58वें नंबर पर किया गया है लेकिन इसके लिए दिसम्बर, 2020 तक की अवधि निर्धारित की गई है। यानी दिसम्बर के बाद रूसी कंपनी से इनको अपग्रेड नहीं कराया जा सकता। इस बीच बेंगलुरु की कंपनी एसएसएस डिफेंस इन रूसी राइफल्स को स्वदेशी तरीके से अपग्रेड के लिए सामने आई है। सेना की उत्तरी कमान ने लगभग तीन दशक पुरानी 90 राइफल को अपग्रेड किये जाने का प्रस्ताव रखा है जबकि सेना का अनुमान है कि यह रायफल्स करीब 7,000 हैं।

एसएसएस डिफेंस का कहना है कि हमारी दृष्टि भारत को विश्व स्तरीय मातृभूमि सुरक्षा प्रणालियों के साथ सक्षम बनाने की है। हम सेना की तीन दशक पुरानी रूसी स्नाइपर राइफल्स और कार्बाइन को ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत स्वदेश में ही अपग्रेड करने पर काम कर रहे हैं। उनकी टीम भारतीय सेना की पुरानी राइफल्स को एक नए सामरिक बटस्टॉक और मोनोपॉड के साथ युद्ध में इस्तेमाल करने लायक तैयार करेगी। इनमें ऊपर और नीचे लगे हैंड गार्ड्स बदले जायेंगे, जिससे पकड़ने और इस्तेमाल करने में आसानी होगी। इसके अलावा पिस्टल ग्रिप, मजल ब्रेक, ऑप्टिक माउंट, एडाप्टर लगाने के बाद यह सेमी ऑटोमेटिक राइफल हो जाएगी, जिससे लम्बी दूरी तक आसानी से एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाया जा सकेगा।

(हिन्दुस्थान समाचार)

9:00 AM : A landmark day for rural development!

10 October 2020

6:48 PM : हेमकुंड साहिब

वर्ष की अंतिम अरदास के साथ हेमकुंड साहिब के कपाट शीतकाल के लिए हुए बंद

(473 words)

हेमकुंड साहिब-लोकपाल के कपाट सर्दियों तक के लिए शनिवार को बंद कर दिए गए हैं। साथ ही हिंदुओं के पवित्र तीर्थ लक्ष्मण मंदिर-लोकपाल के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। इस वर्ष की अंतिम अरदास मे करीब साढ़े तेरह सौ श्रद्धालुओं की मौजूदगी रही। बोले सो निहाल के जयकारों के बीच दोपहर ठीक डेढ़ बजे हेमकुंड साहिब के कपाट बंद कर दिए गए। इसी के साथ लक्ष्मण मंदिर लोकपाल तीर्थ के कपाट भी विधिविधान के साथ शीतकाल के लिए बंद किए गए।

सिखों के पवित्र धाम हेमकुंड साहिब के कपाट शनिवार को पूरे विधविधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। सुबह नौ बजे से कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत शबद कीर्तन, मुख वाक के बाद दोपहर साढ़े बारह बजे हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथी भाई मिलाप सिंह द्वारा इस वर्ष की अंतिम अरदास की गई। अरदास के बाद विश्व को कोरोना जैसी महामारी से जल्द मुक्ति के लिए भी प्रार्थना की गई। इस मौके पर हेमकुंड साहिब में करीब साढ़े तेरह सौ श्रद्धालुओं की मौजूदगी रही। दोपहर करीब डेढ़ बजे पंच प्यारों की अगुवाई मे पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिब को दरबार हाल से सतखंड मे सुशोभित किया गया और जयकारों के बीच कपाट बंद किए गए।

हेमकुंड साहिब के कपाट बंद होने के मौके पर हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के जनरल सेक्रेट्री सरदार रविन्दर सिंह तथा पटियाला, अमृतसर, पुणें, नागपुर, कानपुर व उत्तराखंड के बाजपुर की संगत पहुंची थी।

4 सितम्बर को हेमकुंड साहिब के कपाट खोले गए थे

हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के मुख्य प्रबंधक सरदार सेवा सिंह के अनुसार इस वर्ष कोरोना के कारण बीती 4 सितम्बर को हेमकुंड साहिब के कपाट खोले गए थे। और इन 36 दिनों मे करीब साढ़े आठ हजार श्रद्धालुओं ने हेमकुंड साहिब पंहुचकर पवित्र सरोवर मे स्नान किया व गुरुद्वारे में माथा टेका। उन्होंने बताया कि कोरोना की गाइड लाइन का पूरी तरह से पालन किया गया। इसमे श्रद्धालुओं ने भी भरपूर सहयोग दिया। गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी द्वारा प्रतिदिन गुरुद्वारों व सराय को सेनिटाइज किया गया और श्रद्धालुओ काे सेनिटाइज व मास्क देकर ही गुरुद्वारों मे प्रवेश कराया गया।

सेवा सिंह ने बताया कि कोरोना के चलते कम अवधि के लिए ही हेमकुंड साहिब के कपाट खोले जा सके लेकिन इस दौरान श्रद्धालुओं के साथ स्थानीय प्रशासन, पुलिस प्रशासन व स्थानीय जनमानस का यात्रा संचालन मे पूर्ण सहयोग मिला। उन्होने ट्रस्ट की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि बहुत ही कम स्टाफ होने के वावजूद ट्रस्ट की ओर से श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कतें नही हुई।

इधर, हिंदुओं के पवित्र तीर्थ लक्ष्मण मंदिर-लोकपाल के कपाट भी शनिवार को पूरे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस मौके पर भ्यूंडार-पुलना व आस-पास के ग्रामीण मौजूद रहे।

(हिन्दुस्थान समाचार)

5:32 PM : नई शिक्षा नीति

नई शिक्षा नीति से भारत बनेगा शिक्षा का वैश्विक गंतव्य : निशंक

देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में हमारी प्रतिभा, गतिशीलता और विभिन्न अकादमिक विषयों में एकदम नये निष्कर्षों और प्रगति के साथ हमारी प्राचीन विरासत की सर्वश्रेष्ठ परंपराओं को जोड़ने की हमारी क्षमता के माध्यम से न केवल भारत बल्कि अखिल विश्व की शिक्षा प्रणाली के लिए नई दृष्टि तैयार करने की क्षमता है। इससे देश के बच्‍चों और युवाओं को नई दिशा मिलेगी और वो पहले से और अधिक सशक्त होंगे आत्मनिर्भर होंगे।

यह बात केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने शनिवार को एक वेबिनार में कही। “भारत- उच्च शिक्षा हेतु वैश्विक गंतव्य : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में” विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने शिक्षा का लोकतंत्रीकरण किया है और इसमें दिए गए प्रावधानों से भारत शिक्षा का एक वैश्विक गंतव्य बनेगा।

उन्होंने कहा कि हमारी पांच हजार साल प्राचीन संस्कृति शिक्षा प्रणाली, वर्तमान में अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए कोई नई बात नहीं है। पश्चिम में यूनानियों, फारसियों और अरबों से लेकर पूर्व में तिब्बतियों, चीनी, जापानियों तक समस्त विश्व के अनेक विद्वानों ने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, शारदा और हमारे अन्य प्राचीन विश्वविद्यालयों में अध्ययन किया है।

त्वरित परिवर्तनों के दौर

निशंक ने कहा कि हमारे शिक्षण संस्थानों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी हम वैश्विक शिक्षा प्रणाली में आए त्वरित परिवर्तनों के दौर में कहीं पिछड़ गए हैं। इस मामले में आईआईटी और कुछ अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा लाए गए मौलिक परिवर्तनों जैसे कि अंतः शाखाओं में अध्ययन कार्यक्रम, छात्रों को अपनी सर्वश्रेष्ठ नैसर्गिक प्रतिभा के निखारने के लिए प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रम, उनके मस्तिष्क को बंधे-बंधाए आजीविका के ढर्रे से मुक्त करना या दूसरों की महत्वाकांक्षा के बोझ ढोने से मुक्त होना, औपचारिक शिक्षा से अल्पअवकाश लेना और आईआईटी जैसे संस्थानों में नहीं होने के बावजूद शैक्षिक संसाधनों से सर्वश्रेष्ठ लाभ प्राप्त करना, जैसे प्रावधानों से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने अंततः शिक्षा का लोकतंत्रीकरण किया है।

भारतीय मेधा का लोहा वैश्विक मंच पर स्वीकार भी किया जा रहा है

शिक्षा मंत्री ने भारतीय प्रतिभा की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारतीय मेधा का लोहा वैश्विक मंच पर स्वीकार भी किया जा रहा है – चाहे वह हमारी व्याकरण प्रणाली और संस्कृत भाषा हो या हमारी शास्त्रीय और लोक कलाओं के विभिन्न रूप हों, सभ्यता की शुरुआत करने वाली मानवजाति के संदर्भ में विज्ञान की खोज का एक नया नजरिया हो, भारत के पास इन सभी मामलों में और अन्य अनेक क्षेत्रों में अनेक समृद्ध संसाधन हैं। इसके अलावा, हमारी विविधता के कारण हम न केवल सामाजिक अध्ययन बल्कि साइबर भौतिकीय अध्ययन के सामाजिक पहलुओं के अनुभव को भी और समृद्ध कर सकते हैं।

आईआईटी खड़गपुर पूर्व छात्र फाउंडेशन इंडिया ने आईआईटी खड़गपुर के साथ मिलकर और आईआईटी खड़गपुर फाउंडेशन यूएसए, पैन आईआईटी इंडिया और पैन आईआईटी यूएसए द्वारा आयोजित वेबिनार में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री संजय धोत्रे, उच्च्च शिक्षा सचिव अमित खरे, आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वी के तिवारी, पूर्व-छात्र फाउंडेशन इंडिया के अध्यक्ष वरदराजन शेषमानी, आईआईटी भुवनेश्वर बोर्ड के सदस्य एवं वेबिनार के अध्यक्ष कमांडर वी के जेटली, आईआईटी खड़गपुर फाउंडेशन, यूएसए, बोर्ड के सदस्य, पैन आईआईटी यूएसए, के अध्यक्ष रॉन (रणबीर) गुप्ता एवं अन्य गणमान्य सदस्य उपस्थित थे।

(हिन्दुस्थान समाचार)

10:19 AM : स्वामित्व योजना

9:55 AM : Anti Radiation Missile

9:49 AM : हर दसवां व्यक्ति कोरोना से संक्रमित

9:32 AM : Government reforms

Government natural gas marketing reforms to boost the sector

The government has taken key decisions with an aim to boost natural gas production in the country which allows affiliate companies to buy gas produced from non-regulated fields.

“If you look at economically then in the last 30-40 years many decisions have been taken in regard to the natural resources which had a big impact on the market. As the discussion on climate and environment is continuing the natural gases as an alternative fuel is gaining popularity,” Jayanta Das, Economic Analyst.

He adds “the government’s decision for its production and other aspects would emerge as a milestone for the sector.”

He points out that “the earlier governments have also promoted the use of alternative fuel but what was lacking to align the policy documents which the present government has done well. The beneficiaries like ONGC and OIL India Limited will have to see how they roll over to gain and integrate their businesses from fossil fuels to natural resources.”

Now affiliate companies are allowed to buy gas produced from non-regulated fields as part of giving complete marketing freedom to them.

From the period of 2016-19, the government gave pricing freedom for all fields except those given to State-owned Oil and Natural Gas Corp (ONGC) and Oil India Ltd (OIL) on a nomination basis.

But, there were restrictions on marketing including a ban on affiliates of producers buying the fuel and in some cases, a state nominee being mandated to offtake the gas. This restricted competition kept prices artificially low.

The government had also approved natural gas marketing reforms.

9:19 AM : COVID 19

9:00 AM : 4km की दुर्गम पैदल यात्रा

9 October 2020

5:01 PM : SoPs for amusement parks

4:49 PM : दुर्गा पूजा के लिए गाइडलाइन जारी,

दुर्गा पूजा के लिए गाइडलाइन जारी, नहीं बनेंगे पंडाल और तोरण द्वार

बिहार के बेगूसराय में आगामी दुर्गा पूजा को लेकर सरकारी निर्देशानुसार शुक्रवार को जिला प्रशासन ने गाइडलाइन जारी कर दी है। डीएम अरविन्द कुमार वर्मा ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि इस बार कोरोना को लेकर जिले में कहीं भी मेला का आयोजन नहीं किया जाएगा। लाउडस्पीकर समेत सभी प्रकार के ध्वनि विस्तारक यंत्र के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गयी है।

पंडाल का निर्माण किसी विशेष थीम पर नहीं किया जा सकता है, तोरण द्वार भी नहीं बनाए जाएंगे। प्रतिमा को छोड़कर आसपास का शेष भाग खुला रहेगा। मंदिर के आसपास किसी प्रकार के स्टॉल नहीं लगाए जाएंगे। सामूहिक प्रसाद के वितरण पर भी रोक लगा दी गई है। किसी भी प्रकार का सामूहिक भोज, अतिथियों को आमंत्रित या उद्घाटन समारोह नहीं किया जा सकता है। डीएम ने बताया कि दुर्गा पूजा में जुलूस की अनुमति किसी भी दुर्गा पूजा समिति के लोगों को नहीं दी जाएगी। रावण का दहन भी सार्वजनिक स्थल पर नहीं किया जाएगा। रामलीला, नाच-गान, डांडिया नृत्य पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।

हर हाल में 25 अक्टूबर को विजयादशमी के दिन जिला प्रशासन द्वारा चिन्हित स्थानों पर ही प्रतिमा का विसर्जन बिना जुलूस के करवाया जाएगा। दुर्गा पूजा समितियों के सभी लोगों की यह जिम्मेदारी होगी कि अपने—अपने पूजा मंदिर के भीतर बिल्कुल भीड़ नहीं लगने देगें। माता भगवती का खोईंछा भरने में भी भीड़ नहीं लगने दी जाएगी। पूजा समिति के लोगों के साथ शनिवार को एक बैठक करके सरकार द्वारा दिए गए सभी गाइडलाइन की जानकारी पूजा समिति के लोगों को दे दी जाएगी। पूजा करने के लिए आने वाले लोगों के लिए समिति को सैनिटाइजर की व्यवस्था करने के साथ-साथ कोरोना प्रोटोकॉल का हर हाल में पालन करना होगा।

3:55 PM : ‘कैल्शियम नाइट्रेट’ और 'बोरोनेटेड कैल्शियम नाइट्रेट'

2:41 PM : कोविड अपडेट

91.05 प्रतिशत लोग कोरोना की जंग जीतकर लौटे घर

अनलॉक-5 में जिंदगी पटरी पर लौट चुकी है तो कोरोना बैकफुट पर पहुंच गया है। हरियाणा के लिए अनलॉक-5 की शुरूआत राहत भरी है। पिछले एक सप्ताह से संक्रमण दर में हर रोज गिरावट आ रही है तो रिकवरी रेट रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुका है। अब महज 9 प्रतिशत ही कोरोना संक्रमित बचे हैं, जबकि 91.05 प्रतिशत मरीज कोरोना को हरा कर घर लौट आए हैं।

हालांकि चिंता की बात यह है कि अनलॉक-5 में मृत्युदर में इजाफा हो रहा है, जिससे स्वास्थ्य विभाग व सरकार चिंतित है। हरियाणा में अभी तक एक लाख 38 हजार 682 संक्रमित मिले हैं। इनमें से एक लाख 26 हजार 267 मरीज कोरोना से ठीक हो गए हैं। अब महज 10 हजार 867 केस एक्टिव बचे हैं। हर रोज एक्टिव मरीजों का आंकड़ा घट रहा है, जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है अनलॉक-5 में कई जिले कोरोना से मुक्त हो सके हैं।

अहम पहलू यह भी है कि शुरुआती दौर में कोरोना फैलाव का केंद्र रहे पलवल व नूंह जिले में सबसे कम एक्टिव केस हैं। नूंह में मात्र 78 तो पलवल में 97 मरीज ही उपचाराधीन हैं। वहीं एक दर्जन जिलों में 500 से कम एक्टिव केस हैं, जहां रिकवरी रेट हर रोज सुधर रहा है और मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। इनमें सोनीपत, रेवाड़ी, अंबाला, पानीपत, नारनौल, झज्जर, भिवानी, कुरुक्षेत्र, सिरसा, फतेहाबाद, यमुनानगर, जींद, कैथल व चरखी-दादरी शामिल हैं।

बहरहाल, रिकवरी रेट में लगातार सुधार से कंटेनमेंट जोन में भी कमी आ रही है। यही नहीं प्रत्येक 10 लाख पर जांच का आंकड़ा भी 84 हजार 35 पर पहुंच गया है। इसके साथ ही 21 लाख 30 हजार 281 सैंपल लिए गए हैं, जिसमें से महज 6.53 प्रतिशत ही कोरोना संक्रमित मिले हैं, बाकी 19 लाख 85 हजार 376 यानि 94 प्रतिशत सैंपलों की रिपार्ट नेगेटिव आई है। छह माह में 1548 लोग कोरोना की जंग हार गए, जिनमें 1082 पुरुष तो 466 महिलाएं शामिल हैं।

दिनांक पॉजिटिव रेट रिकवरी रेट मृत्युदर डबलिंग रेट
30 सितम्बर 6.72 87.77 1.07 30
01 अक्टूबर 6.69 88.55 1.08 30
02 अक्टूबर 6.68 88.83 1.08 31
03 अक्टूबर 6.65 89.20 1.09 31
04 अक्टूबर 6.64 89.89 1.09 32
05 अक्टूबर 6.63 90.13 1.11 33
06 अक्टूबर 6.57 90.55 1.11 34
07 अक्टूबर 6.55 90.86 1.11 34
08 अक्टूबर 6.53 91.06 1.12 35

2:43 PM : स्वामित्व योजना

2:03 PM : Vacancies in J&K

Jammu and Kashmir Lieutenant Governor Manoj Sinha says 25,000 vacancies in Union Territory will be filled soon.

1:47 PM : World Post Day

1:11 PM : Recovery rate improves

12:34 PM : COVID-19 Testing Update

11:41 AM : नोबेल साहित्य पुरस्कार

अमेरिकी कवयित्री लुईस ग्लक को नोबेल साहित्य पुरस्कार

इस वर्ष का नोबेल साहित्य पुरस्कार अमरीका की कवयित्री लुईस ग्‍लक को दिया जाएगा। येल विश्‍वविद्यालय की प्रोफेसर ग्‍लक ने 1968 में लेखन शुरू किया था। उनकी पहली पुस्‍तक फर्स्‍ट बॉर्न थी। वे समकालीन अमरीकी साहित्‍य में सबसे प्रसिद्ध कवयित्री और निबंधकार हैं। नोबेल अकादमी ने कहा कि 77 वर्षीय अमेरिकी कवयित्री को उनकी अद्व‍ितीय काव्यात्मक आवाज़ के लिए सम्मानित किया गया था, जो खूबसूरती के साथ व्यक्तिगत अस्तित्व को सार्वभौमिक बनाती है।

1993 के बाद यानी 27 वर्षों के बाद साहित्य में नोबेल पुरस्‍कार दिया गया है। 1993 में टोनी मॉरिसन को यह सम्मान मिला था। और तो और ग्लक यह सम्मान प्राप्‍त करने वाली 16वीं महिला और पहली अमेरिकी महिला हैं। यह पुरस्कार कई साल के विवाद के बाद दिया गया है। साल 2018 में यह पुरस्कार तब टाल दिया गया था, जब स्वीडिश अकादमी यौन शोषण के आरोपों से हिल उठी थी और इसके सदस्यों को सामूहिक रूप से इस्तीफा देना पड़ा था।

लुईस ग्लक के बारे में

ग्लक के माता-पिता हंगरी के आप्रवासी थे जो अमेरिका में जाकर बस गए। लुइस का जन्‍म न्यूयॉर्क में हुआ। बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक रखने वाली लुइस ने कविता के बारह संग्रह और कविता पर निबंध के कुछ संस्करणों को प्रकाशित किया। फर्स्ट बॉर्न के साथ 1968 में अपनी शुरुआत करने के बाद, वे जल्द ही अमेरिकी समकालीन साहित्य में सबसे प्रमुख कवियों में से एक के रूप में प्रशंसित हुईं।

येल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर सारा लॉरेंस कॉलेज और कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर चुकीं ग्लक ने 1993 में काव्य में पुलित्जर पुरस्कार भी जीता। उनके सबसे प्रशंसित संग्रह, द वाइल्ड आइरिस के लिए यह पुरस्‍कार दिया गया।

10:23 AM : eSeeeevani OPD

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने राज्य भर में ऑनलाइन eSeeeevani ओपीडी योजना की शुरुआत की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य आम लोगों को उनके घरों में ही ऑनलाइन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना है।

10:09 AM : COVID-19 Updates

9:59 AM : मोनोक्लोनल एंटीबॉडी

9:13 AM : कोरोना महामारी से देश की जंग जारी

कोविड-19 के एसिम्प्टोमैटिक मरीज़ों पर आयुष मंत्रालय के सचिव से ख़ास बातचीत

कोरोना महामारी से देश की जंग जारी है। इस महामारी की अभी कोई दवा या वैक्सीन ईज़ाद नहीं हुई है। इस बीच आयुष मंत्रालय ने एसिम्प्टोमेटिक मरीजों और मामूली लक्षण वाले मरीजों के लिए नया प्रोटोकॉल जारी किया है। इस विषय पर आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्यराज डॉ. राजेश कटोच से ख़ास बातचीत की।

राजेश कटोच ने बताया कि देश में 110 स्थानों पर करीब 5 लाख लोगों पर अलग-अलग औषधियों का ट्रायल किया गया है। जिसमें गिलोय, अश्वगंधा, आयुष 64 और गुडूची को एसिम्प्टोमैटिक और हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिये रिकमेंड किया गया है। उन्होंने कहा कि यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करने के बाद ही लोगों को बताय गया है। गुडूची पिपली को भी इसके लिये अच्छा माना गया है। इसमें हल्दी वाला दूध भी बताया गया है। ये सभी बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं और इसके प्रमाण भी है।

वहीं कौन कितनी मात्रा में लेना है इस पर कहा कि अगर कोई सामान्य लेना चाहता है तो गुडूची और अश्वगंधा की दोनों की अलग-अलग 500 मिलीग्राम की टेबलेट आती है या फिर उनके चूर्ण भी आते हैं 3 ग्राम सुबह-शाम ले सकते हैं। अगर किसी माइल्ड कोविड हो गया है तो इसकी टेबलेट सुबह-शाम ले सकते हैं। काढ़ा से लोगों को परेशानी पर उन्होंने कहा कि सुबह-शाम काढ़ा पीने से कोई परेशानी नहीं होती। यह महज अफवाह है कि इससे लिवर खराब होता है।

8:28 AM : New recoveries in India

8:27 AM : बडे़ सुधारों को मंजूरी

8:00 AM : विश्‍व डाक दिवस

9 अक्टूबर – विश्‍व डाक दिवस, जानिए कुछ अहम बातें

ई-मेल, व्‍हॉट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर, एसएमएस आज के आधुनिक युग की जरूरत जरूर हैं, लेकिन लोगों को एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जोड़ने का काम चिठ्ठी ही करती है। चिठ्ठी कोई भी हो, जिसे मिलती है, उसे रुला देती है। गम का संदेश हो, तो ऑंखें नम हो जाती हैं या पढ़ते-पढ़ते लोग रोने लगते हैं, और अगर खुशखबरी हो तो खुशी के ऑंसू छलक आते हैं। पिता या भाई की चिठ्ठी हो, तो आदर और सम्मान का भाव दिल में भर जाता है, मॉं या बहन की हो, तो एक अलग ही प्‍यार दिल को छू जाता है। पति या पत्नी की चिठ्ठी हो तो छिप कर बार-बार पढ़ने का मन करता है, दोस्‍त की हो, तो लोग दिल खोल कर पढ़ते हैं…

9 अक्‍टूबर यानी कल विश्‍व डाक दिवस है और डाक दिवस पर चिठ्ठी के साथ-साथ डाक की अन्‍य सेवाओं पर बात करना तो बनता है। और इसीलिए हम प्रस्‍तुत कर रहे हैं डाक से जुड़े कुछ ऐसे रोचक तथ्‍य, जो शायद आप नहीं जानते हैं।

डाक से जुड़े रोचक तथ्‍य

  • हर साल 9 अक्‍टूबर को दुनिया के 150 से अधिक देश विश्‍व डाक दिवस मनाते हैं।
  • चिठ्ठी पहुंचाने की सुविधा देने वाले पहली डाक सेवा यूनियन पोस्‍टल सर्विस की शुरुआत 9 अक्‍टूबर 1874 को स्विट्जरलैंड में हुई थी।
  • 1969 में टोक्यो में आयोजित यूपीयू कांग्रेस में 9 अक्‍टूबर को विश्‍व डाक दिवस घोषित किया गया।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान डाक के जरिए सामान भ‍िजवाने की प्रक्रिया में भारी गिरावट दर्ज हुई। पूरी दुनिया में करीब 21 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई।
  • पहला डाक दस्तावेज 255 ईसा पूर्व का मिस्र में पाया गया था। हालांकि डाक सेवा की शुरुआत लगभग हर महाद्वीप में उससे पहले ही हो चुकी थी।
  • पेन्नी ब्लैक पहला एड्हेसिव स्‍टैम्‍प था, जिसे ग्रेट ब्रिटेन में 1 मई 1840 को जारी किया गया था। 6 मई के बाद व मान्‍य हुआ था।
  • पूरी दुनिया में डाक नेटवर्क फैला है, जिसके करीब 650,000 ऑफिस हैं और करीब 5.3 मिलियन लोग उसमें काम करते हैं।
  • भारत में 1541 में शेर शाह ने घोड़ा डाक की शुरुआत की थी, जिसका दायरा करीब 2000 मील यानी बंगाल से सिंध तक था।
  • 1672 में मैसूर महाराजा चिक्‍का देवराया वाडियार ने मैसूर अंचे की स्‍थापना की।
  • 1766 में रॉबर्ड क्लाइव ने भारत में नियमित डाक सेवा की शुरुआत की।
  • 1774 में वॉरन हेस्टिंग्‍स ने डाक घरों की स्‍थापना की शुरुआत की।
  • 31 मार्च 1774 को भारत का पहला जनरल पोस्‍ट ऑफिस (जीपीओ) कलकत्ता में खुला।
  • 1 जून 1786 को दूसरा जीपीओ मद्रास में खुला और 1794 में तीसरा जीपीओ मुंबई में खोला गया।
  • 1850 में पोस्‍ट ऑफिस कमीशन की स्‍थापना की गई।
  • 1854 में पोस्‍ट ऑफिस कानून XVII लागू हुआ।
  • 1860 में पहला पोस्‍टल मैनुअल प्रकाशित किया गया।
  • 1873 में पहला एम्‍बॉस्‍ड इन्‍वेलप शुरू हुए।
  • 1876 में भारत यूनिवर्सल पोस्‍टल यूनियन में शामिल हुआ।
  • 1879-1880 में पोस्‍टकार्ड आये, रेलवे डाक सेवा, मनी ऑर्डर, आदि की शुरुआत हुई।
  • 1882 में पहली बार पोस्‍ट ऑफिस में बचत खाता की सुविधा उपलब्‍ध करायी गई।
  • 1884 में पोस्‍ट लाइफ इंश्‍योरेंस की सेवा शुरू हुई।
  • 1886 में एक आना का रेवेन्‍यू स्‍टैम्‍प आया।
  • 1935 में पोस्‍टल ऑर्डर आया।
  • 1947 में भारत की स्‍वतंत्रता पर तीन डाक टिकट जारी किए गए।
  • 1 अगस्त 1986 को भारत में स्पीड पोस्‍ट की शुरआत हुई।

8 October 2020

10:32 AM : महामारी से जंग

10:21 AM : Unite2FightCorona

10:03 AM : वायुसेना दिवस

अधिकारी जिन्होंने पैराशूटिंग और स्‍काई-डाइविंग में बनाये कीर्तिमान

भारतीय वायुसेना का स्थापना दिवस हर साल 8 अक्टूबर को मनाया जाता है। हम सभी जानते हैं कि वायुसेना भारतीय सशस्त्र सेना का वो अंग है जो हवा में युद्ध लड़ती है, हमारे एरियल बॉर्डर को सुरक्षित रखती है साथ ही हर वक्त चौकन्नी रहकर हमारे देश की रक्षा करती है। खास बात यह है कि भारतीय थल सेना को युद्धक सामग्री पहुंचाने का काम हो या फिर ह‍िमालय के ऊंचे पहाड़ों पर हथियारों की तैनाती हो, हर जगह वायुसेना की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहती है।

खैर हम बात करने जा रहे हैं वायुसेना के उन शूरूवीरों की, जिन्होंने अपने क्षेत्र में वो कर दिखाया, जो कोई न कर पाया। जी हां ये वो लोग हैं, जिन्‍होंने अपने हैरतअंगेज कारनामों से लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया है।

वैसे तो कई सैन्‍य अधिकारी हैं, जिनके नाम के आगे एक से एक कीर्तिमान हैं। हम यहां बात कर रहे हैं उन 9 अधिकारियों की जिन्‍होंने स्‍काई-डाइविंग और पैराशूटिंग में कीर्तिमान बनाये :

1. एयर मार्शल वीके भाटिया, पहले भारतीय जिन्होंने 56 वर्ष की आयु में स्‍काई डाइविंग की। उन्‍होंने यह कीर्तिमान 17 सितम्बर 1999 को आगरा में एएन-32 एयरक्राफ्ट से कूद कर बनाया।

2. ग्रुप कैप्‍टन एनके पराशर, पहले पायलट हैं, जिन्‍होंने एक्‍स-एयर माइक्रोलाइट में 15 सितम्‍बर 2000 को उड़ान भरी उसी रात स्‍क्‍वाड्रन लीडर एमआईके रेड्डी ने एक्‍स-एयर माइक्रोलाइट से स्‍काई डाइविंग जम्‍प की।

3. स्‍क्‍वाड्रन लीडर संजय थापर वीएम पहले भारतीय हैं, जिन्‍होंने वायुसेना में टंडेम स्‍काई डाइविंग शुरू की। उन्‍होंने पैराशूटिंग में भी कई कीर्तिमान हासिल किए हैं।

4. स्‍क्‍वाड्रन लीडर जय शंकर 1990 से पैराशूटिंग में सक्रिय हैं। वो 602 बार पैराशूट जम्‍प कर चुके हैं।

5. स्‍क्वाड्रन लीडर एमआईके रेड्डी वॉटरस्‍पोर्ट्स में स्‍पेशिलिस्‍ट, पैरासेलिंग और स्‍काइडाइविंग में स्‍पेशियलिस्‍ट हैं। आप 780 बार स्‍काइडाइव‍िंग कर चुके हैं।

6. स्‍क्वाड्रन लीडर आरसी त्रिपाठी ने चार अप्रैल 2001 को पहली बार एक्‍स-एयर माइक्रोलाइट से स्‍काईडाइविंग की थी।

7. स्‍क्वाड्रन लीडर वसंत राज और फ्लाइट लेफ्टि‍नेंट भावना माने, दोनों हेलीकॉप्‍टर पायलट हैं, ये दोनों एयर-फोर्स के पहले कपल हैं, जिन्‍होंने एक साथ स्‍काई डाइविंग की।

8. फ्लाइट लेफ्टि‍नेंट कमल सिंह ओबेरह ने 1 जनवरी 2000 को साउथ पोल पर पैराशूट जम्‍प की थी। वो ऐसा करने वाले पहले भारतीय हैं।

9. फ्लइट लेफ्टिनेंट केबी साम्याल और फ्लाइट लेफ्टिनेंट कोपल गुप्ता दोनों पति-पत्‍नी हैं। साम्‍याल अब तक 350 और कोपल 220 बार पैराशूट जम्‍प कर चुके हैं।

9:57 AM : India's COVID Recoveries

9:44 AM : COVID-19 Updates

9:23 AM : 88th Indian Air Force Day parade

9:12 AM : 88th Indian Air Force Day parade

9:01 AM : Air Force Day

8:29 AM : सबसे लम्बा स्टील का पुल

बीआरओ ने मनाली-लेह राजमार्ग पर बनाया सबसे लम्बा स्टील का पुल

मनाली से लेह तक जाने वाले मार्ग को अटल टनल ने जहां गति प्रदान की, वहीं बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने स्‍टील का पुल बनाकर इस मार्ग को और अधिक सुगम बना दिया है। आपको बता दें कि यह पुल देश का सबसे लम्‍बा स्‍टील का पुल है, जिसका निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और इसी माह यह यातायात के लिए खोल दिया जाएगा। भागा नदी पर 360 मीटर लंबे इस पुल को बनाने में 10 साल लगे हैं।

हिमाचल प्रदेश में सामरिक मनाली-लेह राजमार्ग पर सबसे लम्बे पुल का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। इसे इसी महीने यातायात के लिए खोल दिया जाएगा। इसे बारसी ब्रिज के रूप में जाना जाता है। यह लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी में दुनिया के सबसे ऊंचे लैंडिंग ग्राउंड के मार्ग पर श्योक नदी पर कर्नल चेवांग रिंचेन सेतु के बाद देश में अपनी तरह का दूसरा सबसे लंबा पुल है।

खराब मौसम के कारण लगा समय

बीआरओ के सूत्रों ने बताया कि दारचा में भागा नदी पर 360 मीटर लंबे इस पुल को बनाने में मुश्किल इलाकों, खराब मौसम के कारण लगभग 10 साल लग गए। प्रशासनिक कारणों से पिछले कुछ समय से पुल पर काम भी स्थगित था। पुल का निर्माण कार्य सही मायने में लगभग चार साल पहले शुरू हुआ था और हाल ही में इसने गति पकड़ी थी।

यह पूरा पुल स्टील का बनाया गया है, जिस की सुपर संरचना स्टील बीम को जोड़कर बनाई गई है। पुल को सहारा देने के लिए पूरी लम्बाई में नदी के भीतर पांच जगह खंभे लगाये गए हैं। इस पुल का निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की 70 सड़क निर्माण कंपनी ने किया है। इसी यूनिट ने रोहतांग दर्रे के तहत अटल टनल के उत्तरी पोर्टल को जोड़ने वाले 100 मीटर के स्टील ट्रस ब्रिज का भी निर्माण किया था, जिसका उद्घाटन इसी महीने मनाली -लेह हाइवे पर सिस्सू के पास केलांग में किया गया था।

बारिश में बाधित होता था यातायात

बीआरओ अधिकारियों के अनुसार भागा नदी चिनाब नदी की एक सहायक नदी है और सूरज ताल से निकलती है, जो बरलाचा दर्रे से कुछ किलोमीटर दक्षिण में है। पहले नदी के तल पर बना हुआ एक छोटा सा पुराना पुल था, जो नदी के दो किनारों के बीच मौजूदा मार्ग का अधिकांश हिस्सा एक अनपेक्षित ट्रैक था।

बाढ़, चट्टान के खतरों या नदी में पानी बढ़ने पर विशेष रूप से बारिश के दौरान यातायात बाधित होता था। इस समस्या को दूर करने का एकमात्र तरीका नदी के ऊपर एक अच्छी तरह से एक स्थायी पुल का निर्माण करना था। यह इलाका लाहौल क्षेत्र में केलोंग से लगभग 33 किलोमीटर आगे दारचा लेह से 11,020 फीट की ऊंचाई पर है। यह हाइ वे से कारगिल-वाया पदुम के लिए वैकल्पिक मार्ग और हिमाचल में इस मार्ग पर जाने का आखिरी स्थायी रास्ता है।

मनाली लेह मार्ग की खास बातें

राष्ट्रीय राजमार्ग-3 को मनाली-लेह मार्ग के रूप में जाना जाता है। यह लद्दाख को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण वैकल्पिक मार्ग है, दूसरा श्रीनगर-लेह मार्ग को भी जोड़ता है। बीआरओ मनाली-लेह मार्ग को भी अपग्रेड कर रहा है, जो दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे मोटरेबल पास जैसे कि बरलाचा ला, तंगलंग ला, नेके ला और लाचुंग ला में 17,500 फीट की ऊंचाई को छूते हुए डबल लेन मार्ग है।

इस मार्ग पर लगभग 90 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। इन पास के नीचे अटल सुरंग की तरह प्रस्तावित सुरंगें बनाई गई हैं। मनाली-लेह मार्ग भी बर्फबारी की वजह से सर्दियों के दौरान यातायात के लिए बंद रहता था लेकिन यह डबल लेन रास्ता सभी मौसम में इस्तेमाल करने लायक होगा।

(हिन्दुस्थान समाचार)

8:22 AM : Rival opposition factions in Kyrgyzstan

8:10 AM : PM Modi salutes air warriors on Air Force Day

7:30 AM : पश्चिमी उत्तर प्रदेश बनेगा विकसित

इंटरनेशनल एयरपोर्ट के अलावा फिल्म सिटी, टॉय सिटी और मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश बनेगा विकसित

उत्तर प्रदेश जल्द ही वैश्विक मंच पर अपनी नयी पहचान बनाने वाला है। प्रदेश में पहले ही जेवर एयरपोर्ट बनने वाला है, वहीं इसके अलावा अब फिल्म सिटी, टॉय सिटी और मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकसित किया जायेगा।

जेवर में बनेगा एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट

दरअसल एशिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट गौतमबुद्ध नगर जिले के जेवर में बनने जा रहा है। इसका निर्माण स्विस कंपनी ज्यूरिख इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड एजी करने वाली है। इसके लिए नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (नियाल) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और ज्यूरिख इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड एजी के बीच बुधवार को एग्रीमेंट साइन किया गया है। इस पर दोनों संस्थाओं के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने हस्ताक्षर किया।

फिल्म सिटी और टॉय सिटी से होगा लाखों लोगों को लाभ

इसके अलावा जिला गौतमबुद्ध नगर में फिल्म सिटी और टॉय सिटी भी बनने वाली है। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (नियाल) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ अरुणवीर सिंह ने बताया कि गौतमबुद्ध नगर में जेवर एयरपोर्ट के साथ ही साथ फिल्म सिटी बनने वाली है। इसके अलावा टॉय सिटी भी बनने की योजना है। इस से जिला गौतमबुद्ध के साथ साथ पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को लाभ मिलेगा। एयरपोर्ट से तो पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लाभ होगा।

अभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को हवाई जहाज पकड़ने के लिए दिल्ली जाना पड़ता हैं, जो कि बहुत परेशानी भरा होता है और बहुत महंगा भी पड़ जाता है। अरूणवीर सिंह ने कहा कि जिले में मेट्रो कोच बनाने की फैक्ट्री, अपैरल पार्क, हैंडीक्राफ्ट पार्क, एमएसएमई पार्क, मेडिकल डिवाइस पार्क भी बनेगा। यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में सैकड़ों देसी-विदेशी कंपनियों ने जमीन आवंटन करा लिया है।

मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी से जेवर से दिल्ली जाना होगा आसान

जेवर से दिल्ली और अन्य शहरों के लिए मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी विकसित की जाएगी। मेट्रो, अल्ट्रा पीआरटी, एलिवेटेड रोड, रेपिड रेल समेत कई विकल्पों पर काम चल रहा है। नियाल के सीईओ डॉ. अरुणवीर सिंह ने जानकारी दी कि जेवर में एयरपोर्ट आने से यहां करीब 5 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। अब भारतीय विमानों का मेंटीनेंस भी यहीं होगा यहां पर एमआरओ (विमानों का मेंटीनेंस, रिपेयरिंग व ओवरहालिंग) हब विकसित किया जाएगा। साथ ही एयर कार्गो व वेयर हाउसिंग हब बनाया जाएगा। इन योजनाओं से ना केवल रोजगार मिलेगा बल्कि करोड़ों रुपये का निवेश भी आएगा। (इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)

7 October 2020

5:14 PM : कंटेनमेंट जोन में नहीं होगी पूजा

कोलकाता में दुर्गा पूजा से पहले केंद्र ने दिए दिशा-निर्देश

भारत में त्योहरों की धूम विश्व के कोने-कोने के लोगों का ध्यान आकर्षित करते हैं। लेकिन इस बार कोरोना की वजह से त्योहार के रंग फीके पड़ गये। वहीं केंद्र सरकार आगामी त्योहार और कोलकाता में प्रसिद्ध दुर्गा पूजा के लिये पहले की दिशा-निर्देश जारी कर दिये हैं। जिससे कोरोना के मामले न बढ़े। इसके तहत भीड़भाड़ की वजह से लगातार बढ़ते जा रहे कोरोना संक्रमण रोकथाम के लिए कंटेनमेंट जोन में दुर्गा पूजा नहीं करने की निर्देशिका जारी की गयी है।

केंद्र सरकार की ओर से यह निर्देशिका जारी की गयी है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि कंटेनमेंट जोन में दुर्गा पूजा नहीं की जाएगी। यहां रहने वाले लोगों को अपने अपने घरों के अंदर ही दुर्गा पूजा करनी होगी ताकि भीड़-भाड़ एकत्रित ना हो। जिन क्षेत्रों में कोरोना के मरीज मिले हैं वहां लोगों को घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाने को कहा गया है।

केंद्र ने अपनी निर्देशिका में स्पष्ट कर दिया है कि दुर्गा पूजा करने से कोई समस्या नहीं है लेकिन शारीरिक दूरी के प्रावधानों का पालन किया जाना जरूरी है। किसी भी तरह से भीड़ ना हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके अलावा जो इलाके कंटेनमेंट जोन में नहीं हैं वहां पूजा तो होगी लेकिन वहां सोशल डिस्टेंसिंग के साथ-साथ सैनिटाइजेशन, थर्मल स्क्रीनिंग, फ्लोर मार्किंग की व्यवस्था करनी होगी। विसर्जन करने वालों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य होगा। आयोजकों के लिए स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी भी तरह से भीड़-भाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

बता दें कि पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर राज्य की पहचान है और हर साल दुनिया भर से लाखों लोग 6 दिनों तक चलने वाली दुर्गा पूजा का आनंद लेने के लिए कोलकाता पहुंचते हैं। इस बार दुर्गा पूजा में केवल एक पखवाड़े शेष रह गया है और सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

5:09 PM : कृषि - 23 प्रतिशत धान ज्यादा खरीदा गया

इस साल 497 लाख मीट्रिक टन फसल खरीद का लक्ष्य, 1.56 करोड़ किसानों को फायदा होने का अनुमान

रबी धान खरीद में 45 प्रतिशत जयादा की बढ़ोतरी

5:59 PM : नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल जारी

4:38 PM : 4 new Kendriya Vidyalaya buildings

4:22 PM : क्‍वाड की बैठक

4:00 PM : India's highest ropeway

India’s highest ropeway in Rohtang to come up in four years

Atal tunnel has opened many avenues for tourism development in the Rohtang region. Being built on the Private-Public partnership Rohtang ropeway is one such attraction that would be ready in four years’ time. Going by the elevation this ropeway would be among the world’s top five projects.

“This is a project which is coming up in PPP mode in Himachal Pradesh by the government of Himachal which has the support of the government of India. The project primarily is joining the valley’s bottom from Kothi to Rohtang Pass, says Amitabh Sharma, MD, Manali Ropeways.

He adds that “the valley bottom starts at a village in Kothi which is at the altitude of 8,300 feet. The first section will connect it to Gulaba which is at the altitude of 9,400 feet. Then the next section that comes up is Marhi which is at the 10,900 feet altitude. After which the final section takes you to Rohtang pass which is at the 13,200 feet.”

He further says “this is going to be the highest ropeway in India whose total length would be 8.1 kilometers in three sections. It has a passenger carrying capacity of 1500 passengers per hour. It is absolutely a modern technology marvel that is being used in it.”

He informs “the project deadline would be four years to complete. After four years anyone coming to Manali can take a ropeway right up to the Rohtang pass. The estimated total cost of the Rohtang Ropeways project would be Rs 540 crores.”

Tourists will be able to visit the 13,058 feet high Rohtang Pass, a popular tourist destination, throughout the year after completion of the ropeway project.

The visitors will be able to enjoy the ropeway ride from Kothi to Rohtang which will take 21 minutes.

3:41 PM : कैबिनेट के फैसले

कोलकाता में मेट्रो योजना को मंजूरी दी गई, भारत और जापान के बीच साइबर सिटी को लेकर एमओयू को भी मिली मंजूरी

जापान के साथ साइबर सुरक्षा समेत सहमति पत्रों को अनुमोदन, कनाडा के साथ सहमति पत्रों को भी कैबिनेट ने किया अनुमोदित

2:45 PM : हेल्थ-फैक्टर

महिलाओं के लिए एक्सपर्ट के सुझाव

महिलाओं का स्वास्थ्य एक बहुत ही अहम विषय है। एक साथ कई ज़िम्मेदारी निभाने वाली महिलाओं के लिये जरूरी है कि वे अपने स्वास्थ्य के प्रति भी सजग रहें। ऐसे कई कारक हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिये खतरा बनते जा रहे हैं। उनके स्वास्थ्य को औऱ बेहतर कैसे किया जा सकता है, इस पर विशेष बातचीत की डॉ. रेणुका मलिक से।

किशोरावस्था में अक्सर अक्सर खून की कमी, यानी एनिमिया होने की संभावना बनी रहती है। केल्शियम की कमी, कुपोषण की समस्या और माहवारी में अनियमितता हो जाती है। जबकि वृद्धावस्था में स्तन कैंसर व सर्वाइकल कैंसर, ब्लड प्रेशर व मधुमेह जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा हृदय रोग, ऑस्टियोपोरोसिस या ऑस्टियो आर्थराइटिस।

इस पर डॉ. मलिक बताती हैं कि कैंसर से बचने के लिये इसकी जांच कराते रहना बहुत जरूरी है। युवावस्था से लेकर मेनोपॉज के खत्म होने तक स्क्रिनिंग कराते रहना चाहिये। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए तीन समय ऐसे हैं जब उन्‍हें खुद का बहुत ज्यादा ध्यान रखना होता है। जब पीरियड आना शुरू हो, तब वो उनके शरीर में आयरन की कमी होने लगती है। इसके बाद जब डिलीवरी होती है तब बॉडी में रक्त की कमी हो जाती है, और इसके बाद जब मेनोपॉज होता है, तब कैल्शियम की कमी हो जाती है, जिससे हड्डियां कमजोर पड़ने लगती हैं।

कैसे करें खुद की देखभाल

महिलाओं को स्वस्थ्य जीवनशैली को अपनाना चाहिये। प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. रेणुका ने बताया कि महिला अपने किचन की इंचार्ज होती हैं। इसलिये रसोई में क्या बनता है, बच्चा और खुद क्या खा रहे हैं, इसका ध्यान देना चाहिये। बचपन से ही पोषण का विशेष ध्यान देना चाहिये। इसके लिये संतुलित और पौष्टिक आहार लें। नियमित एक्सरसाइज करें, हड्डियों की मजबूती के लिये विटामिन-डी और कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में लें, साथ ही धूप में भी कुछ देर बैठें। गर्भावस्था में भी सही देखभाल काफी जरूरी है। हेल्दी खाने खायें, तंबाकू, शराब का सेवन न करें। वजन को नियंत्रित रखें, मोटापे से बचें, समय-समय पर ब्लड प्रेशर व शुगर की जांच जरूर करायें, पैप स्मीयर की जांच भी करायें।

पोषण के बारे में डॉ. रेणुका ने कहा कि खाना बनाने के तरीके में थोड़ा बदलाव करने की जरूरत है। फल सब्जी हमेशा धुली हुई हो, खाने बनाते समय बहुत ज्यादा उबाल कर या पका कर न प्रयोग करें जिससे जिससे उसके माइक्रोन्यूट्रंस बचे रहें। उन्‍होंने कहा कि आजकल लोग पिज्जा काफी पसंद करते हैं, इसे खाने से एक दम से अचानक से शरीर में कैलोरी बढ़ जाती है, जिससे कुछ वक्त के लिये भूख मर जाती है। लेकिन कुछ पल के बाद कैलोरी डाउन हो जाती है और भूख बढ़ लगने लगती है और लोग फिर से खाना खाते हैं। इससे ओबेसिटी यानी मोटापा बन जाता है। इसलिये ऐसा खाना खायें, जिससे भूख बार-बार न लगे और एनर्जी बनी रहे।

1:44 PM : Dress rehearsal before Air Force Day

1:32 PM : सीआरपीएफ की रैपिड एक्शन फोर्स

<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”hi” dir=”ltr”>सीआरपीएफ की रैपिड एक्शन फोर्स अपनी 28वीं वर्षगांठ मना रही है, 7 अक्टूबर 1992 को <a href=”https://twitter.com/crpfindia?ref_src=twsrc%5Etfw”>@crpfindia</a> के 10 स्वाधीन बटालियन को परिवर्तित करके <a href=”https://twitter.com/RAFCRPF?ref_src=twsrc%5Etfw”>@RAFCRPF</a> बनाया गया था, रैपिड एक्शन फोर्स को दंगों से निपटने, समाज के बीच विश्वास पैदा करने और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए गठित किया गया था <a href=”https://t.co/wvEeE5FUqj”>pic.twitter.com/wvEeE5FUqj</a></p>&mdash; Prasar Bharati News Services (@PBNS_India) <a href=”https://twitter.com/PBNS_India/status/1313746860062859264?ref_src=twsrc%5Etfw”>October 7, 2020</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>

1:32 PM : सीआरपीएफ की रैपिड एक्शन फोर्स

1:09 PM : कोविड-19 : त्योहारों पर नहीं बरती सावधानी तो बिगड़ सकती है स्थिति

कोविड-19 : त्योहारों पर नहीं बरती सावधानी तो बिगड़ सकती है स्थिति

(546 words)

50 प्रतिशत लोगों के साल सिनेमा हॉल को खोलने की भी अनुमति मिल गई है। लेकिन ये समझना जरूरी है कि अनलॉक होने से वायरस खत्म नहीं हुआ है। इसलिये लापरवाही नहीं बरतनी है। लोगों को वायरस से बचने और छोटी-छोटी नई बाते जिससे वायरस का संक्रमण संभव हैं बताने के लिये प्रसार भारती के ओर से हर रोज स्वास्थ्य विशेषज्ञ से खासचर्चा की की जाती है। इसके तहत पीएचएफआई के अध्‍यक्ष डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी ने कई सवालों के जवाब दिये।

सिनेमा हॉल में जाते वक्त किस बात का ध्‍यान रखना जरूरी है?

केंद्र सरकार ने सिनेमा हॉल के लिए एसओपी जारी कर दी है। ऐसे में दर्शकों को मास्क लगाकर जाना है, हैंड सेनिटाइजर साथ लेकर जाएं और बाकी लोगों से दूरी बनाकर बैठें। इसके अलावा यह ध्‍यान देना है कि हॉल में पर्याप्त वेंट‍िलेशन के साथ हवा का सर्कुलेशन हो, क्योंकि हवा अगर एक जगह रुक गई, तो संक्रमण के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

सुरक्षित रहे हुए त्योहारों को कैसे मनाना चाहिए?

इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना से बचने के लिए सावधानी ही एक चारा है। यही सलाह स्वास्थ्‍य मंत्रालय ने भी दी है। भले ही संक्रमितों की संख्‍या कम हुई है, फिर भी खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। चूंकि यह साफ पता चल गया है कि जब लोग भीड़ में एकत्र होते हैं, तो वायरस बहुत जल्दी फैलता है, जिसे सुपरस्प्रेडर ईवेंट कहते हैं। ऐसे में एक व्यक्ति जो दो-तीन लोगों को संक्रमित करता सकता है, वो भीड़ में 20 से 30 लोगों को संक्रमित कर देता है।

कुछ लोग बात करते वक्त मास्क नीचे कर लेते हैं, इन लोगों के लिए आप क्या कहेंगे?

अगर कोई योद्धा यह कहकर कवच नहीं पहने कि उसे पसीना बहुत आता है, तो जंग में वो निश्चित रूप से घायल हो जाएगा। ठीक उसी तरह मास्‍क के लिए जो लोग सोचते हैं कि मास्क पहनने से आवाज़ धीमी हो जाती है या दूसरो को स्पष्‍ट नहीं सुनाई देती है, तो उन्‍हें संक्रमण हो सकता है। डॉक्‍टर भी ऑपरेशन करते वक्त मास्क लगाकर ही बात करते हैं। इसलिए बेहतर होगा ऐसे लोग मास्क के साथ बोलने का अभ्‍यास करें। जब आप मास्क हटाकर बोलते हैं, तो उस वक्त संक्रमण की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

बंद कमरे में और खुले में भीड़ हो तो वायरस के फैलने की संभावना कितनी होती है?

संक्रमित जब सांस लेता है, तब वायरस बाहर आता है और अगर आस-पास कोई नहीं है, तो वायरस थोड़ी ही देर में नीचे गिर जाता है, लेकिन अगर वो भीड़ में है, तब मुंह या नाक से निकलने के बाद वायरस वहां मौजूद किसी भी व्‍यक्ति पर हमला कर सकता है। खुली जगह की तुलना में बंद जगह पर इस हमले की संभावना बहुत बढ़ जाती है।

कई दिनों तक बाहर रहने के बाद अगर घर पहुंचे हैं, तो क्या कोरोना टेस्ट करवाना जरूरी है?

अगर आप पूरी तरह स्वस्थ्‍य महसूस कर रहे हैं, तो टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है। 7 दिन का होम क्‍वारंटाइन पर्याप्त है। दूसरी बात यह कि आपको पता नहीं होता है, कि किस दिन आप वायरस से संक्रमित हुए हैं, ऐसे में एसिम्‍प्‍टोमेटिक होने पर टेस्ट निगेटिव भी आ सकता है। इसलिए टेस्ट तभी करायें, जब लक्षण दिखाई दें।

12:59 PM : 13th India-Japan Foreign Ministers’ Strategic Dialogue

Recognizing the increasing role being played by digital technologies, the two ministers highlighted need for robust and resilient digital and cyber systems and in this context, welcomed the finalization of the text of the cybersecurity agreement.

The two ministers exchanged views on regional and global issues of mutual interest and agreed that the strong and enduring partnership between the two countries will play a pivotal role in overcoming challenges posed by the COVID-19 pandemic.

11:32 AM : Aatmanirbharta is heralding a new era in electronics manufacturing

11:23 AM : पीईडब्ल्यू रिसर्च

पीईडब्ल्यू रिसर्च के एक सर्वेक्षण के अनुसार कई विकसित और लोकतांत्रिक देशों में लोगों के बीच चीन को लेकर नकारात्मक धारणा तेजी से बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन इन देशों में विशेष रूप से शामिल हैं।

10:44 AM : COVID-19 Updates

9:59 AM : COVID-19

9:30 AM : COVID-19

9:00 AM : OPV Vigraha

Vigraha – the Indian Coast Guard Offshore Patrol Vessel launched

The OPV Vigraha was launched today which has been built by Larsen and Toubro Ltd in line with the Government’s policy of “Make in India.

“OPV Vigraha launched by Mrs Hema Somanathan, wife of Dr TV Somanathan, IAS, Secy(Exp), MoF in presence of Director General K Natarajan & other dignitaries of Central & State Govt today at L&T, said Indian Coast Guard on Tuesday in a tweet.

It has been built by L&T Shipbuilding under the contract signed between the Ministry of Defence and L&T Ltd on 30 Mar 2015 which is the last of the seven series OPV.

This was the first time that the contract for building an OPV class of vessels had been given to a private shipyard.

The length of the OPV is 98 meters and breadth is 14.8 meters with a gross tonnage of 2,100 tons. The lasting power of the vessel is 5,000 nautical miles at cruising speed. The cruising speed of the ship is 12-14 knots with a maximum speed of 26 knots.

The ship is fitted with two diesel driven engines of 9,000 kW each with low-level consumption, high TBO, and complying to IMO tier-II norms. The ship will be fitted with a 30mm 2A42 gun and two 12.7 mm gun and equipped with an integral twin-engine helicopter which will enhance its operational, surveillance, search and rescue potentiality.

After extensive trials and testing for the equipment and pieces of machinery fitted onboard Indian Coast Guard will introduce the 7th OPV in March 2021

102 crew, including 14 officers and 88 subordinate officers and enrolled personnel would be manning the ship which will be utilized for day and night patrol. Also, it will be used for anti-terrorism and anti-smuggling operations in the Exclusive Economic Zone (EEZ) and coastal security.

The expected life span of the ship is more than 25 years.

6 October 2020

1:44 PM : Inexpensive coronavirus test 'Feluda``

1:21 PM : एक वर्ष में दो बार फिटनेस टेस्‍ट

12:22 PM : Good work

12:00 PM : छात्रों से संवाद

11:39 PM : ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आयुष स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल जारी किया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद का दुनिया के स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान, आयुर्वेद दुनिया का सबसे पुराना ज्ञान है।

11:03 AM : OPV Vigraha

10:59 AM : सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर की प्रेस वार्ता

केंद्रीय मंत्री ने अपील की है कि इंटरवल के दौरान दर्शक ज्यादा न निकलें और सिनेमा हॉल, मल्टीप्लेक्स में नियमित तौर पर हो साफ-सफाई हो।

10:44 AM : 17 अक्टूबर से शुरू होंगे नवरात्रि

17 अक्टूबर से शुरू होंगे नवरात्रि, घोड़े पर आगमन और भैंस पर होगी मॉं दुर्गा की विदाई

अनलॉक के बीच नवरात्र और दुर्गा पूजा की तैयारी भी जोर-शोर से चल रही है। तमाम दुर्गा मंदिरों में साधारण रूप से प्रतिमा का निर्माण कर पूजा की तैयारी की जा रही है। इस वर्ष भव्य सजावट और विशाल पंडाल भी नहीं बनाए जा रहे हैं। सभी पूजा समितियां निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सिर्फ पूजा की तैयारी कर रही हैं। इस बार वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण से बचाव के मद्देनजर दुर्गा पूजा में मेला भले ही नहीं लगेगा लेकिन जिले भर में तीन सौ से अधिक जगहों पर मां दुर्गा की प्रतिमाओं के निर्माण कार्य तेजी से चल रहे हैं।

माता की विदाई भैंस पर होगी

इस वर्ष शारदीय नवरात्र की शुरुआत 17 अक्टूबर को कलश स्थापन के साथ हो जाएगी। यूं तो कलश स्थापन शुभ मुहूर्त प्रातः बेला में होता है, अधिकांश जगहों पर इसी समय कलश स्थापित किए जाते हैं। लेकिन रात में 11:39 तक प्रतिपदा तिथि है और उससे पहले कभी भी कलश स्थापन किया जा सकता है।

इस साल भगवती दुर्गा का आगमन घोड़े पर हो रहा है, जिसका फल छात्रभंग योग बन रहा है। माता की विदाई भैंस पर होगी जो शोक संताप देने वाला है। कलश स्थापन के पहले दिन 17 अक्टूबर शनिवार को प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना होगी। 18 अक्टूबर को द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना होगी। 19 अक्टूबर को तृतीय स्वरूप चंद्रघण्टा की पूजा होगी। 20 अप्रैल को चतुर्थ स्वरूप कुष्मांडा की पूजा होगी तथा 21 अप्रैल को पंचम स्वरूप स्कंदमाता की पूजा होगी। 22 अक्टूबर को माता के छठे स्वरूप कात्यायनी की पूजा के साथ बिल्व आमंत्रण दिया जाएगा। 23 अक्टूबर को सातवें स्वरूप कालरात्रि की पूजा-अर्चना तथा रात में निशा पूजा होगी।

24 अप्रैल को अष्टम स्वरूप महागौरी की पूजा अर्चना के साथ महाअष्टमी का व्रत रखा जाएगा जबकि 25 अक्टूबर को माता के नवम स्वरूप सिद्धीदात्री की पूजा अर्चना के बाद हवन, कन्या पूजन और बलिदान कार्य संपन्न कराए जाएंगे। 26 अक्टूबर सोमवार को विजयादशमी (दशहरा) के दिन प्रातः वेला में कलश विसर्जन, अपराजिता पूजन और जयती धारण के बाद प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाएगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहता है, जिसके कारण कोई भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

ऑनलाइन पूजा के लिये रजिस्ट्रेशन

वहीं बिहार में भी इसके लिये तैयारी शुरू है। इस नवरात्रि भगवती दुर्गा का आगमन घोड़े पर हो रहा है । इसके लिये महिलाओं को खोईंछा अपने घर से भरकर लाने को कहा गया है। प्रतिमा के समक्ष आकर पंडित जी के माध्यम से खोईंछा मां दुर्गा को समर्पित किया जाएगा। हालांकि भक्तजनों को पहले की तरह प्रतिमा के समक्ष आकर पूजा की अनुमति नहीं मिलेगी। बेगूसराय जिले में हजारों घरों में कलश स्थापन कर नवरात्र पूजन की तैयारी की जा रही है। अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वारा ऑनलाइन पूजा का आयोजन कराए जाने के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

(ह‍िन्दुस्थान समाचार)

10:34 AM : COVID-19

10:29 AM : COVID-19

10:23 AM : 'स्मार्ट' वीपन सिस्टम

जानिए ‘स्मार्ट’ वीपन सिस्टम की खास बातें

ओडिशा तट के व्हीलर द्वीप से सोमवार को सुपरसोनिक मिसाइल असिसटेड रिलीज़ ऑफ टारपीडो (स्मार्ट) वीपन सिस्टम का सफल परीक्षण किया गया। 650 किलोमीटर की दूरी तक टॉरपीडो को छोड़ने की क्षमता रखने वाली इस प्रक्षेपण प्रणाली को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने भारतीय नौसेना के लिये बनाया है।

‘स्मार्ट’ वीपन सिस्टम के सफल परीक्षण के साथ हेवी टारपीडो की मारक रेंज बढ़ कर 650 किलोमीटर हो गई है। इससे पहले टारपीडो 50 किलोमीटर तक के लक्ष्‍य को भेद पाता था, अगर रॉकेट लगा हो तो उसकी रेंज 140 से 150 किलोमीटर तक रहती थ, लेकिन अब चाहे पानी के अंदर हो या हवा में, इस स्मार्ट सिस्टम टारपीडो की रेंज को नई रेंज दी है।

इस सिस्टम को बनाने के लिये वर्ष 2016 में डीआरडीओ को 340 करोड़ रुपए आवंटित किये गये थे। यह स्‍मार्ट सिस्टम हवा और पानी दोनों में काम करता है। इसकी मदद से युद्ध पोत पानी के अंदर दुश्‍मन की पंडुब्‍बी पर सीधा हमला कर सकेंगे। हवा से पानी में सुपरसोनिक मिसाइल के साथ और समुद्र के अंदर पंडुब्बियों में लगे टारपीडो को लॉन्‍च करने के लिये इसका प्रयोग किया जा सकता है। हवा में यह कम ऊंचाई पर बेहद कारगर साबित होगा।

विशेषज्ञों की मानें तो माक3 से युक्त सुपरसोनिक ब्रह्मोस के एंटीशिप मिसाइल सिस्‍टम के बाद यह स्‍मार्ट वीपन सिस्टम भारत के लिये अगला सबसे बड़ा सिस्‍टम होगा। यह भारतीय महासागर में तैनात युद्धपोतों के लिये बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा।

इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग ने स्‍मार्ट सिस्‍टम पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस नये टारपीडो सिस्टम से भारतीय नौसेना को और अधिक मजबूती मिलेगी। इससे पानी के अंदर बैठे दुश्‍मन को सेकंडों में खत्म किया जा सकेगा।

पंडुब्बियों में लगेगा स्मार्ट सिस्टम

अब तक समुद्र के अंदर तैनात पंडुब्बियों को अंतिम कुछ मिनटों तक भी नहीं पता चलता था कि उनकी तरफ कौन आ रहा है। लिहाज़ा जवाबी कार्रवाई के लिये क्रू सदस्यों के पास बहुत कम समय होता था। सुपरसोनिक मिसाइल असिसटेड रिलीज़ ऑफ टारपेडो (SMART) सिस्टम तरंगों के माध्‍यम से दुश्‍मन की गतिविधियों का पता लगाता रहेगा, जैसे ही कोई दुश्‍मन पंडुब्‍बी इन तरंगों की जद में आयेंगी, सुपरसोनिक सिस्‍टम खुद ब खुद उसकी लोकेशन का पता लगा लेगा और पंडुब्‍बी का मिसाइल सिस्‍टम टारपेडो को रिलीज़ कर देगा। यह टारपेडो खुद ब खुद लक्ष्‍य के पीछा करते हुए उसे तहस-नहस कर देगा।

हवा से पानी के अंदर भी वार कर सकेगा

स्‍मार्ट सिस्‍टम केवल हवा से हवा में या पानी के अंदर ही नहीं बल्कि हवा से पानी के अंदर भी वार कर सकता है। यह एक कैप्सूल जैसा सिस्‍टम होता है, जिसमें टारपीडो लगा हुआ होता है। जो हवा से छोड़ा जायेगा, जो जैसे ही पानी पर पहुंचेगा, टारपीडो उससे अलग हो जायेगा और लक्ष्‍य को भेदने के लिये पानी के अंदर चला जायेगा।

10:00 AM : COVID-19 Update

9:00 AM : NCR Planning Board meeting

5 October 2020

4:48 PM : स्‍टार्टअप स्‍टोरी

स्‍टार्टअप स्‍टोरी : स्वदेश लौट कर शुरू किया ‘रिक्लेम वुड’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्टअप इंडिया’ के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत की मुहिम से प्रेरित होकर देश के युवा अब विदेश में भारी-भरकम सैलरी की जगह स्‍वदेश में ही स्‍वयं के कारोबार को तरजीह दे रहे हैं। उन्‍हीं में से एक हैं 23 वर्षीय युवा उद्यमी दिविता अंजेश का नाम भी जुड़ गया है जिन्होंने नोएडा में ‘रिक्लेम वुड फर्निशिंग प्राइवेट लिमिटेड की शुरूआत की। वह इस कंपनी की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। खास बात यह है कि यह स्‍टार्ट अप मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल के मंत्र को प्रोत्‍साहित करने के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने की एक मुहिम भी है।

दिविता ने खास बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्टअप इंडिया’ विजन से प्रेरित होकर उन्होंने भारत लौट अपना खुद का काम शुरु करने का फैसला किया है। ताकि, खुद के साथ ही और हुनरमंदों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकूं।

पुरानी लकड़ी का फर्नीचर बनाती है यह कंपनी

रिक्लेम वुड फर्निशिंग प्राइवेट लिमिटेड की सीईओ दिविता अंजेश बताती हैं कि रिक्लेम वुड पुरानी और इस्तेमाल हुई लकड़ी का उपयोग कर फर्नीचर तैयार करती है। इससे नए पेड़ों की कटाई बचती है जिससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलता है।

उन्होंने कहा कि फर्नीचर बनाने के लिए हम उस लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं जो लैंडफील या फिर जलावन के काम में इस्तेमाल होती है। ये लकड़ीवर्षों पुरानी होती हैं। सालों तक धूप और पानी सहने के बाद वह काफी हल्की हो जाती है। हम पुरानी हवेलियों, बड़ी-बड़ी कोठियों में इस्तेमाल चौखट, दरवाजे, बड़ी मशीनों की पैकिंग में काम आई हुई लकड़ी, रेलवे की पटरियों के निर्माण में उपयोग की गई, बंदरगाहों पर पड़े पुराने पानी के जहाज में इस्तेमाल हुई लकड़ी की खरीद करते हैं। बाद में उसको रिसाइकल कर आधुनिक ढ़ंग के फर्नीचर का निर्माण करते हैं। यह फर्नीचर देखने में जितना खूबसूरत होते हैं, वजन में उतने ही हल्के भी। इसके साथ ही यह मजबूत और टिकाऊ भी होते हैं।

पेड़ काटकर नहीं लाते हैं लकड़ी

देविता बताती हैं कि एक ठीक-ठाक पेड़ को काटने के बाद जो लकड़ी निकलती है उससे लगभग 10 फर्नीचर तैयार होता है। किंतु, हम अपने काम के लिए कोई पेड़ नही काट रहे। निश्चित तौर पर यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही जो फर्नीचर हम बना रहे, यानि अगर हम 100 फर्निचर बना रहे तो उसके एवज में हम 10 पौधे भी लगा रहे । इतना ही नही, अगर कोई स्कूल हमसे एक हजार फर्नीचर लेता है तो हर 10 फर्नीचर के पीछे स्कूल में हम एक पौधा भी लगा रहे। यानि एक हजार फर्नीचर के एवज में स्कूल में 100 पौधे लगाना हमारी कंपनी की पॉलिसी है ।

रिक्लेम वुड फर्निशिंग प्राइवेट लिमिटेड की संस्थापक दिविता का कहना है कि उनके इस स्टार्टअप के पीछे खुद का उद्यम खड़ा करने के साथ ही दूसरों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। लकड़ी के कारीगरों के साथ ही, इंटीरियल डिजाइन के क्षेत्र से जुड़े युवाओं के लिए भी हम इस प्लेटफॉर्म से रोजगार मुहैया करा सकें, ऐसा हमारा प्रयास है।

गोरखपुर में जन्‍मीं, दुबई में पली-बढ़ीं

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्मीं और दुबई में पली-बढ़ी दिविता ने अपनी पढ़ाई वहां के दिल्ली प्राइवेट स्कूल से पूरी करने के बाद यूनाइटेड किंगडम (यूके) के सर्रे गिल्डफोर्ड विश्वविद्यालय से वर्ष 2019 में बिजनेस एंड रिटेल मैनेजमेंट में बीएससी ऑनर्स की डिग्री ली। कुछ समय तक वहां काम करने के बाद दिविता ने भारत वापसी का फैसला किया और और जून 2019 में अपना स्टार्ट अप शुरू किया।

विदेश में ही रोजगार कमाने की बजाय भारत लौट व्यवसाय शुरू करने के बारे में दिविता का कहना है कि वह अपनी पढ़ाई, ज्ञान और कौशल का इस्तेमाल अपने देश और लोगों की तरक्की के लिए करने की पक्षधर हैं। वह चाहती तो यूके और दुबई में भी मोटी सैलरी पर काम कर सकती थी, किंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्टअप इंडिया’ से प्रेरित होकर उन्होंने देश वापसी का फैसला लिया। उनके इस फैसले में उनकी मां डॉ अंजना पांडेय का बड़ा हाथ रहा।

डॉ अंजना पांडेय ने दी.द.उ.गोरखपुर विश्वविद्यालय में कई वर्षों तक लॉ फैकल्टी में अध्यापन का कार्य किया। किंतु, बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए अध्यापन छोड़ वह दुबई बस गई थीं। उनके पति का वहां जमा-जमाया कारोबार है। बेटी दिविता के भारत लौट अपना व्यवसाय शुरू करने के फैसले के बाद अंजना वापस लौट आई हैं। इस बारे में पूछने पर अंजना का कहना है कि बेटी की इच्छा थी कि वह अपने देश में स्टार्टअप शुरू करे।

डॉ. अंजना बताती है कि दिविता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्टार्टअप इंडिया’ कांसेप्ट से प्रेरणा लेकर यह कदन उठाया। उसके इस फैसले पर उन्हें गर्व है कि बचपन से विदेश में रहने के बावजूद, उसे अपनी मातृभूमि और देश से प्यार है। वह अपने देश में अपने लोगों के बीच रहकर खुद के पैरों पर खड़ा होना चाह रही है, इसकी मुझे खुशी है।

(हिन्दुस्थान समाचार)

4:32 PM : 3 सीटों पर उपचुनाव

चुनाव आयोग ने मणिपुर विधानसभा की 3 सीटों पर उपचुनाव की घोषणा की। इन सीटों पर चुनावों का नोटिफिकेशन 13 अक्टूबर से लागू होगा जबकि 7 नवंबर को मतदान होगा। वहीं वोटों की गिनती 10 नवंबर को की जाएगी।

4:10 PM : विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष सत्र में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन

उन्होंने कहा कि हम उनकी कुर्बानी को हमेशा याद रखेंगे। पूरी दुनिया हमें देख रही है कि हम बीमारी मुक्त दुनिया बनाएं। चुनौतियों का हमें मिलकर सामना करना होगा। बिना किसी भेदभाव के सभी की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच हो।

3:55 PM : Nobel Prize 2020

3:00 PM : National Startup Awards

Results of the first edition of National Startup Awards will be released by Union Minister Piyush Goyal on 6th October at 3:30 PM in New Delhi. The winning Startups will get cash prizes of Rs 5 lakh each.

2:29 PM : 'टू फ्रंट वॉर' के लिए तैयार

एक साथ ‘टू फ्रंट वॉर’ के लिए तैयार है भारत : वायुसेना प्रमुख

लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। वहीं पाकिस्तान की ओर से लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर सीज़फायर का उल्लंघन आम बात है। ऐसे में भारत की बात करें तो वो एक साथ टू फ्रंट वॉर के लिए तैयार है। भारतीय वायुसेना के एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने साफ तौर पर कहा है कि भारत शांति चाहता है, लेकिन अगर भारत की संप्रभुता और अखंडता खतरे में आयी, तो वायुसेना मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।

भारतीय वायुसेना दिवस के पहले एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए वायुसेना प्रमुख भदौरिया ने सोमवार को साफ तौर पर ऐलान किया कि हम चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ एक साथ दो-फ्रंट युद्ध के लिए तैयार हैं। हम अपनी योजनाओं को अपने दम पर बनाते हैं। हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी। हमें अपने दम पर लड़ना होगा। हम चीन के लिए बहुत अच्छी तरह से तैनात और तैयार हैं। ऐसा कोई परिदृश्य नहीं है जहां चीन हमसे बेहतर कर सकता है।

लद्दाख हमारी तैनाती का एक छोटा सा हिस्सा है

एयरचीफ मार्शल ने चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए वायुसेना की तैयारियों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि लद्दाख हमारी तैनाती का एक छोटा सा हिस्सा है। हमने सभी संबंधित क्षेत्रों में तैनाती की है। हम दृढ़ता से किसी भी तरह का मुकाबला करने के लिए तैनात हैं। हमारी नजर आधुनिकीकरण और परिचालन प्रशिक्षण के माध्यम से अपनी आत्मनिर्भरता और रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए अपनी ताकत और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए जारी रखने पर है।

जब पूछा गया कि क्या हमारे पास लद्दाख में वायु सेना के संदर्भ में चीन पर बढ़त है तो वायुसेना प्रमुख ने कहा कि हम बहुत अच्छी तरह से तैनात हैं और इस बात पर कोई सवाल नहीं है कि किसी भी संघर्ष परिदृश्य में चीन हमसे बेहतर कर सकता है। वायुसेना प्रमुख ने चीन और पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमारे पास पड़ोस से उभरते खतरे की स्थिति को युद्ध के रूप में लड़ने के लिए मजबूत क्षमता है। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हम चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ एक साथ दो-फ्रंट युद्ध के लिए तैयार हैं।

पूर्वोत्तर में कार्ययोजना

पूर्वोत्तर में वायुसेना की मजबूती के बारे में पूछे जाने पर वायुसेना प्रमुख भदौरिया ने कहा कि पूर्वोत्तर के लिए हमारी कार्य योजना बहुत अधिक है। उत्तर पूर्व में हमारी क्षमता किसी भी परिदृश्य या किसी भी स्थिति में बहुत मजबूत होगी। भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना की उत्तरी सीमाओं पर आगे के क्षेत्रों में तेजी से लामबंदी ने विरोधी को आश्चर्यचकित कर दिया है, यह हमारी क्षमता और इरादे को दर्शाता है। जब उनसे पूछा गया कि आप पूर्वी लद्दाख में अगले 3 महीने कैसे देखते हैं? तो उन्होंने कहा कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि चीन के साथ वार्ता कैसे आगे बढ़ती है। वायुसेना प्रमुख ने यह भी कहा कि वार्ता की वर्तमान प्रगति धीमी है, इसलिए हम सर्दियों के लिए भी तैनाती के लिए तैयार हैं। हम इसी योजना के अनुसार कार्रवाई की बात कर रहे हैं। हमारी आगे की कार्रवाई जमीनी वास्तविकताओं पर निर्भर करेगी।

उन्होंने कहा कि हमने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट पर अपना भरोसा रखा है और अगले 5 वर्षों में हम 83 एलसीए मार्क-1 का इंडक्शन शुरू करेंगे। हम स्वदेशी उत्पादन में डीआरडीओ और एचएएल के प्रयास के समर्थक हैं और जल्द ही इस क्षेत्र में एचटीटी-40 और लाइट कॉम्बैट हेलीकाप्टर के लिए अनुबंध हो जायेगा।हमने राफेल्स, चिनूक, अपाचे को रिकॉर्ड समय में ऑपरेशनल किया है। अगले 3 साल में हम राफेल और एलसीए मार्क-1 स्क्वाड्रन को पूरी ताकत के साथ चालू करेंगे। साथ ही अतिरिक्त मिग-29 को वर्तमान बेड़े के अलावा ऑर्डर किया जाएगा।

(इनपुट- हिन्दुस्थान समाचार)

2:03 PM : Supersonic Missile Assisted Release of Torpedo

Supersonic Missile Assisted Release of Torpedo (SMART) has been successfully flight tested successfully today 5th Oct 2020 at 1145 hrs from Wheeler Island off the coast of Odisha.

All the mission objectives including missile flight upto the range and altitude, separation of the nose cone, release of Torpedo and deployment of Velocity Reduction Mechanism (VRM) have been met perfectly.

 

1:06 PM : COVID-19

11:32 AM : India Myanmar

8:18 AM : GST Council meeting

8:12 AM : Earthquake vulnerability status of the NCR region

No proposal to revise the earthquake vulnerability status of the NCR region: Harsh Vardhan

At present, there is no proposal to revise the earthquake vulnerability status of the NCR region said, the Minister of Science and Technology, Harsh Vardhan in a written reply to the Lok Sabha recently.

He informed the house that “several initiatives have been taken by concerned Ministries and departments towards preventive measures. NDMA has prepared and issued the guidelines on “Management of Earthquakes” and “Seismic retrofitting” of deficient buildings. Also, NDMA and State Disaster Management Authorities conduct regular programmes to create awareness about the earthquakes for public at large.”

He pointed that “a total of 745 earthquakes have been recorded by the National Seismological Network including, 26 events in NCR during last three years (September 2017 to August 2020) with magnitude 3 and above.”

He added “the analysis carried out by NCS on past 20 years earthquakes occurred in and around Delhi, does not show any definite pattern in frequency of earthquake occurrence which could suggest any increase in earthquake activity. However, during the recent years, seismic monitoring over Delhi has improved considerably and even the lower magnitude events are automatically detected and disseminated quickly through NCS website and Mobile App.”

He pointed out that “it is perhaps giving the impression of enhanced earthquake activity in the region, which was otherwise not noticed earlier. It is difficult to state that any increase in seismicity is an indicator of likely occurrence of major earthquake.”

He noted that “in view of the recent seismic activity in NCR, NDMA has organised meetings with Disaster Response Force and Governments of NCT, Haryana, Rajasthan and Uttar Pradesh to ensure compliance of building bye-laws to make upcoming constructions earthquake resistant; to conduct regular mock exercises to deal with earthquakes and to undertake the public awareness programs. Also, online Incident Response System (IRS) training and Table Top Exercise was organised for all the stakeholders.”

Further he said “National Centre for Seismology (NCS), under the Ministry of Earth Sciences (MoES), maintains a nation-wide seismological network to monitor the earthquake activity in and around the country. During the last few months (12 April- 3 July), four earthquakes of magnitude in the range M 3.3to 4.7 and 13 smaller earthquakes including, the aftershocks (M 2.5 – 3.0) were recorded in National Capital Region (NCR).”

In addition, Seismic Microzonation studies of Delhi, Kolkata, Sikkim, Guwahati, and Bengaluru among others has been carried out by MoES. Such studies are useful in land use planning and formulation of site-specific design and construction of buildings/ structures to minimizing the damage to property and loss of life caused by the earthquakes.

Besides, Bureau of Indian Standards (BIS) has also published various guidelines for construction of earthquake resistant structures and retrofitting to help in minimising damage.

7:45 AM : India exceeds 140 per day per million COVID tests

7:30 AM : Summit RAISE2020

4 October 2020

4:56 PM : गर्तांगली की 50 साल बाद होगी मरम्मत

दुनिया के खतरनाक रास्तों में से एक गर्तांगली की 50 साल बाद होगी मरम्मत

वर्ष 1962 से पहले भारत-तिब्बत व्यापार का प्रमुख मार्ग रहा गर्तांगली अब नए पर्यटक स्थल के रूप में उभरेगा। यह मार्ग गली नीलांग घाटी में है, सरकार इस पर 35 लाख रुपये खर्च करेगी। लोक निर्माण विभाग भटवाड़ी को इसकी मरम्मत का जिम्मा सौंपा गया है।

बॉर्डर डेवलपमेंट योजना के तहत नई परियोजना को स्वीकृति दी गई है जिसके तहत इस मार्ग की मरम्मत की जाएगी। यह मार्ग ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए एक रोमांचक जगह है। इस बारे में जानकारी देते हुये जिलाधिकारी मयूर दीक्षित बताया कि निविदा आमंत्रित की जा रही है। इस काम को 2020 में ही पूरा करने का लक्ष्य है। इस गली को खूबसूरत ट्रैक के रूप में जाना जाता है। इसे देखने देश- विदेश का पर्यटक पहुंचते रहे हैं। सरकार की योजना इसे दोबारा देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए खोलने की है। राज्य सरकार ने इस संबंध में केंद्र को प्रस्ताव भी भेजा है। प्रस्ताव मंजूर होने से जनजातीय क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। 40 सदस्यी टीम इस क्षेत्र का जायजा ले चुकी है।

समुद्र तल से 11 हजार फीट की ऊंचाई

यह गली समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर है। 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर यह रास्ता तैयार किया था। 500 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। 1962 से पहले भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद 10 साल तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। इसके बाद इसका रखरखाव नहीं किया गया। उत्तरकाशी जिले की नीलांग घाटी चीन सीमा से लगी है। सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए व जादूंग अंतिम चौकियां हैं। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां कदम-कदम पर सेना की कड़ी चौकसी है और बिना अनुमति के जाने पर रोक है।

तिब्बत के व्यापारी आते थे यहां

उत्तरकाशी के अजय पुरी बताते हैं कि दोरजी (तिब्बत के व्यापारी) ऊन और चमड़े से बने वस्त्र व नमक को लेकर सुमला, मंडी, गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे। तब उत्तरकाशी में हाट लगती थी। इसी कारण उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि को लेकर लौटते थे।

4:44 PM : बुजुर्ग न हों उपेक्षित

बुजुर्ग न हों उपेक्षित, बदलते मौसम में रखें उनका विशेष ध्यान

कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में बुजुर्गों का ख्याल रखना जरूरी है। इस वक्त मौसम भी बदल रहा है, इस स्थिति में और भी ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। इन दिनों बुजुर्गों की सेहत के प्रति लापरवाही उन्हें परेशानी में डाल सकती है। आमतौर पर बुजुर्गों में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।

फर्रुखाबाद के अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. दलवीर सिंह बताते हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण बुजुर्गों को होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसकी वजह यह है कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, और उन्हें दूसरी बीमारियां भी होती हैं। इसलिए उनका खास तौर तौर पर ख्याल रखना जरूरी है। उन्होंने कहा साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि परिवार के बुजुर्ग लोग अपने आप को को उपेक्षित महसूस ना करें। इसके लिए आप उनके बीच रोज कुछ समय बिताएं। उनसे बातचीत करें उनसे पूछे कोई परेशानी तो नहीं है। अगर उन्हें किसी तरह की परेशानी है तो उसका समाधान करने की कोशिश करें। जहां तक संभव हो सके, कोरोना की चर्चा करने से बचें। ऐसी बातें करें जिनसे हंसी-खुशी का माहौल बने।

घर में नियकित व्‍यायाम या योग करें

डा. सिंह ने इस संक्रमण से बचने के लिए बुजुर्गों को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए के बारे में बताते हुए कहा कि उम्रदराज लोगों को संक्रमण से बचाव के सभी संभव उपाय अपनाते हुए घर पर ही नियमित रूप से व्यायाम या योगा करना चाहिए, साथ ही उन्हें नियमित अंतराल पर साबुन से हाथ और चेहरा धोते रहना चाहिए। घर से बाहर न निकलने का सख्ती से पालन करते हुए बाहर से आए लोगों से मिलने में परहेज करना चाहिए। अगर मिलना बहुत जरूरी है तो कम से कम 2 गज की दूरी बनाकर मिलना सुरक्षित होगा। बुजुर्गों को घर में बना ताजा पोषण युक्त आहार व मौसमी फल, जूस, सूप, हर्बल टी या काढ़ा नियमित लेना चाहिए।

उम्रदराज लोगों को पहले से चल रही दवाओं का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए, साथ ही सर्दी जुकाम खांसी बुखार से पीड़ित लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। बुजुर्गों के कपड़े, चादरों और दूसरी चीजों की साफ सफाई नियमित रूप से करनी चाहिए। बुजुर्गों को बुखार जुकाम या सांस लेने में तकलीफ की समस्या होने पर तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करना चाहिए।

(हिन्दुस्थान समाचार)

2:23 PM : बुजुर्ग न हों उपेक्षित

बुजुर्ग न हों उपेक्षित, बदलते मौसम में रखें उनका विशेष ध्यान

कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में बुजुर्गों का ख्याल रखना जरूरी है। इस वक्त मौसम भी बदल रहा है, इस स्थिति में और भी ज्यादा सजग रहने की जरूरत है। इन दिनों बुजुर्गों की सेहत के प्रति लापरवाही उन्हें परेशानी में डाल सकती है। आमतौर पर बुजुर्गों में प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसे में संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।

फर्रुखाबाद के अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. दलवीर सिंह बताते हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण बुजुर्गों को होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसकी वजह यह है कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, और उन्हें दूसरी बीमारियां भी होती हैं। इसलिए उनका खास तौर तौर पर ख्याल रखना जरूरी है। उन्होंने कहा साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि परिवार के बुजुर्ग लोग अपने आप को को उपेक्षित महसूस ना करें। इसके लिए आप उनके बीच रोज कुछ समय बिताएं। उनसे बातचीत करें उनसे पूछे कोई परेशानी तो नहीं है। अगर उन्हें किसी तरह की परेशानी है तो उसका समाधान करने की कोशिश करें। जहां तक संभव हो सके, कोरोना की चर्चा करने से बचें। ऐसी बातें करें जिनसे हंसी-खुशी का माहौल बने।

घर में नियकित व्‍यायाम या योग करें

डा. सिंह ने इस संक्रमण से बचने के लिए बुजुर्गों को क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए के बारे में बताते हुए कहा कि उम्रदराज लोगों को संक्रमण से बचाव के सभी संभव उपाय अपनाते हुए घर पर ही नियमित रूप से व्यायाम या योगा करना चाहिए, साथ ही उन्हें नियमित अंतराल पर साबुन से हाथ और चेहरा धोते रहना चाहिए। घर से बाहर न निकलने का सख्ती से पालन करते हुए बाहर से आए लोगों से मिलने में परहेज करना चाहिए। अगर मिलना बहुत जरूरी है तो कम से कम 2 गज की दूरी बनाकर मिलना सुरक्षित होगा। बुजुर्गों को घर में बना ताजा पोषण युक्त आहार व मौसमी फल, जूस, सूप, हर्बल टी या काढ़ा नियमित लेना चाहिए।

उम्रदराज लोगों को पहले से चल रही दवाओं का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए, साथ ही सर्दी जुकाम खांसी बुखार से पीड़ित लोगों से दूरी बनाकर रखना चाहिए। बुजुर्गों के कपड़े, चादरों और दूसरी चीजों की साफ सफाई नियमित रूप से करनी चाहिए। बुजुर्गों को बुखार जुकाम या सांस लेने में तकलीफ की समस्या होने पर तत्काल नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करना चाहिए।

(हिन्दुस्थान समाचार)

2:01 PM : Joint naval exercise

1:44 PM : India Fights Corona

1:44 PM : India Fights Corona

12:22 PM : Transforming India

8:22 AM : Visit to Myanmar

Chief of Army Staff General Manoj Naravane and Foreign Secretary
Harsh V Shringla will be on a two-day visit to Myanmar beginning today.

8:22 AM : Visit to Myanmar

Chief of Army Staff General Manoj Naravane and Foreign Secretary
Harsh V Shringla will be on a two-day visit to Myanmar beginning today.

8:00 AM : 'शौर्य' का सफल परीक्षण

भारत ने किया परमाणु मिसाइल ‘शौर्य’ का सफल परीक्षण

भारत ने एक टन तक के पेलोड के साथ वॉरहेड ले जाने में सक्षम परमाणु मिसाइल ‘शौर्य’ का सफल परीक्षण शनिवार को किया। सतह से सतह पर 800 किमी. की दूरी तक मार करने वाली यह मिसाइल 50 किमी. की ऊंचाई पार करने के बाद हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की भूमिका में आ जाती है।

सतह से सतह पर मार करने वाली परमाणु क्षमता वाली बैलिस्टिक ‘शौर्य मिसाइल’ के नए संस्करण का सफल परीक्षण ओडिशा तट पर किया, जो लगभग 800 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य को मार सकती है। यह मिसाइल एक टन तक के पेलोड के साथ वॉरहेड ले जा सकती है। इसका पहला परीक्षण 12 नवम्बर, 2008 को चांदीपुर इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज में निर्मित परिसर-3 से किया गया था। उड़ान भरने पर लगभग 50 किमी. की ऊंचाई तक पहुंचने के बाद यह मिसाइल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की तरह उड़ने लगती है। लक्ष्य क्षेत्र में पहुंचने के बाद 20 से 30 मीटर की दूरी पर युद्धाभ्यास करने के बाद सटीक हमला करती है।

अद्वितीय प्रहार करने की क्षमता

शौर्य मिसाइल सतह से सतह पर 800 किमी. की दूरी तक मार करने में सक्षम है, जिसे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने भारतीय सशस्त्र बलों के उपयोग के लिए विकसित किया है। यह एक टन परंपरागत या परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। शौर्य प्रक्षेपास्त्र भारत को अद्वितीय प्रहार करने की महत्वपूर्ण क्षमता देता है। शौर्य प्रक्षेपास्त्र को जल के नीचे मार करने वाली सागारिका प्रक्षेपास्त्र का भूमि संस्करण माना जाता रहा है लेकिन डीआरडीओ के अधिकारियों ने सागारिका कार्यक्रम के साथ इसके संबंध से इनकार किया है।

शौर्य मिसाइल को क्रूज मिसाइल हाइब्रिड प्रणाली के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अमेरिकी टॉमहॉक और इंडो-रूसी ब्रह्मोस जैसी पारंपरिक क्रूज मिसाइलें सटीकता के साथ वार तो करती हैं लेकिन इनके इंजन इन्हें धीरे-धीरे साथ ले जाते हैं, जिससे दुश्मन के विमानों और मिसाइलों की चपेट में आने का खतरा बना रहता है। इसके विपरीत शौर्य मिसाइल का वायु स्वतंत्र इंजन इसे हाइपरसोनिक गति के साथ आगे बढ़ाता है, जिससे दुश्मन के लड़ाकू विमानों और मिसाइलों को बहुत पीछे छोड़कर यह सटीक हमला करने में सक्षम है। शौर्य एक बुद्धिमान मिसाइल है, क्योंकि ऑनबोर्ड नेविगेशन कंप्यूटर से निर्देशित करते ही यह सीधे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है।

एक मिश्रित कनस्तर में रखी जाती है शौर्य मिसाइल

शौर्य मिसाइल को एक मिश्रित कनस्तर में संग्रहित किया जाता है, जो लंबे समय तक रखरखाव के बिना स्टोर करने और परिवहन करने के लिए बहुत आसान बनाता है। गैस जनरेटर कनस्तर से मिसाइल को बाहर करके इसे इच्छित लक्ष्य पर तेज गति से फेंक देता है। इसे प्रक्षेपित करने से पहले तक दुश्मन या निगरानी उपग्रहों से भूमिगत भंडारों में छिपाकर रखा जा सकता है। सतह पर इसका उड़ान समय 500 सेकंड और 700 सेकंड के बीच है। इसे आसानी से सड़क मार्ग से ले जाया जा सकता है। इसे उपग्रहों द्वारा आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता है, जो इसकी तैनाती को आसान बनाता है। उड़ान भरने पर लगभग 50 किमी की ऊंचाई तक पहुंचने के बाद यह मिसाइल हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल की तरह उड़ने लगती है। लक्ष्य क्षेत्र में पहुंचने के बाद 20 से 30 मीटर की दूरी पर युद्धाभ्यास करने के बाद सटीकता के साथ हमला करती है।

रक्षा वैज्ञानिकों का कहना है कि दो चरणों वाली अत्यधिक चुस्त शौर्य मिसाइल अत्यधिक घातक है, जो कम ऊंचाई पर भी 7.5 मैक के वेग तक पहुंच सकती है। पिछले परीक्षण के दौरान 12 नवम्बर, 2008 को शौर्य मिसाइल मैक 5 के वेग तक पहुंच गई, क्योंकि यह सतह पर 700 डिग्री सेल्सियस के तापमान के साथ 300 किमी. की दूरी पार कर गई थी। मिसाइल ने अपनी सतह पर समान रूप से गर्मी फैलाने के लिए रोल का प्रदर्शन किया। उड़ान का समय 500 सेकंड से 700 सेकंड के बीच था। इसे उच्च प्रदर्शन नेविगेशन और मार्गदर्शन प्रणाली, कुशल प्रणोदन प्रणाली, अत्याधुनिक नियंत्रण प्रौद्योगिकियों और कनस्तर लॉन्च के साथ एक जटिल प्रणाली के रूप में वर्णित किया गया है।

(हिन्दुस्थान समाचार)

3 October 2020

8:26 PM : अंडमान बेस पर उतरा मिसाइलों, राकेट्स से लैस अमेरिकी विमान

अंडमान बेस पर उतरा मिसाइलों, राकेट्स से लैस अमेरिकी विमान

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रक्षा संबंधों के चलते अब यूएस नौसेना के पेट्रोलिंग जहा जों ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से ईंधन भरना शुरू कर दिया है। अमेरिकी नौसेना का एयरक्राफ्ट पी-8 पोसाइडन 25 सितम्बर को लॉजिस्टिक्‍स और रिफ्यूलिंग सपोर्ट के लिए भारतीय नौसेना के पोर्ट ब्‍लेयर बेस पर उतरा। मिसाइलों और राकेट्स से लैस यह विमान कई घंटे तक यहां रहा और अपनी जरूरतें पूरी करने के बाद आगे के सफर पर निकल पड़ा।

भारतीय नौसेना के प्रवक्ता ने बताया कि 2016 में भारत और अमेरिका के बीच (लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ अग्रीमेंट-लेमोआ) पर समझौता हुआ था। इसके तहत दोनों देश की तीनों सेनाएं मरम्मत और सेवा से जुड़ी अन्य जरूरतों के लिए एक दूसरे के अड्डे का इस्तेमाल कर रही हैं । अभी पिछले माह भारत का जंगी जहाज आईएनएस तलवार मिशन पर तैनात था और उसे ईंधन की जरूरत पड़ी तो इसी लेमोआ समझौते के तहत अरब सागर में अमेरिकी नौसेना के टैंकर यूएसएनए यूकोन से ईंधन लिया था। समझौते के तहत भारतीय जंगी जहाज और एयरक्राफ्ट्स अमेरिकी बेस जिबूती, डिएगो ग्रेसिया, गुआम और स्‍यूबिक बे पर आते-जाते हैं। दोनों देश एक-दूसरे के जंगी जहाजों पर रिफ्यूलिंग और ऑपरेशनल सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। मगर यह पहली बार है जब अंडमान निकोबार बेस पर अमेरिकी सेना का जहाज उतरा हो।

भारतीय नौसेना का हवाई स्टेशन

चीन से जुड़ी समुद्री सीमा पर भारतीय नौसेना की अंडमान-निकोबार कमांड (एएनसी) 2001 में बनाई गई थी । यह देश की पहली और इकलौती कमांड है, जो एक ही ऑपरेशनल कमांडर के अधीन जमीन, समुद्र और एयर फोर्स के साथ काम करती है। यहां आईएनएस उत्क्रोश भारतीय नौसेना का हवाई स्टेशन है। यह अं डमान और निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर पर नौसेना के बेस आईएनएस जारवा के पास स्थित है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पोर्ट ब्लेयर पर भारतीय नौसेना के हवाई स्टेशन पर अमेरिका के पेट्रोलिंग जहाज का उतरना काफी अहम है। यहां अमेरिकी नौसेना का मिसाइलों और राकेट्स से लैस एयरक्राफ्ट पी-8 पोसाइडन लॉजिस्टिक्‍स और रिफ्यूलिंग सपोर्ट के लिए उतरा।

भारत के पास भी 8 अमेरिकी पी-8 आई एयरक्राफ्ट्स हैं जिन्हें हिन्द महासागर में सर्विलांस के अलावा पूर्वी लद्दाख में पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी पर नजर रखने के लिए भी तैनात किया गया है । यह 8 एयरक्राफ्ट जनवरी 2009 में 2.1 बिलियन डॉलर में हुई डील के तहत मिले थे । चार और पी -8 आई एयरक्राफ्ट की डील जुलाई 2016 में 1.1 बिलियन डॉलर की हुई है जिनकी आपूर्ति इस साल दिसम्बर तक होने की उम्मीद है।

( हिन्दुस्थान समाचार)

5:12 PM : Sports Authority of India issues new guidelines

Sports Authority of India issues new guidelines called Graduated Return to Play, under which coaches have been instructed to plan a physical activity at 50% of normal intensity and volume for an otherwise healthy patient, who has been asymptomatic for 7-days.

2:11 PM : प्रधानमंत्री ने Escape tunnel का लिया जायजा

1:53 PM : PM travels from South Portal of Atal Tunnel

12:05 PM : COVID-19

11:55 AM : COVID-19

11:55 AM : अटल टनल का उद्घाटन

इस टनल से मनाली और केलॉन्ग के बीच की दूरी 3-4 घंटे कम हो ही जाएगी।

पहाड़ के मेरे भाई-बहन समझ सकते हैं कि पहाड़ पर 3-4 घंटे की दूरी कम होने का मतलब क्या होता है

हमेशा से यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की मांग उठती रही है।

लेकिन लंबे समय तक हमारे यहां बॉर्डर से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट या तो प्लानिंग की स्टेज से बाहर ही नहीं निकल पाए या जो निकले वो अटक गए, लटक गए, भटक गए

साल 2002 में अटल जी ने इस टनल के लिए अप्रोच रोड का शिलान्यास किया था।

अटल जी की सरकार जाने के बाद, जैसे इस काम को भी भुला दिया गया।

हालात ये थी कि साल 2013-14 तक टनल के लिए सिर्फ 1300 मीटर का काम हो पाया था

एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस रफ्तार से 2014 में अटल टनल का काम हो रहा था,

अगर उसी रफ्तार से काम चला होता तो ये सुरंग साल 2040 में जाकर पूरा हो पाती।

आपकी आज जो उम्र है, उसमें 20 वर्ष और जोड़ लीजिए, तब जाकर लोगों के जीवन में ये दिन आता, उनका सपना पूरा होता

जब विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना हो, जब देश के लोगों के विकास की प्रबल इच्छा हो, तो रफ्तार बढ़ानी ही पड़ती है।

अटल टनल के काम में भी 2014 के बाद, अभूतपूर्व तेजी लाई गई

11:55 AM : अटल टनल का उद्घाटन

इस टनल से मनाली और केलॉन्ग के बीच की दूरी 3-4 घंटे कम हो ही जाएगी।

पहाड़ के मेरे भाई-बहन समझ सकते हैं कि पहाड़ पर 3-4 घंटे की दूरी कम होने का मतलब क्या होता है

हमेशा से यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की मांग उठती रही है।

लेकिन लंबे समय तक हमारे यहां बॉर्डर से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट या तो प्लानिंग की स्टेज से बाहर ही नहीं निकल पाए या जो निकले वो अटक गए, लटक गए, भटक गए

साल 2002 में अटल जी ने इस टनल के लिए अप्रोच रोड का शिलान्यास किया था।

अटल जी की सरकार जाने के बाद, जैसे इस काम को भी भुला दिया गया।

हालात ये थी कि साल 2013-14 तक टनल के लिए सिर्फ 1300 मीटर का काम हो पाया था

एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस रफ्तार से 2014 में अटल टनल का काम हो रहा था,

अगर उसी रफ्तार से काम चला होता तो ये सुरंग साल 2040 में जाकर पूरा हो पाती।

आपकी आज जो उम्र है, उसमें 20 वर्ष और जोड़ लीजिए, तब जाकर लोगों के जीवन में ये दिन आता, उनका सपना पूरा होता

जब विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना हो, जब देश के लोगों के विकास की प्रबल इच्छा हो, तो रफ्तार बढ़ानी ही पड़ती है।

अटल टनल के काम में भी 2014 के बाद, अभूतपूर्व तेजी लाई गई

1 October 2020

6:12 PM : कोविड 19 : आज महात्मा गांधी होते तो क्या करते?

कोविड 19 : आज महात्मा गांधी होते तो क्या करते?

पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी का कहर जारी है। समूचा विश्व वायरस से जूझ रहा है। अब तक किसी भी देश को इसका ठोस समाधान नहीं मिला है। लेकिन अगर लॉकडाउन के बाद से जो जीवन दुनिया के अधिकांश लोग जी रहे हैं, उसमें महात्मा गांधी के विचार मनोबल को बढ़ाने का काम करते हैं। दिल्ली विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. दिनेश सिंह कहते हैं कि इस बात को समझने के लिए अतीत में झांकना होगा और उन महान व्यक्तियों के तौर-तरीकों को अपनाना होगा जो इस तरह के संकट से लड़ चुके हैं। उनसे यह भी सीखना होगा कि भय और अवसाद के माहौल में खुद के मनोबल को कैसे बनाए रखा जाए। इसके लिए महात्मा गांधी से बेहतर कौन हो सकता है। उन्होंने ऐसे संकट को जीया है; साहस, दृढ़ निश्चय और संगठित तरीके से लड़ा है।

इस बात को गहराई से समझाने के लिए प्रो. दिनेश सिंह ने महामारी पर अपने एक लेख में गांधी जी के विचारों का उल्लेख किया है। वो लिखते हैं कि यह बात तब की है जब गांधी 35 वर्ष के थे। साल 1905 था। दक्षिण अफ्रीका का जोहान्सबर्ग शहर प्लेग महामारी की चपेट में था। इस शहर के एक हिस्से में भारतीयों की आबादी अच्छी-खासी तादाद में थी। कई भारतीय इस बीमारी से ग्रस्त थे। युवा गाधी ने उनकी देखभाल के लिए कमर कस ली थी। यह जानते हुए कि यह संक्रमण उन्हें भी हो सकता है। लेकिन वे पीछे हटने को तैयार नहीं थे। तब तक एंटी बाॅयोटिक का अविष्कार नहीं हुआ था। इस वजह से प्लेग का इलाज संभव नहीं था। संक्रमण तेजी से फैल रहा था। गांधी बेखौफ संक्रमित लोगों की देखभाल में लगे थे जबकि वह जानते थे कि रोग होने पर बचने की संभावना न के बराबर है। फिर भी वे डटे रहे। उन्होंने स्वयंसेवकों से इस शर्त पर सहयोग लेना स्वीकार किया था कि उनका न तो कोई परिवार है और न ही कोई आश्रित। इस तरह की शर्त वो गांधी रख रहे थे जिनकी पत्नी अभी युवा थी और उनके चार छोटे-छोटे बच्चे भी थे। पूरा परिवार उन पर ही आश्रित था। बीमारी ऐसी थी कि लग जाए तो मरना तय था। ऐसा हो भी चुका था। एक ब्रिटिश महिला जो उनकी सहयोगी थीं, वह संक्रमण के कारण मर चुकी थी। बावजूद इसके गांधी पीछे नहीं हटे। यह उनके अदम्य साहस का नमूना है।

गांधी जी को लिखा गया पत्र

यहां एक पत्र का जिक्र। वह पत्र गांधीजी को लिखा गया था। तब वे भारत आ चुके थे। उस पत्र को उन्होंने नवजीवन में छापा में था। उस पत्र में कहा गया था- गांधी की अहिंसा, शहीद भगत सिंह के अनुकरणीय साहसिक कार्यों के बजाए कायरता से उपजी थी। गांधी ने इसका जवाब दिया। लेकिन अपना उदाहरण पेश नहीं किया। उन्होंने लोकमान्य तिलक और गोपाल कृष्ण के साहस और बलिदान का हवाला देते हुए कहा कि भगत सिंह, तिलक और गोखले के साहस और बलिदान की एक-दूसरे से तुलना करना ठीक नहीं है। सबने अपने तरीके से काम किया।

गांधीजी ने भी जो जोहान्सबर्ग में किया, वह भी इसी श्रेणी में आता है। वह इसलिए क्योंकि संक्रमित लोगों की जिस तरह वे देखभाल कर रहे थे, उसकी वजह से उनके सीधे संपर्क में थे। लोगों की देखरेख के अलावा, एक और मोर्चा उन्होंने खोल रखा था। वह साफ-सफाई का था। उनकी पूरी कोशिश थी कि भारतीय समुदाय साफ-सफाई को अपना स्वभाव बना ले। गांधीजी की आदत में ही वह शुमार था। इसी वजह से वे साफ-सफाई को बहुत महत्व देते थे। उन्होंने इसके लिए जोहान्सबर्ग नगर निगम को आड़े हाथ लिया था और कहा था कि महामारी फैलाने में इनकी भी भूमिका है क्योंकि नगर निगम ने सफाई पर ध्यान नहीं दिया था।

आज बापू होते तो क्या करते?

तो इसलिए यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि कोविड 19 के इस दौर में अगर गांधी होते तो क्या करते। इस संदर्भ में यह बताना जरूरी है कि स्पेनिश फ्लू के समय में भी महात्मा गांधी थे। लेकिन ऐसा माना जाता है कि वे वायरस से पीड़ित नहीं थे। वास्तव में वे पेट के संक्रमण की वजह से बिस्तर पर थे। उसकी एक वजह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना में भारतीयों की भर्ती भी थी। इस कारण भी उनका स्वास्थ्य प्रभावित था। उनके दो पोते स्पेनिश फ्लू का शिकार हो चुके थे।

प्रो. दिनेश सिंह लिखते हैं कि मौजूदा समय में कोविड 19 की वैक्सीन को लेकर वैश्विक स्तर पर जो प्रयास चल रहा है, क्या गांधीजी उसका समर्थन करते? इस सवाल के खड़े होने की दो वजह है। एक- गांधीजी प्राकृतिक चिकित्सा के पैरोकार थे और दूसरा, चेचक की वैक्सीन के विरोधी थे। हालांकि उसके विरोध के लिए उनका जो तर्क था, वह बहुत तार्किक था। वे कहते थे कि चेचक का वैक्सीन तैयार करने के लिए गाय के साथ जिस तरह की क्रूरता की जा रही है, वह अमानवीय है। उनका कहना था कि वैक्सीन बनाने का तरीका हिंसक है और वह गाय के मांस खाने जैसा है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वे वैक्सीन के विरोधी थे। वर्धा में उन्होंने सेवाग्राम के बाशिंदों को हैजा का टीका लगवाने के लिए कहा था। उसकी एक वजह तो यह थी कि वह चेचक के टीके की तरह तैयार नहीं किया जाता था। इसके बनाने की विधि के कारण ही गांधीजी के अनुयायी मोराजी देसाई ने कभी चेचक का टीका नहीं लगवाया। जब वे प्रधानमंत्री बने तो ब्रिटेन जैसे देशों ने उनके लिए विशेष व्यवस्था की। ब्रिटेन उन देशों में शुमार था जहां का वीसा हासिल करने के लिए चेचक का टीका लगवाना एक शर्त थी। वैसे आज गांधीजी होते तो वे चेचक के टीके का विरोध नहीं करते क्योंकि मौजूदा समय में उसके उत्पादन का तरीका बदल गया है। मेरा मानना है कि वे कोरोना वैक्सीन के उत्पादन को लेकर चल रहे प्रयास का भी विरोध नहीं करते।

उन्‍होंने लिखा कि मौजूदा संकट को देखते हुए कुछ और बातें भी गांधीजी से सीखी जा सकती है। यह बात 1932 की है। गुजरात प्लेग की चपेट में था। बोरसद तालुका सबसे ज्यादा प्रभावित था। सरदार पटेल ने वहां मोर्चा संभाल रखा था। बाद में गांधीजी भी आ गए। घर-घर जाकर लोगों से बात की। उन्हें स्वच्छता का महत्व समझाया और वहां के लोगों को महामारी से उबारा। उससे हमें आज सीखने की जरूरत है।

प्रो. सिंह लिखते हैं, “एक और बात जो इस आपदा के दौर में हुई है, वह अर्थव्यवस्था का चरमराना है। उन लाखों करोड़ों प्रवासी श्रमिकों की पीड़ा है जिनके हाथ में काम नहीं है। ऐसे दौर में गांधीजी क्या करते? वह इससे निपटने के लिए बहुत व्यवहारिक तरीका चुनते। पहले तो वे उस माध्यम को अपनाते जिसके जरिए शहरों से भाग रहे करोड़ों श्रमिक सकुशल और सुरक्षित गांव पहुंच सकें। फिर उनके स्वरोजगार की व्यवस्था करते। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि इरविन शूमाकर ने अपनी किताब ‘स्माल इज ब्यूटीफुल’ में जिस अर्यव्यवस्था का विचार रखा है, यदि भारत उसे अपनाता तो उसे प्रवासी संकट से नहीं गुजरना पड़ता। मेरा मानना है कि अर्थव्यवस्था को लेकर गांधीजी के जो विचार हैं, उसे शूमाकर ने बेहतर तरीके से उकेरा है। गांव बदल चुके हैं। इसी वजह से ग्रामीण, रोजगार के लिए अपने गांव से इतना दूर निकल आए हैं। अगर उनको गांव में काम मिल जाता वे इतना दूर क्यों जाते?”

गांधीजी की हमेशा यही सोच रही कि गांव स्वावलंबी हो। वे कोशिश भी करते रहे। चरखा उसी स्वालंबन का बिम्ब है। इसलिए गांधीजी उसपर जोर देते थे। उन्होंने ही चरखे का मर्म समझाया। वे कहते थे कताई करना ध्यान और पूजा है। वे यह भी कहते थे कि कताई चरित्र का भी निर्माण करती है। निःसंदेह भारत की भूखी लाखों जनता के लिए यह आर्थिक सशक्तीकरण के साथ स्वाभिमान का भी जरिया है। मोरारजी देसाई जब प्रधानमंत्री थे तब भी वे रोज चरखा से सूत कातते थे। हालांकि मैं यह मानता था कि गांधीजी मशीनों से डरते हैं इसलिए चरखे का महिमामंडन करते हैं। वह मेरी बात पर हंसते और कहते- जबतक तुम खुद चरखा नहीं चलाओगे तबतक इसकी ताकत को नहीं समझोगे। सालों बाद, मैं समझ पाया कि मोरारजी भाई कितने सही थे। जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में चरखा लेकर आया तब मुझे इसकी ताकत का अंदाजा लगा। जल्द ही छात्रों पर इसके सकारात्मक प्रभाव दिखने लगे जो अविश्वसनीय थे। कई लोगों ने बताया कि चरखे की वजह से उनका अवसाद दूर हो गया और माइग्रेन की समस्या खत्म हो गई।

जाहिर है महामारी के इस अंधकार में जब डर और अवसाद लोगों में घर कर चुका है और रोजगार छिन चुका है तब महात्मा गांधी के ही तरीकों को अपनाना होगा। लेकिन हमें याद रखना होगा कि वे टीके के विरोधी नहीं थे बल्कि वे चाहते थे कि गांव के लोग खुद कुछ सोचें और एक आत्मनिर्भर आर्थिक प्रणाली विकसित करें जिसमें चरखा और अन्य चीजें उत्प्रेरक का काम करे। उन्होंने एक गांव में चरखे के जरिए सूत कातने का फायदा बताते हुए कहा -‘यदि आपने चरखे पर सूत कातना शुरू कर दिया तो मैं आपको वचन देता हूं कि औद्योगिकीकरण नियत समय में होगा’। कोरोना के इस दौर में गांधीजी भारतीय गांव के लिए उम्मीदों का प्रतीक हैं।

(ह‍िन्दुस्थान समाचार)

6:00 PM : Swachh Bharat Mission

5:55 PM : Anti Tank Guided Missile was successfully tested

5:44 PM : CEC Sunil Arora's press conference

5:22 PM : Mark of respect

MHA announces one day state mourning on October 4, 2020 as a mark of respect on the passing away of Sheikh Sabah Al-Ahmed Al-Jaber Al-Sabah, Amir of the State of Kuwait.

4:23 PM : “Freight and passenger train operations are being reoriented,

2:55 PM : NTPC

NTPC coal stations maintain high availability 94.21 % during April to Sept’20 as against 90.26% during the same period last year.

2:00 PM : Atal Tunnel

2:00 PM : पर्यावरण पर बैठक

पर्यवरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि आज पर्यावरण मंत्रियों के साथ बैठक में प्रदूषण से निपटने के प्रयासों पर चर्चा की गई।

उन्‍होंने कहा कि पराली से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए बीएस-6 मानक को किया गया लागू।

1:09 PM : UPDATES ON COVID-19

12:22 PM : अनलॉक-5

अनलॉक-5 : बुजुर्गों के लिये कितना सही है अब माहौल?

अनलॉक-5 की गाइडलाइन जारी कर दी गई है। थियेटर, सिनेमा हॉल जैसे कई संस्थान को नये दिशा निर्देश के साथ खोलने की अनुमति दी गई है। हालांकि देश में वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। लेकिन जिंदगी को पटरी लाने के लिये देश अब लगभग पूरी तरह से खुल चुका है। लेकिन इसके लिये न्यू नॉर्मल को अपनाने की सलाह दी गई है। लकडाउन के बाद से जिंदगी को नये सिरे से आगे बढ़ाना है, जिसमें मास्क, सेनिटाइजर और फीजिकल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है। अनलॉक की इस प्रक्रिया में क्या है चुनौतियां और वायरस और संक्रमण से जुड़े तमाम सवालों के जवाब के लिये एम्स नई दिल्ली के डॉ प्रसून चटर्जी ने।

अनलॉक-5 के बाद लोगों लिए नए दिशा-निर्देश हैं?

कोरोना की स्थिति अभी सुधरी नहीं है। लॉकडाउन के बाद से अब हमें और ज्यादा सतर्क रहना है, क्योंकि तब घर में थे और अब बाहर जा रहे हैं। सीरो सर्वे के रिपोर्ट भी कहती है कि अभी भी पूरी आबादी के लिहाज से हमारे देश में संक्रमण बहुत कम है। यह भी ध्‍यान रहे कि अभी हम हर्ड इम्युनटी से काफी दूर हैं। ऐसे में अगर लापरवाही बरतेंगे तो स्थिति बिगड़ सकती है।

अनलॉक-5 हो चुका है, बुजुर्गों के लिये अब माहौल कितना सही है?

जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, तब तक बुजुर्गों को पूरी सतर्कता बरतनी है। अनलॉक-5 हो या कोई भी जब तक जरूरत न हो बाहर न जायें। अगर बाहर जाना है तो मास्क लगा कर, सेनिटाइजर साथ रख कर जायें। अगर उन्हें बाहर नहीं जाने दे रहें हैं तो, परिवार के सदस्य अपने दादा-दादी के साथ वक्त बितायें। क्योंकि लंबे समय तक एक ही जगह रह कर बुजुर्ग भी परेशान हो जाते हैं और कोरोना में अभी बुजुर्गों को लंबे समय तक सावधानी रखनी है। उनमें इम्युनिटी कमजोर होती है। हालांकि सभी सदस्यों को नियमों का पालन करना होगा।

कोरोना की दवा कब तक बन कर तैयार होगी?

कोरोना की कई वैक्सीन बन गई हैं, उनका ट्रायल चल रहा है। जहां तक दवा की बात है, तो कई तरह की दवाओं का प्रयोग मरीजों के इलाज में किया जा रहा है। वो भी कोई स्थाई दवाएं नहीं हैं। संक्रमितों में भी ज्यादातर एसिम्प्टोमेटिक हैं, जो खुद ही ठीक हो जाते हैं।

कोरोना काल में मिट्टी से हाथ धोना कितना सुरक्षित है?

मिट्टी से हाथ धोने से हाथ के कीटाणु-जीवाणु नहीं मरेंगे, क्योंकि उनमें अन्य बैक्टीरिया भी हो सकते हैं। हाथ केवल साबुन से धोएं बस साबुन में झाग आना चाहिए।

सीरो सर्वे के अनुसार 6.6% आबादी संक्रमित हो चुकी है, ऐसे में हर्ड इम्युनिटी की क्या भूमिका है?

जब कोई बीमारी किसी आबादी के 80 प्रतिशत लोगों को संक्रमित कर चुकी होती है और संक्रमित बीमारी से लड़ने के लिये एंटीबॉडी से ठीक हो चुके हैं। तो बची हुई आबादी को संक्रमण का खतरा नहीं होता है। उनमें एंटीबॉडी नहीं भी बनेंगे तो भी वे संक्रमित नहीं होंगे। इसे हर्ड इम्‍युनिटी कहते हैं और हमारे देश में अभी यह बहुत दूर हैं।

11:33 AM : BrahMos Missile

10:47 AM : किसान रेल

10:39 AM : आरमीनिया-अज़रबैजान के बीच युद्ध

आरमीनिया-अज़रबैजान के बीच युद्ध, जानिए जंग के कारण और इतिहास

मध्‍य एशियाई देश आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच आज लगातार दूसरे दिन भीषण युद्ध जारी रहा। यह युद्ध है नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर। इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच दशकों से विवाद चला आ रहा है और दोनों के बीच जंग भी पहले हो चुकी है। लेकिन इस बार इस जंग ने नया रूप ले लिया है। खास बात यह है अब यह जंग महज दो देशों के बीच सीमित नहीं रह गई है। रूस और तुर्की भी इसमें खुलकर हस्‍तक्षेप कर रहे हैं। तुर्की जहां अज़रबैजान के समर्थन में है, वहीं रूस ने दोनों देशों के साथ व्‍यापारिक रिश्‍ते खत्‍म करने की बात कही है। दोनों देशों के बीच ह‍िंसा ने अब भयावह रूप ले लिया है। सोमवार को शुरू हुई इस जंग में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं। अधिकारियों के मुताबिक सेना के 26 लोगों के मारे जाने के बाद मृतकों की कुल संख्‍या 80 के पार हो गई है। यहां पर दोनों देशों की सेनाओं की टुकड़‍ियां बढ़ायी जा रही हैं।

एक दशक से अधिक समय तक चला था युद्ध

यह जंग नागोर्नो-काराबाख नाम के पहाड़ी इलाके को लेकर चल रही है। अज़रबैजान का दावा है कि यह इलाका उसका है, हालांकि 1992 की जंग के बाद से इस क्षेत्र पर आरमीनिया का कब्‍जा है। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो इस क्षेत्र पर अल्‍गाववादी संगठनों का वर्चस्व रहा है। इसके चलते यहां कई दशकों तक जातीय संघर्ष हुए। दोनों देशों के बीच का यह विवाद कई दशक पुराना है। 1980 की शुरुआत से लेकर 1992 तक इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच जंग चली। उस दौरान 30 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। 1994 में युद्धविराम के बाद भी यहां बीच-बीच ह‍िंसा की खबरें आती रहती थीं। दरअसल ये दोनों देश युद्ध विराम पर तो राज़ी हुए, लेकिन शांति समझौते पर कभी राज़ी नहीं हुए।

जिस वक्त नागोर्नो-काराबाख में जनमत कराया गया, तब दोनों ओर से भीषण हिंसा हुई और लाखों की संख्‍या में लोग मारे गए। स्थिति तब और ज्यादा खराब हो गई जब क्षेत्र के स्‍थानीय प्रशासन ने आरमीनिया के साथ जुड़ने का मत जाहिर किया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि यह क्षेत्र आरमीनियाई बहुल्‍य क्षेत्र है। 1992 तक स्थिति और भी खराब हो गई और लाखों लोग विस्‍थापित हो गए।

1994 में रूस के हस्‍तक्षेप के बाद आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध विराम हुआ। लेकिन विवाद जारी रहा और तीन दशक बाद एक बार फिर दोनों ओर से युद्ध विराम का उल्‍लंघन किया गया है। आपको बता दें कि नागोर्नो-काराबाख में रिपब्लिक ऑफ अर्तसाख का शासन है, लेकिन अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अज़रबैजान को यहां के शासन की मान्‍यता प्राप्‍त है।

कैसे शुरू हुई वर्तमान जंग

जुलाई 2020 में दोनों देशों के लोगों के बीच ह‍िंसक झड़प हुई, जिसमें 16 लोग मारे गए। उसके बाद अज़रबैजान में जनता का गुस्सा भड़क उठा और व्‍यापक स्‍तर पर प्रदर्शन हुए। लोगों की मांग थी कि देश इस इलाके को अपने कब्‍जे में ले। थोड़े ही दिन में दोनों देश एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप गढ़ने लगे। अज़रबैजान ने कहा कि जब आरमीनियाई लोगों ने अज़रबैजान के लोगों की हत्‍या की, तब उन्‍होंने जवाबी कार्रवाई की। यह भी दावा किया गया कि उन्‍होंने आरमीनिया के आतंकियों को पकड़ लिया है। वहीं आरमीनिया ने दावा किया है कि अज़रबैजान ने शांति को भंग किया है। दोनों देशों के दावों पर गौर करें, तो इस दौरान दर्जनों लोगों की मौत हुई। इससे पहले यहां 2016 में भी भीषण जंग हुई थी, जिसमें करीब 200 लोगों की मौत हुई।

कई देश हो सकते हैं प्रभावित

अगर यह युद्ध ज्यादा दिन तक चला तो कई देशों की अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस इलाके से गैस और तेल की पाइपलाइन गुजरती हैं। ये वो पाइपलाइन हैं, जिनके माध्‍यम से रूस और तुर्की तक तेल की सप्‍लाई की जाती है। इसमें बाकू-तब्‍लीसी-सेहान ऑयल पाइपलाइन, वेस्‍टर्न रूट एक्‍सपोर्ट ऑयल पाइपलाइन, ट्रांस एनाटोलियन गैस पाइपलाइन और साउथ कौकेशस गैस पाइपलाइन मुख्‍य रूप से शामिल हैं।

अज़रबैजान में तुर्क लोगों की आबादी भी बड़ी संख्‍या में है। यही कारण है कि तुर्की इसे मित्र देश मानता है। वहीं आरमीनिया के साथ तुर्की के संबंध कभी अच्‍छे नहीं रहे हैं। जब-जब आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच संघर्ष हुआ तब-तब तुर्की ने आरमीनिया के साथ अपनी सीमाएं बंद कर दीं। ताज़ा विवाद गहराने के बाद एक बार फिर तुर्की आरमीनिया के खिलाड़ खड़ा है। वहीं रूस आरमीनिया के साथ है। यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना भी है। हालांकि रूस के राष्‍ट्रपति व्लादमिर पुतिन ने दोनों देशों से युद्ध विराम की अपील की है। वहीं तुर्की ने सीधे तौर पर इस जंग में नहीं शामिल होने की बात दोहराते हुए अज़रबैजान को आगे बढ़ने की सलाह दी है। वहीं आरमीनिया से अपील की है, कि वो पीछे हटे।

10:22 AM : COVID-19 Updates

10:01 AM : सीरो सर्वे

9:32 AM : अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस

अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस : बुजुर्गों के प्रति समझे जिम्मेदारी

दुनिया भर में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। समाज और नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने और मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ नागरिकों के योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाया जाता है। इस आयोजन का फ़ैसला संयुक्त राष्ट्र ने 1990 में लिया था। इस अवसर पर अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है। आज का वृद्ध समाज से कटा रहता है और सामान्यत: इस बात से सर्वाधिक दुखी है कि जीवन का अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व देता है। इस प्रकार अपने को समाज में एक तरह से अहमियत न समझे जाने के कारण वरिष्ठ समाज दुखी रहते हैं। वृद्ध समाज को इस दु:ख और कष्ट से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है।

वरिष्ठ नागरिक समाज के नेताओं के रूप में अपने कंधों पर बहुत जिम्मेदारी लेते हैं। वे समाज की परंपराओं, संस्कृति को भी आगे बढ़ाते हैं और ज्ञान को युवा पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। उन्हें कभी-कभी दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है, जिसका उन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इस दिन को अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए वृद्ध लोगों के प्रति दुनिया की जिम्मेदारियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भी चिह्नित किया जाता है। कोरोना काल में भी दुनियाभर में वरिष्ठ नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार, उपेक्षा की घटनायें सामने आई। कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा उम्रदराज लोगों को ही है, ऐसे में जरूरत हैं उन्हें समझने की, संकट की घड़ी में चारदिवारी में सिमट कर रह गये बुजुर्गों के जिंदगी में रंग भरने की।

दुनिया में बढ़ रही बुजुर्गों की संख्या

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की जनसंख्या 600 मिलियन है। यह संख्‍या 2025 तक दोगुनी और 2050 तक 2 बिलियन को छूने के लिए तैयार है। उनमें से 80% निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहेंगे। उनकी आबादी 10 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ-साथ युवाओं को भी पछाड़ देगी। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में बुजुर्गों की आबादी में वृद्धि सबसे तेजी से होगी।

भारत में बुजुर्ग

– संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की 2019 रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1.36 बिलियन है जिनमें 6% जनसंख्या 65 और उससे अधिक है।

– ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की बात करें तो 73 मिलियन से अधिक लोग यानी 71% बुजुर्ग आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि 31 मिलियन या 29% बुजुर्ग आबादी शहरी क्षेत्र में हैं।

– 1971 में बुजुर्गों का लिंगानुपात 938 महिलाओं पर 1,000 पुरुष और 2011 में 1,033 हो गया और 2026 तक बढ़कर 1,060 हो जाने का अनुमान है।

बुजुर्गों के लिये खास योजनायें

– स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय, भारत सरकार ने बुजुर्गों की विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य संबंधित समस्‍याओं का समाधान करने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय बुजुर्ग स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम (एनपीएचसीई) की शुरूआत की।

– एनपीएचसीई का मूल उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं सहित प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तरों पर राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य वितरण प्रणाली के माध्यम से बुजुर्गों को स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना है।

– सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, राजस्व विभाग, रेल मंत्रालय, गृह मंत्रालय और नागर विमानन मंत्रालय सहित अन्य मंत्रालयों ने बुजुर्गों के कल्याण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है।

-राष्ट्रीय वयोश्री योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, वरिष्ठ पेन्शन बिमा योजन, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना चलाई जा रही हैं।

कानूनी अधिकार

– बुजुर्गों के लिये अनुच्छेद 41 और अनुच्छेद 46 बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए संवैधानिक प्रावधान हैं।

– हिंदू विवाह और दत्तक अधिनियम, 1956 की धारा 20 में वृद्ध माता-पिता को रखने के लिए अनिवार्य प्रावधान हैं।

– आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत, बुजुर्ग माता-पिता अपने बच्चों से रखरखाव का दावा कर सकते हैं।

– माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का रखरखाव और कल्याण अधिनियम, 2007, बच्चों या वारिसों के लिए अपने माता-पिता या परिवार के वरिष्ठ नागरिकों को साथ रखने के लिए कानूनी बाध्य है। इस बिल में ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019’ प्रस्तुत किया गया।

कोरोना काल में बुजुर्ग

भारत में, ज्यादातर बुजुर्ग या तो अपने बच्चों के साथ रहते हैं या अकेले या रिश्तेदारों के साथ। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, बड़े शहरों में वृद्धावस्था की संख्या में वृद्धि हुई है क्योंकि उनके बच्‍चों का पलायन तेजी से हो रहा है। कई अपने माता-पिता से बहुत दूर हैं या एकाकी परिवार में रहते हैं।

ऐसे में महामारी के दौरान, यह जानकर कि बुजुर्गों को सबसे अधिक खतरा है और उनमें उच्च मृत्यु दर देखी गई, इस बारे में थोड़ी जानकारी ली। जिसमें प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि उच्च आयु वर्ग में विशेष रूप से 50 के बाद, कोविड19 से मृत्यु दर बहुत अधिक है।

भारत में 70 से ऊपर के लोगों में मृत्यु दर 15% से ऊपर है, जबकि 30 साल से कम उम्र वालों के लिए यह 0.5% या उससे कम है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, भारत के बृद्धों की देखभाल के लिये बने घरों में मृत्यु की कोई रिपोर्ट नहीं है। दरअसल वृद्धाश्रम के प्रशासन ने बाहर से आने-जाने वालों पर रोक लगा दी। परिसार को साफ, सुथरा करते रहें। सभी बुजुर्गों को आइसोलेट किया गया। फल, सब्जी आदि आने पर भी काफी सतर्कता रखी गई।

9:17 AM : UN Biodiversity Summit

30 September 2020

4:23 PM : 'एयर इंडिया वन'

‘एयर इंडिया वन’ एक अक्टूबर को पहुंचेंगे दिल्ली

देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिये अमेरिका में बन रहा विशेष ‘एयर इंडिया वन’ विमान जल्द ही भारत आने वाला है। ‘एयर इंडिया वन’ के दो विमान हाई-टेक विमान एक अक्टूबर को दिल्ली में उतरने वाले हैं। इन विशेष विमानों की डिलीवरी भारत को मिल गई है। इसके पहले ही शिकागो के बोइंग मुख्यालय में दोनों वीवीआईपी एयरक्राफ्ट परीक्षण के तौर पर उड़ान भर चुके हैं। दोनों मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस बोइंग-777 को लाने के लिए एयर इंडिया के इंजीनियरों की टीम और भारतीय वायु सेना के पायलट अमेरिका पहुंच चुके हैं।

एयरफोर्स के पायलट पहुंचे लेने

भारत के वीवीआईपी बेड़े के लिए ‘एयर इंडिया वन’ शामिल होंगी। भारत को दोनों विमान सौंपे जाने से पहले 25 सितम्बर तक सारे परीक्षण पूरे किये जा चुके हैं। दोनों विमान 30 सितम्बर को 20 मिनट के अंतराल में अमेरिका से उड़ान भरेंगे और एक अक्टूबर को दिल्ली में टेक-ऑफ करेंगे। इन वीवीआईपी विमानों की आपूर्ति पहले जुलाई में होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के कारण नहीं हो पाई। इसके बाद सितम्बर के मध्य में एक विमान को और दूसरे को सितम्बर के अंत तक पहुंचाना था। इसके लिए भारत से एक टीम अमेरिका पहुंच गई थी लेकिन कुछ तकनीकी सुझाव आने के कारण आपूर्ति नहीं हो पाई। इसलिए अब दोनों वीवीआईपी एयरक्राफ्ट की एक साथ आपूर्ति की गई है। वीवीआईपी एयरक्राफ्ट ‘एयर इंडिया वन’ को भारत लाने के लिए एयर इंडिया, इंडियन एयरफोर्स और सरकार के कुछ अधिकारियों के साथ सुरक्षाकर्मियों का एक दल अमेरिका गया है।

विमान की खासियत

भारत को मिलने वाले इन दो नए विमानों का इस्तेमाल प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की उड़ान के लिए किया जाएगा, जिसे वायु सेना के पायलट उड़ाएंगे। ‘एयर इंडिया वन’ में अशोक की लाट बनी होगी, जिसके एक तरफ हिन्दी में ‘भारत’ और दूसरी तरफ अंग्रेजी में ‘INDIA’ लिखा होगा। साथ ही विमान की पूंछ पर भारत की शान ‘तिरंगा’ बना होगा। विमान में उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट की सुविधा होगी। जो विमान को न केवल हमले से रोक सकते हैं बल्कि हमले के समय जवाबी कार्रवाई भी कर सकते हैं। यह पहला भारतीय विमान होगा जो सेल्फ-प्रोटेक्शन सूट (एसपीएस) से लैस होने के नाते दुश्मन के रडार सिग्नल्स को भी जाम कर सकता है और पास आने वाली मिसाइलों की दिशा भी मोड़ सकता है। इस विमान के अंदर एक कॉन्फ्रेंस रूम, वीवीआईपी यात्रियों के लिए एक केबिन, एक मेडिकल सेंटर और साथ ही साथ अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों, स्टाफ के लिए सीटें होंगी। यह विमान एक बार ईंधन भरने के बाद लगातार 17 घंटे तक उड़ान भर सकेगा।

पुराने विमान हटा लिये जायेंगे

मौजूदा समय में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति घरेलू यात्रा के लिए भारतीय वायु सेना के विमान और अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए एयर इंडिया के बोइंग-747 में उड़ान भरते हैं। इनके आने के बाद एयर इंडिया वीवीआईपी बेड़े से 25 साल पुराने बोइंग-747 विमान हटा लिये जाएंगे। भारत में अभी वीवीआई बेड़े में जो विमान हैं, वे सिर्फ 10 घंटे तक ही लगातार उड़ सकते हैं। वायु सेना के विमानों की तरह ही इन नए विमानों की भी उड़ने में असीमित रेंज होगी जो एक बार में दुनिया भर की यात्रा कर सकता है। इमरजेंसी की स्थिति में प्लेन मिड-एयर रीफ्यूल करने में भी सक्षम होगा। ट्विन जीई90-115 इंजन वाला ‘एयर इंडिया वन’ अधिकतम 559.33 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ सकता है। दोनों विमान एक तरह से मजबूत हवाई किले की तरह हैं। इनकी खरीद पर करीब 8,458 करोड़ रुपये की लागत आएगी।